बिना तनख्वाह की नौकरानी (लघुकथा)
बिना तनख्वाह की नौकरानी (लघुकथा)
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दिनेश एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाला पैंतीस साल का नवयुवक है। अच्छी-खासी तनख्वाह है। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, शादी के दो साल बाद ही पत्नी एक संतान को जन्म देकर एकाएक चल बसी। संतान को पालना, घर चलाना ,खाना बनाना.. न जाने कितनी जिम्मेदारियां अकेले दिनेश के ऊपर आ गयीं।
शुरू में महीना -पंद्रह दिन दिनेश ने किसी तरह गुजारे। लेकिन फिर उसके बाद एक नौकरानी की तलाश शुरू की। सौभाग्य से एक सही नौकरानी मिल गई। नाम था पार्वती। उम्र कोई ज्यादा नहीं थी। पच्चीस साल रही होगी। दिनेश ने उसे दिया, पूरा बीस हजार रुपए मासिक। कोई सुने तो आंखे फट जाएं। लेकिन पार्वती ने काम पूरी जिम्मेदारी से किया।
घर की एक चाबी दिनेश ने पार्वती को दे रखी थी । ठीक सुबह छह बजे पार्वती दिनेश के घर दरवाजा खोल कर आ जाती थी और बेड-टी बनाकर दिनेश को देती थी। फिर पूरे घर का झाड़ू- पोंछा, सुबह का नाश्ता बनाकर दिनेश को खिलाना, दोपहर का खाना बना कर और उसे टिफिन में रखकर दिनेश को दफ्तर जाने से पहले सौंपना। दिनेश के जाने के बाद उसकी संतान को देखभाल करके रखना तथा उसके बाद बर्तन मांज कर , कपड़े धोकर उन्हें सुखाना-प्रेस करना और उसके बाद पूरे घर में पेड़ों को पानी देना आदि तमाम काम पार्वती भली-भांति कर रही थी ।शाम को करीब पॉंच बजे जब दिनेश दफ्तर से वापस लौटता था, तब पार्वती का काम था- उसे चाय बनाकर पिलाना । उसके बाद रात का खाना बना कर दिनेश को खिलाने के पश्चात करीब-करीब साढ़े आठ बज जाते थे, जब पार्वती अपने घर वापस जाती थी ।
समय बीत रहा था। धीरे-धीरे पार्वती को नौकरी पर आए हुए एक महीना होने वाला था। महीने की पहली तारीख जब आई तो पार्वती मासिक वेतन की आशा में दिनेश के पास जाकर खड़ी हो गई। दिनेश ने उसे प्यार भरी नजरों से देखा और कहा- “एक बात कहूं पार्वती ! बुरा तो नहीं मानोगी ! ”
पार्वती कुछ नहीं बोली ।चुप रही। दिनेश बोला…” पार्वती मुझसे शादी करोगी ?”
पार्वती का चेहरा तमतमा उठा ।बोली-
– “साहिब बहुत चालाक बनते हो ।तनख्वाह का पैसा बचाना चाहते हो ।मुझे मालूम है ,सब मर्द एक जैसे होते हैं। जो काम मैं आपके घर करती हूं, वही काम मेरी माँ भी अपने घर करती थी। मगर एक दिन जब अपनी खुशी से वह मेरे पिता से बगैर पूछे चार हजार रुपए की साड़ी खरीद कर ले आई, तो पिता ने उसे बहुत लातों- घूसों से मारा। शायद मंशा तो नहीं थी, लेकिन दिमाग की एक नस फट जाने से मेरी मां मर गई । नहीं .. नहीं । ..मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं।.. मुझे आपकी बिना तनख्वाह की नौकरानी नहीं बनना।”
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
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