*बिदाई के दोहे*
बिदाई के दोहे
करुण रुदन चलता रहा, मुख से कहे न बोल।
अंतर्मन करता रहा, अनबोले अनमोल।।
कौन कहाँ किसने यहाँ, लाया है दस्तूर।
खुद ही खुद खुद पूछते, पर खुद से मजबूर।।
बाबुल से बिटिया कहे, कैसी जग की रीत।
झरते नयनन कह रहे, बिलख बिलख कर प्रीत।।
जब मन कीजे आइये, पापा के हर द्वार।
बढ़ा हमेशा ही मिले, कम नहीं होगा प्यार।।
बेटी के मन में सदा, चलता रहता द्वन्द।।
दर पापा का हो रहा, धीरे धीरे बंद।
जिसके आगे सोचने, की ही बची न राह।
केवल जीवित चेतना, करती रहे कराह।।
बिदा करे बेटी पिता, पल कितना गमगीन।
जैसे व्याकुल ही रहे, जल के बाहर मीन।।
नहा दूध फल पूत हो, घर भी करे किलोल।
देह देहरी दे सदा, आनन्दम माहौल।।
जुग जुग फैले नाम की, जग में प्यारी गंध।
ऐसा कुछ कर जाइये, दुनिया से सम्बन्ध।।
-साहेबलाल दशरिये ‘सरल’