बिरसा मुंडा
……..गीत
धरती बाबा बिरसा मुंडा
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अंग्रेजों को खूब डराया ।
जब जी चाहा इन्हें हराया ।।
बड़े बहादुर बिरसा मुंडा ,
जीत का परचम भी फहराया।
छोड़ पढ़ाई जनहित अपनी ,
मुंडा वाली फौज बनाया ।।
हक अधिकार मांगे जो अपने,
अंग्रेजों ने जुल्म भी ढाया ।
लगान नहीं देंगे जब बोले,
कारावास में बंद कराया ।।
कब हारे थे बिरसा मुंडा ,
खूंटी थाना खूब हिलाया ।
लेकर 400 सैनिक अपने,
अंग्रेजों को खूब भगाया ।।
मगर डोंम्बरी पहाड़ सभा में,
अंग्रेजों ने उत्पात मचाया ।
ना बच्चे ना महिला छोड़ी,
खूनी खेल जालिम ने खिलाया।।
तेज धनुर्धर वीर सिपाही,
कब अंग्रेजों से घबराया ।
तांगा नदी के तट पर उसने,
गौरों को बुरी तरह हराया ।।
पड़ी वक्त की बाजी उल्टी,
गम का बादल काला छाया।
इस यौद्धा को पकड़ गौरों ने,
कारावास में फिर डलवाया।।
डर से कांप रहे गौरों ने ,
इस योद्धा को जहर खिलाया ।
इस तरह धरती बाबा को,
“सागर” गौरों ने मरवाया ।।
जय हो जय हो धरती बाबा,
तूने नया इतिहास रचाया।
जब तक दम में दम था तुम्हारे,
नहीं हार को गले लगाया।।
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महान कवि कबीर दास
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आडंबर पर तुम थे भारी ।
ये सारा जग है आभारी ।।
तुमने बड़ी सोच समझ से,
खूब चलाई ज्ञान की आरी ।
एक- एक शब्द सच में डूबा,
जो भी मुंह से बात निकाली।।
ना तुम हिंदू – ना हो मुस्लमां,
तुम थे मानवता के पुजारी ।
कंकर- पत्थर बस है पत्थर,
इनमें नहीं कोई चमत्कारी ।।
ना मस्जिद में बैठा अल्लाह,
ये सब है बस हल्लाधारी ।
गुरु रुप सब रुप से ऊपर ,
सामने बेशक हो करतारी।।
बुराई ना ढूंढो घर के बाहर ,
स्वयं में छुपी है ये बीमारी ।
रविदास संग घणी मित्रता ,
खूब रहे तुम आज्ञाकारी ।।
डरे नहीं तुम सच कहने से,
रोज डराते व्यभिचारी ।
कबीर दास नहीं दास किसी के,
चाहे परचम हो सरकारी।।
सच से ऊपर कुछ नहीं सूझा,
पाखंडवाद की सूरत काली ।
“सागर” नमन इस दिव्य पुरुष को,
ज्ञान की जिसने खोज निकाली।।
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जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
ग्राम- मुरादपुर ,सागर कॉलोनी, जिला- हापुड़, उत्तर प्रदेश
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचनाएं .===रचनाकार की मूल वजह अप्रकाशित रचनाएं हैं।