बिडम्बना
अजीब विडंबना है इस जीवन की, हर शख्स ही है परेशान।
टूटते जा रहे हैं रिश्ते सारे,
अपने ही अपनों के दुश्मन बन बैठे , स्वार्थी हो गए सारे।
कहानी घर घर की है, कहीं बेटा बहू तो ,कहीं मां-बाप स्वार्थी है।
बहू बेटी बन जाये,सास मां बन जाए ,
तो हर घर ही स्वर्ग हो जाए, पर ऐसा कहां हो पाता है,
बहू बेटी बन जाए तो उसको जलाया जाता है।
सास अगर मां बन जाए तो ओल्ड होम पहुंचाया जाता है ।
किस्मत वालों के घर पर ही यह मेल सही हो पाता है ,बहू बने बेटी सास बनी मांं , वह घर स्वर्ग बन जाता है।
कहना चाहूं मैं बस इतना ,बनो ना तुम बेटी सास बनो ना तुम मां ।
बस अपना अपना फर्ज निभाओ ,दिल में एक दूजे के लिए सम्मान जगाओ।
औरत हो औरत का दर्द तुम समझो , अपनी अपनी ना चलाओ हरदम एक दूसरे के मन को भी समझो।
पाकर आशीर्वाद अपने बड़ों का तभी तो तुम जीवन में सुख पाओगी
हर इंसान पूरा कर दे अपना फर्ज सच्चाई से तो हर परिवार जुड़ा रहे दिल की गहराई से।
देकर दुख किसी को कोई खुश नहीं रह पाएगा,
चाहे जो रिश्ता सब अपने अपने कर्मों का फल पाएगा।
मां मां होती है भूल नहीं तुम यह जाना ,जो भी हो जाए उस का कर्ज चुकाना।
जो निकलेगी आह उसके दिल से उससे बच ना पाओगे, लोगे मात पिता का आशीर्वाद तभी जीवन में सफल हो पाओगे।
जिसने जन्म तुम्हें दिया है उससे अकण ना दिखाना, वरना जो बोओगे वह काटोगे, आज मां-बाप हो तुम भी कल सास ससुर बन जाओगे।