Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Sep 2017 · 5 min read

बिरजू एवं शरणार्थी

बिरजू और शरणार्थी

उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीामा पर यह ग्राम पिछड़ा एवं पथरीला इलाका है । इसी पथरीले इलाके को मगंलमय करने पाकिस्तान से विस्थापित भारतीय नागरिकों का बसेरा है। यहां सिधंी पजांबी कौम अपने-अपने संस्कारों के साथ खूब फल फूल रही है। कहते है इस पथरीले इलाके के रेत में भी पैसा है, इन्हीं में से एक पंजाबी सरदार ने इन रैतीले बालूओं के टीले का परीक्षण करवा कर इन्से शीशा ढालने का हुनर सीखा। फिर तो शंकर गढ़ एवं आस पास के धन्ना सेठांे की पौ बारह हो गयी, और देखते ही देखते ठेकेदारों एवं खानों के खोदने का अनवरत सिलसिला चल पड़ा । शंकरगढ़ कुदरती दौलत से माला माल ह,ै और सरदारों के पास व्यापार का खूब सूरत इल्म है। इनमें और बनिकों में व्यापार और ट्रको की खरीदने की होड़ बराबर चला करती है। धनवान सेठ होने के लिये अधिक से अधिक ट्रको का मालिक होना आवश्यक है। यह बात सन् 1970 से पहले की है हो सकता है और भी पुरानी हो सन् 1947 के आस पास की जब नफरत की जिद एवं एक व्यक्ति के अंहकार ने देश की भूमि का बटवारा कर दिया था, उसने तो तौहफे में मिले राज्य को नापाक कर दिया, परन्तु ख्ूान पसीनों एवं बलिदानों की असीम परंम्परा लियेे अखंड भारत ख्डिंत हो गया था । भारत माता एवं भारत की हर माता हदय में टीस लिये कराह उठी थी । एक युग का अन्त हो गया था। विकल्प में नफरत और प्यार को सीने में दफन किये दो देश शत्रुवत मित्रता का आग्रह कर रहे थे। जो आज भी यथावत है। सन् 2016 में एक दिन शंकरगढ़ की सुबह कुछ अनोखा गुल खिला रही थी। प्रातः के भव्य प्रकाश में शीतल मन्द बयार जब सबका मन मोह लेती है तो वही मन पर अमिट सुखद छाप छोड़ जाती है। मन की खूबसूरत आखें इन दृश्यों एवं सुबह के नरम प्रकाश को साथ में आत्मसात कर रही है। सुबह सुबह छः बजे है बिस्तर पर कुभलाई काया उठने का प्रयास कर रही है। उसी समय गली से सिक्ख जत्थेदारों का जत्था प्रभात फेरी लगाता हुआ गुजरता है। वाहे गुरू- वाहे गुरू की ध्वनि से सारा वातावरण गुरूमय एवं गरिमामय हो गया है। पडोस की पंजाबन मौसी अपने पुत्र केा नसीहत देते हुये कह रही है, सुबह सुबह सब तैयार होकर प्रभात फेरी वास्ते जा रहे है। ओय-आलसी उठ फेरी में शामिल होना तो दूर उठके बाहर भी नही निकला।
ओ मम्मी- मैं उठके गुरू के दरबार में मत्था टेक आंउगा
मौसी का गुस्सा ठंडा नही होता वह जानती है बिरजू बहाने बना रहा है। कहती है -बेड़ा गर्क हो तेरा गुुरू के नाम पर बहानेबाजी करता है। लोग गुरूनाम लेकर बेडा पार कर गये। यह अभी तक चारपायी तोड रहा है।
बिरजू ने पुनः आग्रह से कहा -माॅ में गुरूद्वारा अवश्य जांउगा, अगर तुझे विश्वास न हो तो ग्रन्थि साहब से पूछ लेना। अवश्य पूछ लेना ।
माॅ को सन्तोष हुुआ कि बच्चा ठीक कह रहा है। श्मां के सामने तो बचपन कितना ही उम्र दराज बन कर आ जायें माॅ की ममता का आंचल उससें अधिक ही बड़ा होता है।श्
कुछ देर बाद प्रभात फेरी ने विराम लिया और गुरू ग्रन्थि साहब का स्वर ध्वनित हुआ। इंकुम्कार सतनाम श्री वाहे गुरू, अरदास का वक्त हो गया था । श्रद्वालु प्रसाद लेकर घर की और प्रस्थान कर रहे थे।
मौसी भी प्रसाद पा घर जाने को तैयार थी तभी उसकी बहन आती हुयी दिखाई दी। उसनें छोटी बहन राजबीर कौर को आते देखा तो ठिठक गयी, उसका हाथ पकड़ कर, उसकी व उसके परिवार की खैरियत पूछने लगी, मौसी राजबीर कौर की बडी बहन मनप्रीत कौर थी ।
मौसी ने कहा राजौ क्या हाल है।
राजबीर ने कहा- मन्नो दी सब ठीक चल रहा है। आज कल न हालात बहुत खराब है। पता नही कहाॅ से एक अजनबी शरणानर्थी अपने मोहल्ले में आया हुआ है पागलों जैसी हरकत करता है लगता है बना हुुुआ पागल है। कुछ लोगो ने पूछा तो बताया बलूचिस्तान से आया है, न भाषा समझ में आती है, न व्यवहार, अपने मंगें के पापा ने पूछा तो बताया, सरहद पार बड़ी मारकाट मची है। कई लोग घर से गायब हो गये। कई लाशें सड़क पर पडी मिली, लोगो का कहना है कि पाक सेना का इसमें हाथ है। रोज-रोज बलूच लोग घर से उठा लिये जा रहे है। न तो खेत है न ही फसल है। रंजो गम मंें डूबा आंतक का माहौल है। कब किस घर पर गाज गिरेगी क्या पता ? आंतक के माहौल में क्या खाना क्या पहनावा, क्षण भर की खुशी की कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है। उनका उत्साह उनकी ख्ुाशी अपनी ही धरती से परायंे हो गये है। उनकी धरती उनसे परायी हो जायें यही साजिश पडोसी मुल्क हमेशा करता है। उनमें से कई मारे गये जो जान बचा कर भागे उन्हे सरहद पार अपने देश में शरण के लिये आना पड़ा । उनका तो कोई नही है। अल्लाह ही मालिक है।
बहन राजो- दीदी, कुदरत का कहर पहले ही कम न था अब इन्सानी कहर भी टूट पड़ा है।
बहन मनप्रीत-हा राजो जो गुरू से मुख मोड लेता है, तो घर का रहता है न घाट का। उसे अपना पराया कुछ नही सूझता । अपने ही लोगो पर यह जुर्म करना वास्तव में अंहकार एवं नफरत से कमाई आजादी की वजह से हैं। इन्हे अग्रजों ने तौहफे में आजादी दी, और इन्होने इसका मजाक बनाकर रख दिया। अंहकार, झूठ, फरेब, नफरत से ये पडोसी अन्धे हो गये हैं। इन्हे अपना पराया कुछ भी नही सूझता।
मनप्रीतः- मैं बिरजू से कह आयी थी, कि गुरूद्वारे मथ्था टेकने आ जाना । आज प्रकाश पर्व हैं। लगता है वह आ रहा हैं, वही हैं न मै घर चलती हूॅ। घर मे सरदार जी अकेले होंगे उन्हे भी खबरदार करना हैं।
हाॅ बहन वही बिरजू हैं।
बिरजू तब तक पास आ गया था- शाश्रियाकाल मौसी
शाश्रियाकाल बिरजू-
राजू मौसी बिरजू ठीक तो हा,े तुम्हारे साथ ये व्यक्ति कौन हैं ?
बिरजू आपके मोहल्ले का शरणार्थी बलूच है। अपने कपडे दिये हैं। इसे पहनाकर लंगर छकाने वास्ते लाया हूॅ।
मौसी- हाॅ बिरजू नेक काम हैं, तू तो समझदार इंसान बन गया हैं।
बिरजू गुरूद्वारे में हाथ पैर धुलवाकर उस शरणार्थी को ग्रन्थी साहब से मिलवाता हैं। वह उसकी पीडा बतलाता हैं।
ग्रन्थी साहब के आंखो में आंसू आ जाते है। मुल्क एवं घर छूटने का दर्द उनसे बढ़कर कौन जान सकता है। उन्होने गुरू के सम्मान में हाथ जोड दिये, व प्रार्थना करने लगे, कि हे सदगुरू, सच्चे बादशाह उन्हे सम्मति दें जो जुल्म से अपने हाथ काले कर रहे हैं। उनके इरादे नेककर जो बदी से इन्सानियत को कंलकित कर रहे हैं। मेरे सच्चे गुरू कृपा करें।
ग्रन्थी साहब उस शरणार्थी को संगत में ले गये व लंगर छकाया। गुरू को प्रसाद ग्रहण करते ही शरणार्थी का हृदय भर आया। उसने अपनी जुबान में कहा- यह देश धन्य है। जहाॅ मानवता की सेवा ही धर्म है। उसने बिरजू का लाख-लाख शुक्रिया अदा किया। उसकी कृतज्ञता देखकर बिरजू अत्यन्त प्रफुल्लित हो उठा, और ग्रन्थी साहब से कहकर गुरूद्वारा में ही शरणार्थी के रहने खाने की व्यवस्था करवा दी। मानवता की सेवा ही सच्ची सेवा हैं। नेक नीयत है। ईश्वर की सच्ची कृपा है। सच्ची गुरूवाणी है।

डा0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव

Language: Hindi
3 Likes · 474 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
💐प्रेम कौतुक-199💐
💐प्रेम कौतुक-199💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
तूणीर (श्रेष्ठ काव्य रचनाएँ)
तूणीर (श्रेष्ठ काव्य रचनाएँ)
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
ओ गौरैया,बाल गीत
ओ गौरैया,बाल गीत
Mohan Pandey
मातु शारदे वंदना
मातु शारदे वंदना
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
तुम सम्भलकर चलो
तुम सम्भलकर चलो
gurudeenverma198
अमृता प्रीतम
अमृता प्रीतम
Dr fauzia Naseem shad
बस तुम
बस तुम
Rashmi Ranjan
दुनिया दिखावे पर मरती है , हम सादगी पर मरते हैं
दुनिया दिखावे पर मरती है , हम सादगी पर मरते हैं
कवि दीपक बवेजा
दो पल की खुशी और दो पल का ही गम,
दो पल की खुशी और दो पल का ही गम,
Soniya Goswami
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
Manoj Mahato
बुद्ध जग में पार लगा दो ।
बुद्ध जग में पार लगा दो ।
Buddha Prakash
अजीब सूरते होती है
अजीब सूरते होती है
Surinder blackpen
प्यार हुआ कैसे और क्यूं
प्यार हुआ कैसे और क्यूं
Parvat Singh Rajput
जन्म दायनी माँ
जन्म दायनी माँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
आग उगलती मेरी क़लम
आग उगलती मेरी क़लम
Shekhar Chandra Mitra
*कैसे हम आज़ाद हैं?*
*कैसे हम आज़ाद हैं?*
Dushyant Kumar
#गौरवमयी_प्रसंग
#गौरवमयी_प्रसंग
*Author प्रणय प्रभात*
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
ऋचा पाठक पंत
2667.*पूर्णिका*
2667.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सुप्रभात
सुप्रभात
Arun B Jain
“बप्पा रावल” का इतिहास
“बप्पा रावल” का इतिहास
Ajay Shekhavat
भ्रम अच्छा है
भ्रम अच्छा है
Vandna Thakur
जिस प्रकार सूर्य पृथ्वी से इतना दूर होने के बावजूद भी उसे अप
जिस प्रकार सूर्य पृथ्वी से इतना दूर होने के बावजूद भी उसे अप
Sukoon
One day you will realized that happiness was never about fin
One day you will realized that happiness was never about fin
पूर्वार्थ
बहुत दिनों से सोचा था, जाएंगे पुस्तक मेले में।
बहुत दिनों से सोचा था, जाएंगे पुस्तक मेले में।
सत्य कुमार प्रेमी
*जीवित हैं तो लाभ यही है, प्रभु के गुण हम गाऍंगे (हिंदी गजल)
*जीवित हैं तो लाभ यही है, प्रभु के गुण हम गाऍंगे (हिंदी गजल)
Ravi Prakash
घमंड
घमंड
Ranjeet kumar patre
जयंत (कौआ) के कथा।
जयंत (कौआ) के कथा।
Acharya Rama Nand Mandal
"आँखें"
Dr. Kishan tandon kranti
दूसरों को देते हैं ज्ञान
दूसरों को देते हैं ज्ञान
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
Loading...