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13 Oct 2022 · 1 min read

बिणजारी रे

भरी दुपहर में डामर की सड़क पर सूरज की दिशा में दौड़े चली जा रही थी
उसके पाँव में चांदी के मोटे कड़े और उनके निचे घुँघरू वाली कड़ियाँ और उनके निचे मोटी पाज़ेब थी
उसके घाघरे का घेर नापना उसकी गति के आगे बौना लगा
उसकी लूगड़ी में लगे पैबंद और उधड़ी किनारी का गोटा जाने कितनी कंटिली झाडियों से चुंबन की कहानी कहता रहा और उड़ता रहा उसके दौड़ने के संग
कांचली की डंसे ढीली थी या कसी हुई समझना मुश्किल था
बाली बोरले की कहानी भला कौन सुनता
कि होंठ कटे रक्त सने खुद ही कहते रहे सब
टिबड़ी के पीछे झाडियों में हँसी के फव्वारे छूटे पड़े थे और सड़क पर झांझर का रुदन बह रहा था
कड़क धूप में भरी दुपहरी में ये लोग सुस्ताते हैँ
कड़क धूप में भरी दुपहरी में शौच का स्थान खोजना बड़ी भूल थी

बिणजारी रे घुंघटियो खोल
नज़र उतारूँ थारी फूटरी

गेला मांय ऊभो चोरडो
मत जा ए बा’रन डावड़ी

ऐसा ही कोई गीत बज रहा है सड़क पर कहीं….

(अखबार सने हैं )

✍️nitu kumawat नटखट

Language: Hindi
1 Like · 125 Views
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