बिन फ़न के, फ़नकार भी मिले और वे मौके पर डँसते मिले
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
बड़ी अजीब है ये दुनिया,
ज़िंदगी में गजब-ग़ज़ब के लोग मिले,
मिले तो अपने मिले,
या मिलकर लुटते मिले,
बिन फ़न के, फ़नकार भी मिले,
और वे मौके पर डँसते मिले,
जो ख़ामोश थे, वे कई जगह बोले,
और हर जगह झूठ बोलते मिले,
हम तो उम्मीद सच का तक रहे हैं,
लोग भगवान का भरोसा दिलाते मिले,
किरदार किरदार की बात है,
किसी को बिन दिए, चुभन मिले,
तो किसी को हमसे सुकून मिले…