बिना आमन्त्रण के
हाँ, तू बहुत खुश है,
और बैचेन भी है उनके लिए,
अपनी खुशी बाँटने के लिए,
उनको यह याद दिलाने के लिए,
कि उनसे तुमको कितना मोह है,
और लाया है साथ में तू,
कुछ फूल उनके लिए,
ताकि खुश होकर वो फूलों के साथ,
तुमको भी खुशी से स्वीकार करें।
यह सोच रहा है तू ,
कि तुम्हारे विजय होने पर,
और लौटकर तुम्हारे उनके पास जाने पर,
वो तुम्हारे स्वागत में एक महफ़िल करेंगे,
दौड़कर वो तुमको गले लगायेंगे,
और बहुत खुश होंगे वो तुमसे मिलकर।
मगर क्या तू भूल गया,
कि कब था कल उनके पास समय,
तुमसे मिलने और बात करने के लिए,
उनके साथ तुमको रखने के लिए,
अपनों की तरह तुम्हारे साथ सम्मान करने के लिए,
अपना समझकर तुमसे रिश्तें निभाने के लिए।
मगर तू तो जा रहा है वहाँ,
छोड़कर अपने सभी उसूलों को,
अपनी पिछली बर्बादी को भूलकर,
उनके द्वारा अपने पिछले अपमान को भूलकर,
कितनी चमक होगी उनकी आँखों में,
तुम्हारे वहाँ जाने पर उनके बिना आमंत्रण के।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)