*बिना तुम्हारे घर को अब माँ घर कैसे बतलाएँ 【गीत 】*
बिना तुम्हारे घर को अब माँ घर कैसे बतलाएँ 【गीत 】
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बिना तुम्हारे घर को अब माँ घर कैसे बतलाएँ
(1)
थके हुए कदमों से बाबूजी घर में आते हैं
सूनी आँखों से निहारते घर को रह जाते हैं
खाने में अब कमी नहीं थोड़ी भी बतलाते हैं
अगर पराँठा कच्चा भी है तो गुमसुम खाते हैं
हरदम रहते हैं उदास अब कैसे उन्हें हँसाएँ
(2)
कमरा जैसा गई छोड़कर तुम वैसा बिखरा है
यादों का सामान तुम्हारा घर में पड़ा भरा है
लगता है होटल के कमरे में जैसे रहते हैं
सूनेपन का दंश रात-दिन बाबूजी सहते हैं
हमसे कहते हैं मत रोना, फिर खुद रोते जाएँ
(3)
पहले कितनी खटपट थी तुम दोनों ही में पाई
सदा काटती बातें तुम, हाँ में हाँ कहाँ मिलाई
बिना तुम्हारे अब बाबूजी बिल्कुल टूट गए हैं
जैसे गाड़ी चली गई ,बाबूजी छूट गए हैं
किसकी गुस्सा सुनें और किसके ऊपर गुस्साएँ
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रचयिता: रवि प्रकाश,बाजार सर्राफा
रामपुर(उ.प्र.)
मो.9997615451