बिजली गिरी
आज फिर बिजली गिरी
बादल गरज कर ढल गया
उस अभागे का बिना
कारण से ही घर जल गया
जिंदगी भर जिस भरोसे
के भरोसे में रहा
वह भरोसेमंद ही देकर
भरोसा छल गया
बर्फ का था एक महल
जो शीत में चलता रहा
जरा सी गर्मी पड़ी तो
मोम जैसा पिघल गया
आदमी की उम्र का भी
हाल सूरज सा दिखा
सुबह से चलता रहा और
शाम को बस ढल गया
आजकल के मौसमों का
मत यकीं करना कभी
इस पल में कुछ और था
और उस पल में बदल गया