बिन चाहे
बिन चाहे भी कभी हमे तो मुस्कुराना होगा
गर कठिनाई मिले पार ही पाना होगा
पार साहिल को ऐसे ही नही करती कश्ती
हौसला पल हर पल ही है बढाना होगा
चिटी से पूछो कितनी बार गिरती है ऊंचाई से
जीत के लिए झूठा मन समझाना होगा
जिदंगी तुझसे गर थक भी जाऊ कभी मै गर
खुद को वक्त से आगे ही दिखाना होगा
सच जो नाता गर तुमसे जोडा कभी तो
दुश्मन ये फिर सारा ही जमाना होगा
मोहन बामणीया पानीपत