बिछड़ गए लाल गुरूयों के
बिछड़ गए लाल गुरूयों के,
बिछड़ गईया माएँ,
चढ़ -चढ़ आए सिरसा,
चढ़ती घटाएँ और चलती तेज हवाएँ।
बाणी पढ़ते, बाँट कर छकते,
सिक्ख गुरूयों के प्यारे।
महलों में खेडण लाल गुरूयों के,
जैसे चमकने अम्बरी तारे।
हँसती – बसती अन्नदपुरी को,
घेरा आने बलाएँ….
पापी पाप कमावण लगे,
भूल कर खायीं सोहें।
तक कर परिवार गुरू का,
करते जान -माल की लुटे-खोहें।
लगा कर सिर -धड़ की बाज़ी सिंखा,
कर दी तलवारों की छाएँ…
बदल गरजण, तलवारें खड़कन,
रूह धरती की काँपे I
खिंड गया परिवार दसमेश का,
कोई दाहिने, कोई बांये।
आगे की अनहोनी घटु ,
मनदीप हाथ जोड़ माँगे दुआएँ …