बिन परखे जो बेटे को हीरा कह देती है
बिन परखे जो बेटे को हीरा कह देती है
ऐसी कोई शै दुनिया में माँ हीं होती है,
डाँट ,मार,मनुहार, प्यार, झिड़की,,जाने क्या क्या
एक साथ इन सौगातों की झड़ी लगाती है,
कहती है,तू बैठे-बैठे रोटी तोड़ता है
और फिर उसको हाथ से अपने क़ौर खिलाती है
गुस्से में धर देती है दो चार चपत भी तो
फिर पछता के गालों को भी तो सहलाती है।