” बिटिया गाय हमारी “
“शादी के दो हफ़्ते बीते हँसी खुशी मुस्काते,
पत्नी जी तब मान रही थीं मेरी सारी बातें,
एक रोज़ जीवन में मेरे घना अंधेरा छाया,
बीवी का असली स्वरूप जब सामने मेरे आया,
गुस्से में मुझ पर वो बड़ी जोर से चिल्लाई,
डर के मारे पलंग से मैंने तुरंत छलांग लगायी,
कोने में जा दुबका था, वो लगा रही थी घात,
बिन सावन होने वाली थी बेलन की बरसात,
बेलन की बरसातों से जब उस दिन मैं फुल गया,
उकसाया मैं पत्नी को क्यों नारी शक्ति भूल गया?
शब्दों में क्या बतलाऊँ क्या मनोदशा थी मेरी,
याद पुरानी ताज़ा हो गयीं सारी भूली बिसरी,
मम्मी बोली थी बिटिया,गाय सी बिल्कुल भोली,
गाय ये सींगों वाली है,सासु माँ ना बोली”