बिदाई गीत
लगन गीत
1
शादी सीधी सादी करना।
खर्चीली शादी से डरना।।
सामूहिक शादी में जाओ।
बिन पैसे की रश्म निभाओ।।
अक्सर देखा सीखी करते।
और घर सेठों का ही भरते।।
अगर अकल है अकल लगालो।
ज्ञान की बत्ती सतत जगालो।।
जीवन भर जो करो कमाई।
एक दिवस में दिया उड़ाई।।
ऐसा अब मत होने देना।
मंदिर में शादी कर लेना।।
सरकारी शादी होती है।
समझो वो खुशियां बोती है।।
समझो आज हकीकत को ही।
कम ख़र्चे के बहुमत को ही।।
दोहा-
खर्चीली शादी नहीं, करना तुम श्रीमान।
सीधी सादी श्यादि कर, जग में बनो महान।।
2
दहेज नाम का दानव मारो।
परदे पर परदा मत डारो।।
पढालिखाकर बेटी दे दी।
समझो लाख की पेटी दे दी।।
मत माँगो पैसा गाड़ी भी।
खेत मकान और बाड़ी भी।।
लोभ मोह लालच को छोड़ो।
जंग दहेज विरोधी छेड़ो।।
ना लूंगा ना लेने दूंगा।
नाव नहीं मैं खेने दूंगा।।
दहेज विरोधी सब बन जाना।
करो प्रतिज्ञा दहेज हो ना ना।।
दहेज ने कितनी बेटी छीनी।
दहेज चदरिया कर दो झीनी।।
दहेजप्रथा में जहर भरा है।
मेहनत वालों से ही धरा है।।
दोहा-
देना भी चाहे अगर, कोई तुम्हे दहेज।
लेना हमको है नहीं, कहकर कर परहेज।।
कितनी बेटी आजतक, लालच ने ली लील।
घोड़े को थोड़ा कभी, भी मत देना ढील।।
लेना देना ही नहीं, दहेज पिशाच है पाप।
जीते जी खुद्दार ही, बन ही जाना आप।।
पारित संसद में करो, ऐसा अध्यादेश।
दहेज भिखारी को मिले, फाँसी का आदेश।।
लूंगा न लेने दूंगा, कसम खाइये आज।
फेंकू से पाला पड़े, सिर से खींचो ताज।।
कलम सतत चलती रहे, करती रहे विरोध।
इक दिन जग में मानिये, आ जायेगा बोध।।
3
साजन के घर बेटी जाना।
जाकर घर को स्वर्ग बनाना।।
सास ससुर की सेवा करना।
मम्मी पापा सम अब कहना।।
बच्ची मेरी अच्छी रहना।
सुख दुख मिलकरके ही सहना।।
मात पिता की इज्जत हो तुम।
भाई बहन की हिम्मत हो तुम।।
करो नाम जग में उजियारा।
जीवन मे हो न अंधियारा।।
निर्णय मिलकरके ही लेना।
नैया हिलमिलजुलकर खेना।।
चलो अकेले थक जाओगे।
मिलकर ही मंजिल पाओगे।।
बगिया के तुम दोनों माली।
मिलकर अच्छी हो रखवाली।।
मुश्किल में मिलकर निर्णय लो।
हितकारी खुलकर निर्णय लो।।
घर की बातें घर में रखना।
घर के बाहर तुम मत करना।।
ईश्वर सम पति को तुम जानो।
पति के दुख निज दुख पहचानो।।
लाठी बन जाना साजन की।
सुनना नहीं बुराई उनकी।।
उंगली के जैसे मत रहना।
मुठ्ठी बनकर जग से कहना।।
सुंदर अपनी दुनिया गढ़ना।
सबको साथ साथ ले बढ़ना।।
वाद विवाद कभी मत करना।
वाद विवाद से बच के रहना।।
दोहा-
नहा दूध फल पूत हो, घर भी करे किलोल।
देह देहरी दे सदा, आनन्दम (मंगलमय) माहौल।।
खड़ा ऊंट नीचे पड़ा, ऊंचा बड़ा पहाड़।
बार बार की हार को, देना बड़ी पछाड़।।
चार दिनों की चांदनी, चार दिनों का खेल।
जीत सदा संभावना, मत हो जाना फेल।।
जुग जुग फैले नाम की, जग में प्यारी गंध।
ऐसा कुछ कर जाइये, दुनिया से सम्बन्ध।।
मीठे मीठे वचन से, कटते मन के जाल।
कह कह तुम पर नाज सब, करते ऊंचा भाल।।
4
जग ने ऐसी रीत बनाई।
बेटी को कर दिया पराई।।
भाई भगिनी मम्मी पापा।
सोच रहे मन खोकर आपा।।
हाथ पकड़कर साथ चली थी।
पापा के आंगन की कली थी।।
नहीं बोलते पापा तुम भी।
रोते हो होकर गुमसुम भी।।
जाओ बोले रोते रोते।
क्या ऐसे भी रिश्ते होते।।
शब्दों की परिभाषा गौण है।
शब्द नहीं है शब्द मौन है।।
पापा की है आशा शादी।
बेटी की परिभाषा शादी।।
कहते जल्दी से शादी हो।
जिम्मेदारी जो आधी हो।।
मेरे घर पर घर की ज्योती।
घर होता घर, घर जब होती।।
माँ की ममता की जो छाया।
दुनिया की बढ़कर के माया।।
माँ बिन बेटी जीयेगी क्या?
क्या खाएगी पीयेगी क्या?
डरो नहीं तुम भले दूर हो।
बेटी मेरी बहादूर हो।।
बिटिया घर की घर की बिटिया।
बोल पड़ी टूटी सी खटिया।।
कहाँ जा रही देखो बिटिया।
उड़ गई बनकर के वो चिड़िया।।
बेटी कहाँ चली अब मैया।
पूछे आंगन की गौरैया।।
खेल खिलौने सखी सहेली।
सीख रही जीवन की पहेली।।
कठिन काम लगन लिख देना।
इतना करुण रुदन लिख देना।।
दोहा-
करुण रुदन चलता रहा, मुख से कहे न बोल।
अंतर्मन करता रहा, अनबोले अनमोल।।
5
कौन कहाँ किसने यहाँ, लाया है दस्तूर।
खुद ही खुद खुद पूछते, पर खुद से मजबूर।।
बाबुल से बिटिया कहे, कैसी जग की रीत।
झरते नयनन कह रहे, बिलख बिलख कर प्रीत।।
बेटी के मन में सदा, चलता रहता द्वन्द।।
दर पापा का हो रहा, धीरे धीरे बंद।
जिसके आगे सोचने, की ही बची न राह।
केवल जीवित चेतना, करती रहे कराह।।
बिदा करे बेटी ‘सरल’, पल कितना गमगीन।
जैसे व्याकुल ही रहे, जल के बाहर मीन।।
अंतिम दोहा-
जब मन कीजे आइये, पापा के हर द्वार।
बढ़ा हमेशा ही मिले, कम नहीं होगा प्यार।।
-साहेबलाल दशरिये ‘सरल’