बिछड़ी हुई गली
बिछड़ी हुई गलियों में बीती कहानी देखी।
जगह-जगह में यादों की छिपी निशानी देखी।।
परत हट गई है, धुंध भी आँखों की हटी अब।
गुजरा गली तो बचपन की जिंदगानी देखी।।
तस्वीर छपी अखबार के वो आए शहर में ,
यारों के हाथों…वो तस्वीर.. पुरानी देखी।।
वो चूम के माथा, धोए पग आँख-पानी से।
पलकों में बिठाकर पूजते महमानी देखी।।
कदम-कदम में चाहत की बारिश से भींगे हम,
झूमती, मदमस्त, अल्हड़ सी….दीवानी देखी।।
वो बरसों के गुजरे पल मानो कल की बातें,
टोली में यारों की…… मस्ती ..रूहानी देखी।।
बाग-बाग हुआ दिल, पाँव जमीं पे न थमते अब,
यारों को बीते पल……..याद मुँह-जबानी देखी।।
लगा गले से रो लिये , ..कुछ नाराज दिल ने भी,
कह , दूर रहना …अपनों से …..बेइमानी देखी।।
ना भूलते “जय” अपनों को, ….जो दूर रहते है।
आँखों में पानी सबके …..मिल.. नादानी देखी।।
संतोष बरमैया “जय”