बिन सूरज महानगर
समय बदल चुका था, सुबह शाम दिन रात मौसम ऋतु गर्मी सर्दी सब कुछ अपने समय को खोते से जा रहे थे और इसी बीच एक नन्हा बालक अपने पापा के साथ महानगर के एक छोटे से पार्क मे सुबह सुबह अपनी मस्ती में घूम रहा था।
आज की सुबह कितनी सुहावनी है,यह आवाज सोहन के कानों में जैसे ही पहुंची,
पापा आज की सुबह कितनी सुहावनी है? सोहन के पापा ने जवाब दिया – बेटा जितनी सुहावनी कल थी,उतनी ही आज है।
सोहन जवाब से थोड़ा कम संतुष्ट सा होते हुए फिर से अपनी नादानी के साथ सवाल पूछ लेता है -पापा कल तो आने वाला है?
लेकिन सोहन के पापा अपनी सुहावनी सुबह के साथ इस सवाल को हवा में बहाकर अपनी सेर के मजे सोहन के साथ लेते लेते आगे बढ़ते जाते है
सोहन अपने सवाल का जवाब न मिलने पर भी आगे बढ़ता जाता है। बीच पार्क मे एक पौधे के फूलों को देख सोहन हाथ झटककर उसके पास चला जाता है।
इसी बीच सोहन के पापा एक परिचित से बातें करने मे व्यस्त हो जाते है।
अरे! जैन साहब,आप कब से इस पार्क मे आने लगे। सोहन के पापा जैन साहब से हाल चाल पूछ लेते है।
अब यहां आए,चाहे वहां जाए,सब एक सा ही लगने लगा है
जैन साहब अपनी मानसिक स्थिति का ब्यौरा मानो जैसे पेश कर देते है। जैन साहब अपने जीवन की आखिरी सुहावनी सुभाओं को देख रहे थे।
वक्त,बहुत कुछ दिखला देता है,जैन साहब? इस बार सोहन के पापा सवाली बातचीत करने के इरादे से सवाल करते है।
यह प्रश्न जैन साहब की वाणी को आगे प्रकट करने से रोक देता है।
इसी बीच सोहन, फूलों के साथ खेलकर वापिस आ जाता है और फिर से पापा से सवाल करने लगता है
उस पौधे का नाम क्या है?,पापा
फूल कैसे आते है?,पापा
इसका कलर ऐसा क्यों है?,पापा
ना जाने ढेर सारे सवालों की बौछार पापा पर कर देता है.
जैन साहब इन सवालों को अनसुना सा करते हुए पार्क मे घूमने आगे निकल जाते है।
अभी तुम फूलों का आनंद लो।इस बार सोहन के पापा गंभीर रूप से सवाल का जवाब देते है।
बच्चों को सही समय पर सही ज्ञान देना कितना उचित हो जाता है वो इस जवाब मे दिखलाई दे सकता है।लेकिन
सोहन,इस जवाब को हवा मे उड़ाकर आगे बढ़ जाता है।
और दोनों के कदम इस बार कुछ हद तक एक साथ आगे बढ़ जाते है।
सोहन के कदम थोड़ी देर पापा का साथ देने के बाद पीछे हो जाते है।
पापा हम इसी पार्क में हर दिन क्यों आते है?लेकिन सवाल, जुबान पर आगे रहते हुए सोहन फिर से पूछता है।
क्या यह सबसे सुंदर पार्क है। इस बार सोहन के पापा,सोहन से बात करने के इरादे से जवाब देने को होते ही है कि फिर से एक और सवाल आ जाता है।
यह सुंदर क्या चीज होती है?पापा,लेकिन सोहन अपनी नादानी के सवालों मे उलझाने की कोशिशों मे रहता है।
इस सवाल के बाद कुछ देर सोहन के पापा शांत मन से सोहन के नन्हें हाथों को पकड़ कर अपने कदमों को धीमा कर साथ साथ आगे बढ़ते है। जैसे पार्क की सुंदरता मे सोहन के पापा खो चुके हो।
यह इतना बड़ा पार्क क्यों बनाया है?पापा
क्या इसमें हम अपना घर बना सकते है?पापा
हम यहीं क्यों नहीं रुक सकते? पापा
सवाल बढ़ते जाते है और पार्क का निकासी गेट आ जाता है
सोहन के पापा मुड़कर पूरा पार्क देखते है और सामने दूर एक बड़ी इमारत के पीछे से हल्की सी रोशनी दिखाई देती है,और फिर सोहन के पापा कहते है
यहीं सुंदरता बची है,बेटा।