बिना दुल्हन के विदाई
सैलाव की तरह लोग उसकी तरफ बढ़ रहे थे। ऐसा लग रहा था सुनामी आ गयी हो शौरगुल हो रहा था ।
जैसे जैसे आवाजें बढ़ रही थी, उत्सुकता से लोग मंडप के करीब आते जा रहे थे , कुछ लोग संगीता के हमदर्द बन रहे थे तो कुछ तमाशबीन बन मजा ले रहे थे ।
संगीता के लिए यह बहुत चुनौतीपूर्ण क्षण थे एक तरफ खुद का भविष्य, माता-पिता की इज्जत और दूसरी तरफ समाज में सकारात्मक बात रखना भी था ।
दुल्हा बना संदेश , जिसने शादी के पहले एक आदर्श व्यक्ति का चौला पहन रखा था , जैसे जैसे शादी की रस्मे पूरी होती जा रही थी वह और उसके पिता , दोस्त और रिश्तेदार अपना चौखटे बदलते जा रहे थे । नशा, कर के बात बात पर लड़ाई के बहाने ढूंढना , बदतमीजी करना और दहेज के रुप में नये नये सामान की मांग करना याने कुल मिलाकर :
” उसके गले में रस्सी बांधकर निरीह गाय को घसीट कर ले जाने जैसी हालत उसकी थी ।”
यद्यपि संगीता को उठाया जाने वाला कदम अव्यवहारिक लग रहा था , फिर भी उसने मन में ठान लिया और विदा से पहले कहा:
” मुझे आपकी सभी मांगें और शर्तें मंजूर है लेकिन मैं पहले संदेश से अकेले में बात करना चाहती हूँ ।”
संदेश के घर वाले खुश हो गये ,
“अब लडकी उनके चंगुल में आ गयी है और संदेश तो पहले से ही उनकी मुट्ठी में है ।”
कमरे में जा कर पहले तो संगीता ने संदेश को खूब खरीखोटी सुनाई , फिर जल्दी से कमरे से बाहर निकल कर कमरा बाहर से बंद कर दिया और कहा :
” संदेश को हमने आपको नगद , सामान , जेवर दे कर खरीद लिया है और वह कह रहा है वह यही रहेगा । ”
आप लोग सामान बटोर कर जा सकते है ।
पूरे मंडप में सन्नाटा छा गया । पासा एकदम पलट गया था , बिना दुल्हा-दुल्हन के बारात पहुंचेगी तब क्या होगा ?
लेकिन संगीता जानती थी जहर को जहर ही मारता है इसलिए कठोर निर्णय जरूरी है । काफी मान-मनोब्बत करने के बाद भी संगीता अपने निर्णय से पीछे नहीं हटी ।
सब ने संदेश को बुलाने के लिए कहा ।
संगीता ने फिर कमरे में जा कर संदेश को पूरी बात बताई और कहा :
” अब निर्णय उसके हाथ है ।”
संदेश समझ गया :
“अगर अब संगीता से पंगा लिया तो वह न घर का रहेगा न घाट का ।”
इसलिए उसने भी संगीता की हाँ में हाँ मिलाई ।
बिना दुल्ह-दुल्हन के बारात विदा हो गयी थी ।
संगीता जानती थी कि :
“उसको ससुराल में ही जीवन बिताना है और अब सास ससुर ही उसके माता पिता है , संदेश को वह अपना जीवन समर्पित कर चुकी है लेकिन उसके इस एक कदम से समाज की कई बेटियों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले कई अनेक परिवारों को सबक मिलेगा ।”
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल