*बिना धूप के ही दिन निकला, शाम हो गई (हिंदी गजल/ गीतिका)*
बिना धूप के ही दिन निकला, शाम हो गई (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
बिना धूप के ही दिन निकला, शाम हो गई
जाड़ों में यह ही दिनचर्या, आम हो गई
2
रिश्वत खाना और कमाना धंधा जिनका
राजनीति उनके कारण, बदनाम हो गई
3
बिना बात के ही दो की तू-तू-मैं-मैं थी
सड़क इसी चक्कर में देखो, जाम हो गई
4
सुबह काम पर जाना, संध्या को फिर आना
इस आने-जाने में उम्र तमाम हो गई
5
जटिल प्रश्न है जीवन की गुत्थी सुलझाना
मिला जिसे हल, श्वास-श्वास अभिराम हो गई
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451