“बिन तेरे”
बिन तेरे…मिल जाए सबकुछ, तो भी लगता कमतर है।
बिन तेरे……….आँसू के बहने, रोने में भी अन्तर है।
बिन तेरे..धड़कन से अपनी, अनबन सी कुछ रहती है,
बिन तेरे…..क्यों लगता है की, मर जाना ही बेहतर है।
(१)
बिन तेरे……यादों की बस्ती, उजड़ी-उजड़ी रहती है।
बिन तेरे..खुशियों की महफ़िल, जैसे- तैसे सजती है।
बिन तेरे……….हर रंगो में कुछ, फीकापन सा रहता है।
कैसे दर्द बयां कर दे हम, हर इक शब्द सिसकता है।
बिन तेरे भयवाह दिखाई, देता सारा मंजर है।
बिन तेरे क्यों लगता है की, मर जाना ही बेहतर है।
(२)
बिन तेरे………आँखों में सपने, आने से डर जाते है।
जीने की कोशिश में ‘तुम बिन’, अक्सर हम मर जाते है।
बिन तेरे सब अरमानो की, अर्थी निकली जाती है।
तन्हाई की चिकनाई में, खुशियाँ फिसली जाती है।
सन्नाटा सा पसरा रहता, हर पल मन के अन्दर है।
बिन तेरे क्यों लगता है की, मर जाना ही बेहतर है।
(३)
बिन तेरे…….कैसे बतलाए, जीते है की मरते है।
नैन पड़े है सूखे लेकिन, आँसू झर-झर बहते है।
बिन तेरे….जीवन के सारे, अंक अधूरे लगते है।
भाग करो या गुणा हम तो, शून्य बने से रहते है।
पूर्ण बनेगा तुझसे जुड़कर, हम वो आधे अक्षर है।
बिन तेरे क्यों लगता है की मर जाना ही बेहतर है।