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10 Aug 2021 · 1 min read

बिछड़ता इश्क़

इश्क़ के मज़ार पर चादर चढ़ाने आए हैं वो
अब किसी और के हो गए बताने आए हैं वो

मुस्कुराकर आँसु पोंछने की गुज़ारिश उनकी
पल भर चुप करा उम्र भर रुलाने आए हैं वो

‘दोस्त’ बनकर न रह सकेंगे ‘अजनबी’ बेहतर
संग बिताए लम्हों की यादें मिटाने आए हैं वो

कोई सबूत न रह जाए कि मरासिम था कभी
साँस लेते सभी ख़तों को दफ़नाने आए हैं वो

जात ओ धर्म का मसअला है दरम्यान अपने
कहा ज़माने का बा दस्तूर निभाने आए हैं वो

क्या बदला नज़र नज़रिया या नियत ‘महवश’
पूछे कोई उनसे पर ये थोड़े बताने आए हैं वो !

सर्वाधिकार सुरक्षित-पूनम झा (महवश)

2 Likes · 1 Comment · 212 Views
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