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9 Jul 2021 · 58 min read

बिखरी यादें…..7

[1/2, 4:03 PM] Naresh Sagar: …. आज के मिशनरी
दिमाग में युद्ध
जुबान में बुद्ध
भाषण में एकता
अपनों को नहीं देखता
….. सबसे बड़े मिशनरीयों के सदगुन यही है
नमो बुद्धाय जय भीम जय संविधान
=======
बेखौफ शायर,लेखक, चिंतक
??????
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[1/3, 12:51 PM] Naresh Sagar: दिनांक…… 03/01/2021
दिन….. रविवार
विषय…. कांटों की राह मुझे चलने दो
कांटों की राह मुझे चलने दो
मुझे अपने आप संभलने दो
जीवन क्या है मुझे जीना है
मुझे हर आफत से लड़ने दो
कांटों की राह मुझे………….…..
ये जीवन नहीं आसान बहुत
यहां क़दम क़दम इम्तिहान बहुत
यहां ऊंच नीच का भेद बड़ा
मुझे खुद को साबित करने दो
कांटों की राह मुझे…………….
ये देश मेरा खुशहाल रहे
दुश्मन हर वक्त बेहाल रहे
मुस्काता रहे तिरंगा हर दम
शरहद पर मुझको जाने दो
कांटों की राह…………..
ये धर्म लड़ाई बंद करो
ना मानवता में गंध करो
हम एक थे एक ही हो जाएं
मुझे गीत तुम ऐसे लिखने दो
कांटों की राह…………..
ना मंजिल इतनी आसान मिले
कांटों में देखो गुलाब खिलें
हिम्मत ना कभी होती बेजा
आंधी में दीप जलाने दो
कांटों की राह…………
चन्द्र गुप्त कभी तुम पढ़ लेना
भगवान बुद्ध को पढ़ लेना
पढ़ लेना कभी तुम हरिश्चंद्र
नेताजी सुभाष सा लड़ने दो
कांटों की राह …………….
बाधाओं से हिम्मत कब हारी
कब वक़्त एक सा रहा भारी
संघर्ष बना जीवन जिसका
मुझे ऐसे पात्र तुम पढ़ने दो
कांटों की राह…………….।
मैं वक्त बदलने वाला हूं
बाधाओं से लड़ने वाला हूं
मंजिल तक जाना है मुझको
मुझे जीत का स्वागत करने दो
कांटों की राह……………।।
========
प्रमाणित करता हूं कि प्रतियोगिता में प्रस्तुत गीत मेरा मूल व अप्रकाशित गीत है
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़,उत्तर प्रदेश
[1/3, 2:06 PM] Naresh Sagar: साधुओं के हाथों में,जब से सत्ता आती है।
लोकतंत्र की आत्मा , दर्द से खूब चिल्लाई है।।
धर्म लड़ाई छीड गई है,मानवता अब दूर है।
चारों और अफरा तफरी है,डर दहशत और शौर है।।
मंदिर वाले संसद पहुंचे, देख ये संसद रोती है।
भारत मां भी चुपके चुपके, आंसू रोज बहाती है।।
शहीदों की रूह रो रही,देख ये पंडागरदी।
देश में बस खुशहाल डोल रही , गुंडों की गुंडागर्दी।।
अभिव्यक्ति की आजादी,फंसी मौत के पंजों में।
संविधान की धारा जैसे, बसी हो नंगे गंजो में।।
राजनीति की छवि को देखो, दिन दिन बिगड़ रही।
साधुओं की जमघट जबसे, कुर्सी रगड़ रही है।।
मुलला और पादरी सारे,संसद को है घूर रहें।
जेल में जानें वाले अक्सर, सत्ता में मंगरूर रहे।।
नेताजी जैसा नेता, एक ना हमें चमकता है।
मुझे बताओ किस नेता का, चरित्र दमकता है।।
जिसको देखो फंसा हुआ है, घोटाले की गारा में ।
जबकि जेल में होना था, संविधान की धारा में।।
[1/3, 2:09 PM] Naresh Sagar: दिनांक…… 03/01/2021
दिन….. रविवार
विषय…. कांटों की राह मुझे चलने दो
कांटों की राह मुझे चलने दो
मुझे अपने आप संभलने दो
जीवन क्या है मुझे जीना है
मुझे हर आफत से लड़ने दो
कांटों की राह मुझे………….…..
ये जीवन नहीं आसान बहुत
यहां क़दम क़दम इम्तिहान बहुत
यहां ऊंच – नीच का भेद बड़ा
मुझे खुद को साबित करने दो
कांटों की राह मुझे…………….
ये देश मेरा खुशहाल रहे
दुश्मन हर वक्त बेहाल रहे
मुस्काता रहे तिरंगा हर दम
शरहद पर मुझको जाने दो
कांटों की राह…………..
ये धर्म लड़ाई बंद करो
ना मानवता में गंध करो
हम एक थे एक ही हो जाएं
मुझे गीत प्यार के लिखने दो
कांटों की राह…………..
ना मंजिल इतनी आसान मिले
कांटों में देखो गुलाब खिलें
हिम्मत ना कभी होती बेजा
आंधी में दीप जलाने दो
कांटों की राह…………
चन्द्र गुप्त कभी तुम पढ़ लेना
भगवान बुद्ध को पढ़ लेना
पढ़ लेना कभी तुम हरिश्चंद्र
नेताजी सुभाष सा लड़ने दो
कांटों की राह …………….
बाधाओं से हिम्मत कब हारी
कब वक़्त एक सा रहा भारी
संघर्ष बना जीवन जिसका
मुझे ऐसे पात्र तुम पढ़ने दो
कांटों की राह…………….।
मैं वक्त बदलने वाला हूं
बाधाओं से लड़ने वाला हूं
मंजिल तक जाना है मुझको
मुझे जीत का स्वागत करने दो
कांटों की राह……………।।
========
प्रमाणित करता हूं कि प्रतियोगिता में प्रस्तुत गीत मेरा मूल व अप्रकाशित गीत है
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़,उत्तर प्रदेश
[1/4, 2:18 PM] Naresh Sagar: कोरोना की आड़ में, छीन रहे सब अधिकार।
देश का होने वाला है, जल्दी बंटाधार ।।
जल्दी बंटाधार ,मचेगी हां हां कारी।
बढ़ेगी चारों और, तेजी से बेरोजगारी।।
कह “सागर” कविराय,हाथ पै हाथ धरोना।
डस लेगी सरकार ,बदनाम होगा कोरोना।।
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[1/5, 3:27 PM] Naresh Sagar: नहीं छोड़ा शमशान भी,मच गया हाहाकार।
घोटाले बाजों ने कैसा, दिया है ये साकार।।
दिया है ये साकार , कितने यूं ही मर गये।
ज़ालिम बन यमराज, कैसा करतब कर गये।।
कह “सागर” कविराय,मिले ना इनको माफ़ी।
जैसा बोया बीज ,लगा दो उनको फांसी।।
======
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[1/5, 7:52 PM] Naresh Sagar: गीत प्रेम के लिखें,मन में रखें खटाश।
ऐसे कवियों से बचों, जो लिखते बकवास।।
…… डॉ. नरेश “सागर”
05/01/2021
[1/6, 3:45 PM] Naresh Sagar: किसान आंदोलन पर, चुप क्यूं है सरकार।
जो जनता को कर रही,है इतना लाचार।।
[1/7, 12:37 AM] Naresh Sagar: मेरे सीने पैर ना तानों अपने तीर कमान।
मैं बोलूं भारत को भारत ना बोलूं हिन्दुस्तान।।
[1/7, 1:12 AM] Naresh Sagar: आयी है गरीबी गम लेकर
हंसती आंखों में नमी लेकर
खुशियों को घर के बाहर किया
आ बैठी है घर के अंदर
आती है ……………..
सपने टूटे और हम टूटे
अपने भी सारे है रूठे
रस्ते तो सारे बंद पड़े
जाएं तो अब जाएं किधर
आती है ………..
खुशियों को अब घर तरसे है
आंखों से सावन बरसे है
किसको बतलाएंगे मजबूरी
ऐसे में मिले ना कोई रहबर
आती है…………
दिखता है कुछ और सच कुछ है
परिवार है संग तो सब कुछ है
समझाते हैं एक दूजे को
उतारे भी है घर की नज़र
आती है………….
खुलकर ना कभी जी पाते हैं
मन का ना कुछ खा पाते हैं
बस देखके जी बहलाते हैं
उगते ही नहीं पैसों के पर
आती है…………….
टोटे में टोटा होता है
जाने क्यूं ऐसा होता है
एक और भीड़ है दौलत की
एक और बना फांकों का घर
आती है………..
ना कारोबार में बरकत है
ना किस्मत में कोई हरक़त है
दिन रात भजन होता है पर
दुआओं में आता नहीं असर
आती है…………..
सामने बड़ी जिम्मेदारी है
ये देख के हिम्मत हारी है
कैसे होगा ये कर्ज अदा
कैसे लौटेंगी खुशीयां घर
आती है…………
ये मर्ज बढ़ता ही जाता है
ये कर्ज बड़ा ही जाता है
सब और फकीरी डोल रही
जाएं तो अब जाएं हम किधर
आती है………….
जैसा होना हो जाने दो
मुझे मरना है मर जाने दो
कुदरत ने मूंदली है आंखें
अब कौन बनेगा रहबर
आती है………….
जीना कैसा तंगहाली में
ताना दे सब कंगाली में
इज्जत भी होती शर्मीदा
चलती है जब महफिल की लहर
आती है……….
अरमान बिखर सारे जाते
मेहमान जो ऐसे में आते
हुनर भी ऐब बन जाते हैं
सूखे जब पैसों का सजर
आती है ………..
मजबूर ना इतना रब करना
जो बिन पैसों के पड़े मरना
मेरे कर्म का मुझको फल दे दे
ना इतना कलेजा पत्थर कर
आती है ………….
टूटे ना भरोसा गुरबत में
कभी सोच हमें भी फुर्सत में
चमकादे हमारी भी किस्मत
अरदास करें तुझसे “सागर”
आती है…………!!
========
7/1/21
रात्रि 1:12
[1/7, 1:18 AM] Naresh Sagar: आयी है गरीबी गम लेकर
हंसती आंखों में नम लेकर
खुशियों को घर के बाहर किया
आ बैठी है घर के अंदर
आती है ……………..
सपने टूटे और हम टूटे
अपने भी सारे है रूठे
रस्ते तो सारे बंद पड़े
जाएं तो अब जाएं किधर
आती है ………..
खुशियों को अब घर तरसे है
आंखों से सावन बरसे है
किसको बतलाएंगे मजबूरी
ऐसे में मिले ना कोई रहबर
आती है…………
दिखता है कुछ और सच कुछ है
परिवार है संग तो सब कुछ है
समझाते हैं एक दूजे को
उतारे भी है घर की नज़र
आती है………….
खुलकर ना कभी जी पाते हैं
मन का ना कुछ कर पाते हैं
बस देखके जी बहलाते हैं
उगते ही नहीं पैसों के पर
आती है…………….
टोटे में टोटा होता है
जाने क्यूं ऐसा होता है
एक और भीड़ है दौलत की
एक और बना फांकों का घर
आती है………..
ना कारोबार में बरकत है
ना किस्मत में कोई हरक़त है
दिन रात भजन होता है पर
दुआओं में आता नहीं असर
आती है…………..
सामने बड़ी जिम्मेदारी है
ये देख के हिम्मत हारी है
कैसे होगा ये कर्ज अदा
कैसे लौटेंगी खुशीयां घर
आती है…………
ये मर्ज बढ़ता ही जाता है
ये कर्ज बढ़ा ही जाता है
सब और फकीरी डोल रही
जाएं तो अब जाएं हम किधर
आती है………….
जैसा होना हो जाने दो
मुझे मरना है मर जाने दो
कुदरत ने मूंदली है आंखें
अब कौन बनेगा रहबर
आती है………….
जीना कैसा तंगहाली में
ताना दे सब कंगाली में
इज्जत भी होती शर्मीदा
चलती है जब महफिल की लहर
आती है……….
अरमान बिखर सारे जाते
मेहमान जो ऐसे में आते
हुनर भी ऐब बन जाते हैं
सूखे जब पैसों का सजर
आती है ………..
मजबूर ना इतना रब करना
जो बिन पैसों के पड़े मरना
मेरे कर्म का मुझको फल दे दे
ना इतना कलेजा पत्थर कर
आती है ………….
टूटे ना भरोसा गुरबत में
कभी सोच हमें भी फुर्सत में
चमकादे हमारी भी किस्मत
अरदास करें तुझसे “सागर”
आती है…………!!
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7/1/21
रात्रि 1:12
[1/7, 4:36 PM] Naresh Sagar: साल के साथ कलैंडर बदला,बदली नहीं पर सोच।
रिश्ते सब लंगड़े हुए, बातों में है मोच।।
बातों में है मोच ,दूरीयां हो गई लम्बी।
अपने ही आते नज़र ,अब तो यार फिरंगी।।
कह सागर कविराय,भावना बदले वाली।
रूखा मने नववर्ष, होली और दीवाली।।
[1/8, 8:39 AM] Naresh Sagar: 20-20साल ने तोड़ा था भरपूर।
सारे सपने कर दिये उसने चकनाचूर।।
उसने चकनाचूर दूर भी अपने भागे ।
कितने घर की दौड़ में जान दे गये अभागे।।
कह सागर कविराय बिछुड़ी ग्रे बबलू बंटी।
बड़ी मनहूस साल थी निकली भैया 20।।
=======8/1/21
[1/8, 8:58 AM] Naresh Sagar: सच को सच कहने की बात करता हूं गर।
दुश्मन पर में खड़े हजार हो जातें हैं।।
बुलाने से भी कब आते हैं वो आवाज सुन।
सत्ता धारी नेता अपने हो जाते हैं।।
झूठ हमें आती नहीं,सच उन्हें भाती नहीं।
इस बात पै अकेले खड़े हम यह जाते हैं।।
[1/8, 4:54 PM] Naresh Sagar: भूख ने मारा मारा नहीं था
प्यास ने मारा मारा नहीं था
[1/8, 9:39 PM] Naresh Sagar: मंदिर में इज्जत लूटे,होवे चीख पुकार।
मरजाती इंसानियत,सोवे देव हजार।।
होवे देव हजार ,ना जागें लाज लूटने पर।
छोड़ के सब परिवार ,जाता क्यूं देव चरन पर।।
कह सागर कविराय ,कवि तो आंखें खोलो।
छोड़ो पूजा पाठ ,ना जुल्म दानव के झेलो।।
8/1/21
[1/8, 9:47 PM] Naresh Sagar: ना अवोध ना युवतियां, ना अधेड़ ना वृद्ध।
नीयत सब पर है डिगी,बचा नहीं कुछ शुद्ध।।
बचा नहीं कुछ शुद्ध, मंदिर मस्जिद में।
करदी इज्जत तार, जालिम की ज़िद ने।।
कह सागर कविराय,चढादो इनको फांसी।
बांटें जो हर रोज़ ,दहशत और उदासी।।
[1/8, 9:52 PM] Naresh Sagar: चीख रही है बेटियां ,दो हमको सम्मान।
बहुत सहा अब बंद हो,नारी का अपमान।।
नारी का अपमान , नहीं है पैर की जूती।
करलो अब बदलाव जो है मन में त्रुटि।।
[1/8, 9:57 PM] Naresh Sagar: भूखा प्यासा सड़क पर,बैठा देख किसान।
इंसा भी हैरान हैं , हैरत में भगवान।।
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[1/8, 10:08 PM] Naresh Sagar: चीख रही है बेटियां ,दो हमको सम्मान।
बहुत सहा अब बंद हो,नारी का अपमान।।
नारी का अपमान , नहीं है पैर की जूती।
करलो अब बदलाव जो है मन में त्रुटि।।
कह सागर कविराय जुल्म अब और सहे ना।
बनना चाहें अब पड़े , हमें फूलन बहना।।
8/1/21
[1/8, 10:20 PM] Naresh Sagar: चीख रही है बेटियां ,दो हमको सम्मान।
बहुत सहा अब बंद हो,नारी का अपमान।।
नारी का अपमान , नहीं है पैर की जूती।
करलो अब बदलाव जो है मन में त्रुटि।।
कह सागर कविराय जुल्म अब और सहे ना।
बनना चाहें अब पड़े , हमें फूलन बहना।।
8/1/21
कह सागर कविराय , मांग रहे ना भीख।
फूलन भी बन जाएंगे,जो बढ़ती रही ये चीख।।
[1/8, 10:29 PM] Naresh Sagar: चेहरे पर गम की झुरियां लेकर ना चला कर।
हम दर्द तेरे बाद में उड़ायेंगे खिल्ली मां।।
[1/11, 10:46 PM] Naresh Sagar: हाय गरीबी जान ही लेगी या मुझको जीने देगी
आखिर कब तक साथ रहेगी या पीछा भी छोडेगी
बहुत हुई बफादारी साथ तेरे संग रहने की
किसी लूटेरे के घर जाकर उसका साथ निभा जा
जी भर गया है तुझसे अब ना मेरे आ
अपनी वफ़ा के गीत तू जा कहीं और गा
तूने सारे सपने तोड़े तूने बहुत कुछ छीना है
जा अब जा तू छोड़ दें मुझको अब जीना है
खाना पीना हंसना हंसाना सब कुछ तूने छीना है
जा भग जा मनहूस कहीं तू मुझको थोड़ा जीना है
बहुत दिनों से तेरी बजह से कुछ भी अच्छा नहीं हुआ
बहुत कुछ छीना है मुझसे जब से तूने है छुआ
बीवी ने इच्छाएं मार ली बच्चों ने मन मार लिया
मां ने भी अपनी इच्छाओं का खाली जारी लिया
बोझ सभी पर बन बैठा हूं खुद पै भी परिवार पै भी
जीना बड़ा मुहाल हुआ है घर पै भी बाहर भी
खाने के लाले है घर में जिम्मेदारी मुंह फाड़े
रिश्ते नाते झूठे निकले सबने है पल्ले झाड़े
हां तूने दुःख देकर मुझको अब तक बहुत रूलाया है
पर रिश्तों के नकली चेहरों को भी खूब दिखाया है
पास हमेशा रहने वाले दूर दूर सब भागे है
अब बता मैं हूं अभागा या वो सब अभागे है
अब तू भी जल्दी से भग जा तनिक नहीं तू भाती है
कितनी मुश्किल कितनी मुशिबत साथ तू लेकर आती है
हाथ जोड़ता हूं मैं तेरे मुझको अब तो माफ़ करो
अपनी परछाई के साथ तुम मेरे घर को साफ करो
रहम खाओ और जाओ यहां से मुझको थोड़ा हंसने दे
मैं भी खुशीयों के संग खेलूं मुझको थोड़ा जीने दे
11/1/21……..10.41
[1/11, 11:43 PM] Naresh Sagar: लाचारियां
बेगारियां
बीमारीयां
घेर रखा है सभी ने भरे बाजार में
पास सब कुछ है मगर
हूं बहुत लाचार मैं
हाथ में अपने नहीं कुछ
जो बदल दूं वक्त को
बेवजह कहां बहादू
वोलो अपने रक्त को
रास्ते पथरीले सारे
बंद सब हमदर्दीयां
पड़ गया सबको पता
जबसे है खाली मुठ्ठीयां
अब भला किस किस लड़ूं
बीमारीयां या बेगारीयां
मिल रहीं हैं हर तरफ़ से
अब मुझे रूसवाईयां
कोई नहीं है किसी का
वक्त गर हो जा बुरा
सामने मिलते गले
पीछे से भौंके है छुरा
वक्त बुरा क्या पड़ा
सब बुरे बनते गए
अपने बनके अपने
बस मुझे छलते गये
सोचना चाहूं तो कुछ भी
सोच पाता हूं नहीं
बात दिल की भी किसी से
अपनी मैं कह पाता नहीं
कैसे बदलूं वक्त अपना
कैसे दिन अच्छे लाऊं
बुरी तरहां से घीरा हुआ हूं
जाऊं तो कहां जाऊं
बेवशी इतनी भी होगी
कब ये सोचा था मैंने
जिंदगी में किसी का
कब बुरा किया था मैंने
जाने किस गुनाह की
सजा काट रहा हूं मैं
साथ अपने सबको
उसमें फांस रहा हूं मैं
बीवी और मेरे बच्चो की
खुशीयां रोज तड़पती हैं
मां की ममता देख हाल में
ये
तन्हा रोज सिसकती है
है खुदा तो है कहां जो वो
छुपकर बैठा है
मेरी बेवशी पर जो
चुप्पी साधे बैठा है
भ्रम टूटने से पहले
उसको वक्त बदलना होगा
वर्ना एक और नास्तिक
उसको पैदा करना होगा
थक गया हूं
हार गया हूं
मैं एक दम बेजार हुआ हूं
इतना ज्यादा टूटा हूं
खुद से भी तार तार हुआ हूं
जोड़ सके तो जोड़ मुझे भी
अब मैं बहुत लाचार हुआ हूं
फिर ना कहना सागर को
कितना शखत ये कार हुआ है
======11/1/21
11.42 रात्रि
[1/12, 1:52 PM] Naresh Sagar: देश लूटे और मैं चुप बैठूं,ये कैसे हो सकता है ।
सत्ता अपनी नीति थोपे, ये कैसे हो सकता है।।
देश सुरक्षा फर्ज हमारा ,पीछे कैसे हट जाऊं।
जयचंद को महाराणा लिखदूं, ये कैसे हो सकता है।।
=========
बेखौफ शायर… डॉ. नरेश “सागर”
[1/13, 4:50 PM] Naresh Sagar: वोटों से पहनाएंगे हम, जीत का गहना
भारत की होगी शेरनी, माया मेरी बहना
गुंडों का सफाया तो होगा, पूरे जोर से
आएगी जब बसपा, पूरे जोर-शोर से
फिर ना पड़ेगा किसी को, जुल्म ये सहना
भारत की होगी शेरनी, …………..

मां- बहन और बेटियां, आजाद रहेंगी
दलितों की सारी बस्तियां, आवाद रहेंगी
बस बोट वाले दिन ही, गहरी नींद ना सोना
भारत की होगी शेरनी,…………..

मजदूर- किसान- मुस्लिम सब, बहना को पुकारें
सब कह रहे अब तो, सब बहना के सहारे
मैंने भी नीले रंग का, चोला है ये पहना
भारत की होगी शेरनी…….. …

बाबा और कांशीराम के, विचार बढ़ेंगे
दुश्मन की छाती पर, जब हाथी ये चढेगे
फिर ना पड़ेगा किसी भी, बेबस को यूं रोना
भारत की होगी शेरनी,……………

सबसे जुदा- अदा है मेरी, माया बहन की
कथनी -करनी एक है, मेरी माया बहन की
“सागर” इसी बात पर, तन- मन है सब खोना
भारत की होगी शेरनी, माया मेरी बहना।।
=======
बेखौफ शायर/ गीतकार/लेखक
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[1/13, 6:25 PM] Naresh Sagar: अब तो जीने को जी नहीं करता।
ज़हर पीने को जी नहीं करता।।
कसमकश में है जिंदगी मेरी
अभी बिखरने को जी नहीं करता
टूटते ख्बाव बहुत रूलाते है
उदास रहने का मन नहीं करता
छोड़कर जा चुके हैं सब मुझको
तन्हा रहने को जी नहीं करता
नहीं पास कोई भी अपना मेरे
[1/13, 10:23 PM] Naresh Sagar: अब तो जीने को जी नहीं करता।
ज़हर पीने को जी नहीं करता।।
कसमकश में है जिंदगी मेरी
अभी बिखरने को जी नहीं करता
टूटते ख्बाव बहुत रूलाते है
उदास रहने का मन नहीं करता
छोड़कर जा चुके हैं सब मुझको
तन्हा रहने को जी नहीं करता
कोई अपना नहीं है पास मेरे

काम है ना कोई काज रहा अब तो
खाली रहने को मन नहीं करता
नज़र में राजा हूं सबके पहले से
अब उतरने को जी नहीं करता
हुनर बने हैं बेशक ऐब अब सारे
छोड़ दूं करतब ये जी नहीं करता
बुरा हो वक्त तो मशवरा मुफ्त में लेलो
[1/13, 10:51 PM] Naresh Sagar: उदासीयां ही उदासीयां है अब तो।
खुशी के दिन तो चले गए हैं कहीं।।

कहां से लाऊं ढूंढकर खुशीयां।
सजर पै हो तो तोड़ भी लाऊं।।

आस लेके रोटी की निकल जाता हूं मैं घर से।
भूख लेकर निकलता हूं भूख लेकर ही आता हूं।।

बदलते भी है मुकद्दर वालों के मुकद्दर।
अपने मुकद्दर में मुकद्दर ही नहीं है।।

सुबह से रात तक तकता हूं रोटियां।
दिखती हैं मगर कब मिलती है रोटियां।।

आरती ,पूजा,दुआ सब हो गई स्वाह।
एक भी हुनर मेरे कभी काम ना आया।।

बदलेगा वक्त भी सुनते सुनते कान बूढे हो गये।
उम्मीद मगर विश्वास की पूरी नहीं हुई।।

किस तरह बदलूं मैं बुरे वक्त को।
रास्ता कोई भी नज़र आता नहीं।।

मौत कब हल है भला किस बात की।
फिर भला सांसें मैं अपनी तीन लूं।।

सूरज तो रोज ही निकलता है मगर।
मेरे घर में रोशनी आती नहीं वर्षों हुए।।

उसने मांगा मिल गया उसको जहां।
मुझको तो मेरा भी घर ना मिला।।

छीनने को सब खड़े हैं सांस भी।
कोई भी अपना नज़र नहीं आता।।

सच्ची है झूंठी है लिए बैठा हूं।
मैं उम्मीदों के दिये चौखट पर।।

हसर जो चाहे मेरा हो जाए।
पर गुनाह तो मेरा साबित करो।।

घीर गया हूं हर तरफ से यार मैं।
छोड़ दें मुझको परेशानी में हूं।।

कौन है जो अब संभालेगा मुझे।
कौन है जो अब सदा देगा मुझे।।

हाल दिल का किसको बताए अपना।
पूछकर खिल्ली वहीं उडायेगा।।

रब है तो रब से ही मांग लेता हूं।
मौत दे या दे मुझे भी तू खुशी।।

सो रही है कहीं आराम से।
मेरी भी किस्मत कहानी की तरहा।।

लौट आएगी खुशी अपनी भी कभी।
आज यही सोचकर हो जातें हैं।।
======13/1/21
10.51 रात्रि
[1/14, 5:40 PM] Naresh Sagar: हाय गरीबी नाश हो तेरा,पूंजा तेरा छीप जाएं।
मौत बेशक आ जाए पर,तू ना घर वापस आए।।
[1/15, 12:26 PM] Naresh Sagar: देशभक्ति के मान को, जो देता सम्मान।
उसका जिंदा मान है, जिंदा स्वाभिमान।।
देश सुरक्षा जो लड़ें,त
[1/15, 1:11 PM] Naresh Sagar: दिनांक…..15/01/2021
विषय…. कांटों की राह मुझे चलने दो
कांटों की राह मुझे चलने दो
मुझे अपने आप संभलने दो
जीवन क्या है मुझे जीना है
मुझे हर आफत से लड़ने दो
कांटों की राह मुझे………….…..
ये जीवन नहीं आसान बहुत
यहां क़दम क़दम इम्तिहान बहुत
यहां ऊंच नीच का भेद बड़ा
मुझे खुद को साबित करने दो
कांटों की राह मुझे…………….
ये देश मेरा खुशहाल रहे
दुश्मन हर वक्त बेहाल रहे
मुस्काता रहे तिरंगा हर दम
शरहद पर मुझको जाने दो
कांटों की राह…………..
ये धर्म लड़ाई बंद करो
ना मानवता में गंध करो
हम एक थे एक ही हो जाएं
मुझे ऐसे गीत ही लिखने दो
कांटों की राह…………..
ना मंजिल इतनी आसान मिले
कांटों में देखो गुलाब खिलें
हिम्मत ना कभी होती बेजा
आंधी में दीप जलाने दो
कांटों की राह…………
चन्द्र गुप्त कभी तुम पढ़ लेना
भगवान बुद्ध को पढ़ लेना
पढ़ लेना कभी तुम हरिश्चंद्र
नेताजी सुभाष सा लड़ने दो
कांटों की राह …………….
बाधाओं से हिम्मत कब हारी
कब वक़्त एक सा रहा भारी
संघर्ष बना जीवन जिसका
मुझे ऐसे पात्र तुम गढ़ने दो
कांटों की राह…………….।
मैं वक्त बदलने वाला हूं
बाधाओं से लड़ने वाला हूं
मंजिल तक जाना है मुझको
मुझे जीत का स्वागत करने दो
कांटों की राह……………।।
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प्रमाणित करता हूं कि प्रतियोगिता में प्रस्तुत गीत मेरा मूल व अप्रकाशित गीत है
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़,उत्तर प्रदेश
[1/15, 1:24 PM] Naresh Sagar: देशभक्ति के मान को, जो देता सम्मान।
उसका जिंदा मान है, जिंदा स्वाभिमान।।
देश सुरक्षा जो लड़ें,वो कहलाता वीर।
भारत मां की धीर को, बांधे वो कर्मवीर
[1/15, 2:00 PM] Naresh Sagar: करूं शहीदों को नमन, मैं तो सो सो बार।
दुश्मन से लड़ जाऊंगा, समझो ना लाचार।।
मैं भारत का पुत्र हूं, मैं भारत की शान।
जब तक दम में दम रहे, महकें हिंदुस्तान।।
[1/18, 5:16 PM] Naresh Sagar: घर जल रहें हैं, जाएं तो जाएं किधर।
ना इधर रास्ता है ,ना रास्ता उधर।।
[1/18, 9:57 PM] Naresh Sagar: …लेख…
सागर का सफरनामा
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“सरफरोशी मेरे, सर से नहीं जाती।
चापलूसी की अदा ,हमसे नहीं आती।।
मैं अपने जमीर को, मरने दूं भी तो कैसे ।
मेरे खून से मेरी, जवानी नहीं जाती।।”

उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर बुलंदशहर की सरजमीं पर गांव भटौना है जो कुरली-भटौना के नाम से प्रसिद्ध है वहीं 5 जून 1975 को मैंने एक मध्यम परिवार में जन्म लिया,बचपन में इतना तन्दरूस्त था कि कई दिनों तक मेरी मां ने मुझे दूध भी नहीं पिलाया था कहती थी ….”ये तो कोई भूत है ” जब तक दूसरी महिला ने अपने बच्चे को नहीं दिखाया जो मेरी ही तरहा मोटा ताजा था तब तक मुझे दूध नहीं पिलाया गया। हम चार भाई और दो बहन थे सबसे छोटा मैं ही हूं।
बचपन से ही मुझे फिल्मों की कहानी लुभाती इसलिए मैं बहुत सारे एक्ट्रेस की मिमिक्री भी करता था। मैंने अपनी परछाई से ही डांस सीखा और उस समय मैं अपने गांव का पहला माईकल जैक्सन था शादी -विवाह में डांस करना हो या स्टेज पर मेरा जलवा था ,किशोर कुमार की आवाज में गाना -गाना मुझे बहुत अच्छा लगता था क्योंकि बहुत हद तक मेरी आवाज़ उनसे मेल करती थी । कालेज के समय मेरी पहचान शायरी और गायकी के अलावा अभिनय के क्षेत्र में भी थी, पढ़ाई में मैं कभी ज्यादा होशियार नहीं रहा उसका एक बड़ा कारण था अक्सर मेरा बीमार रहना और मम्मी का लाड़ला होना। मम्मी अक्सर अपने पास लिटाकर गीत गंवाती थी अभी भी ये हरक़त हम कर लेते हैं शायद वहीं से गीत लिखने की शुरुआत पड़ी हो सबसे पहला गीत मैंने भारत रत्न बाबा साहेब डॉ.भीम राव अंबेडकर जी पर लिखा था, तब मैं कक्षा आठ में पढ़ता था ये गीत एक पैरोडी था।
कहने को पापा जी सरकारी मुलाजिम थे मगर कई-कई महीने तनख्वाह नहीं मिलने के कारण बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता था पापाजी अपने जीवन भर सिद्धांतवादी और ईमानदार रहें मेरी शैतानी और सुंदरता के कारण जो भी रिश्ते दार आता लाड़ में कुछ ना कुछ रुपए पैसे देकर जाता मैंने इन रूपयों से किराना का सामान रख लिया और धीरे-धीरे उस सामान को एक दुकान का रुप दे दिया गया और कुछ समस्याएं कम होने लगी। गरीबी हमारे पास अपने अच्छे खासे दिन बिताकर गई थी । घर में चार बार ऐसी भी चोरी की गई थी जब परिवार के पास केवल पहने हुए कपड़े ही रह गये थे।
बचपन से ही मैं भगत सिंह की सोच वाला रहा डरना और चापलूसी करना , झूठ बोलना मेरा कभी शौक नहीं रहा इन्हीं कारणों के कारण आज भी कुछ लोग मुझसे दूरी बनाए रखते है। एक बार मैं करीब आठ साल की उम्र में मम्मी जी के साथ घास लेने गया तो एक जाट ने मुझे पेशाब करने से रूकने को कहा ऐसा नहीं करने पर वो मेरे पीछे लाठी लेकर आने लगा तो मैंने भी मम्मी के हाथ से दरांती लेकर कहा…..”आ तेरा पेट फाड़ दूंगा” ।
एक बार मैं मूंग की फली टूटवाने के लिए चला गया तो जैसे ही किसान के घर मैं चारपाई बिछाकर बैठा तो जो साथ में कई औरतें और लड़कियां एक साथ थी बोली ……”खड़ा हो जा, जाट आ गया तो पिटेगा”। हमारा क्षेत्र जाट बहुबल क्षेत्र है ,मैंने कहा……”आज जो किसी ने कुछ भी कह दिया तो देखता हूं हमारे यहां कौन हमारी खाट पर बैठता है।” मेरी ये बात उस किसान ने सुनली और हंसकर बोला …..”चाय पानी लेकर आऊं चौधरी साहब”। मगर एक दिन जैसे ही एक किसान के यहां एक शादी में गए तो वहां का नजारा देख मुझे बहुत गुस्सा आया तब मैं कक्षा दसवीं में पढ़ता था वहां ऊंची-नीची जगह पर मोटा -मोटा गोबर की लिपाई पर यूं बैठाकर पत्तल सामने रखदी जबकि दूसरी और फर्स बिछे हुए थे मैंने खाना तो खा लिया मगर पत्तल नहीं उठाया तो हमारे साथ हमारा सरपंच भी था कहने लगा…..”बेटा पत्तल उठाले सभी उठा रहे हैं।”
मैंने कहा…..”ताऊ जी जब ये लोग हमारे यहां खानें आते हैं तो हम तो ऐसा नहीं करने देते ऊपर से हम कीचड़ सी मैं बैठा दिए मैं तो नहीं उठाऊंगा पत्तल.!” वो पत्तल सरपंच ने ही उठाए और पापाजी से शिकायत करदी तो पापा जी बोले……”चाचा तीन लड़कों की बात और है ये सबसे अलग दिमाग का है पर ग़लत नहीं है।”

“चमार हूं ,किसी का चमचा तो नहीं हूं।
गौर से देखले,किसी से कम तो नहीं हूं।।”

एक बार हम सड़क पर पड़े निर्माण के लिए आए बड़े-बड़े पाइपों में अपने साथियों के साथ आखीरी रास्ता फिल्म की शूटिंग कर रहे थे उस दिन हम स्कूल नहीं गये थे सातवीं में पढ़ते थे तभी चार- पांच लड़कों ने दखल अंदाजी की तो हम बीच में आ गए क्योंकि फिल्मी जिंदगी का भूत हमेशा हमारे सर पर सवार रहता था जब भी हम जिस गली -मोहल्ले से गुजरते घर के अंदर बैठे हुए लोगों को भी पता चल जाता कि हम आ रहें हैं ,क्योंकि बिना गाना गाए हम गलियों से गुजर जाएं ऐसा कैसे हो सकता था। बस वो साथी तो भाग गए रह गये हम और उन्होंने निकाल ली कंपास अपने आप को घीरा देख हमने एक के गले में पड़े मफ़लर को खींच वहां से भाग निकले एक में अमिताभ स्टाईल में लात भी जमा दी थी तभी से कक्षा बारहवीं तक लगातार दुश्मनी ऐसे चलती रही जैसे शोले फिल्म में गब्बर सिंह और ठाकुर की चलती थी और कई बार अच्छा-खासा टकराव भी हुआ। एक बार मैंने एक हफ्ते के लिए स्कूल छोड़ दिया और उन्हें मुख्य रास्ता छोड़कर दूसरे रास्ते से जाने के लिए मजबूर कर दिया।
कक्षा बारहवीं की ही बात है हम दस- बारह लड़के आगे वाली सीट पर बैठ गए तो बाइस प्रिंसीपल जो गणित का शिक्षक था आते ही कहने लगा…….”ऐ ये तम हरिजन न हो जो पीछे न बैठें हो।” उन्होंने ये वाक्य दो बार दोहराया तो मैं बोल उठा ……”क्यूं सर जी हरिजन ही बैठते हैं पीछे ‌”। इस क्लास में शिक्षक का भी लड़का बैठा था और मुझे मेरे साथी पेंट और शर्ट खींचकर बैठने के लिए कह रहे थे,इस बात पर पीछे से एक लड़के ने ये भी कहा था कि …….”ओए रॾढ चुप बैठ जा।” इस बात की खबर फिजिक्स के शिक्षक महोदय जी को लगी जिनका नाम तुफैल अहमद था संभवतः ये बात गणित के ही टीचर ने बताई थी क्योंकि वो अक्सर खाली समय में उन्हीं के लैब में जाकर बैठते थे, मुझे उन्होंने बुलाया और कहा ……” देखो बेटा आपका आखीरी साल है पढ़ो और आगे निकल जाओ ये लोग जमींदार भी है और बदमाश भी आपके पास केवल पढ़ाई है।” उसके बाद हम उनसे नहीं उलझे हां एक वर्ष पहले दौड़ प्रतियोगिता को लेकर वो बचपन के दुश्मन जो साथ ही पढ़ते थे बोले ……”चमटटे मां का दूध पिया है तो दौड़ में हिस्सा लेकर दिखाना वहीं ना मार दे तो अपने बाप से पैदा नहीं।” बस चैलेंज तो किसी का छोड़ा ही नहीं मुझे कुस्ती और कबड्डी खेलने का शौक था एक बार एक ने हमें बुखार में ही कुश्ती का चैलैंज दे दिया फिर क्या था हमने कपड़े उतार लिए और दे दी पटकी पर यहां चैलेंज तो कबूल कर लिया था मगर जीत नहीं पाए हां उनसे जरूर ये कह दिया था कि……”अब सोचना तुम किसके हो अपने बाप के तो हो नहीं।”!

“बदलकर चेहरे जो,फरेब करतें हैं।
बस हम उन्हीं से, परहेज़ करते हैं।।”

1992 की बात है हमारे गांव में एक दुबला पतला सा एक आदमी आ गया जो एक सप्ताह से लोगों की मीटिंग ले रहा था हम परचून की दुकान के कारण नहीं जा पाते थे तो और लोगों से ही पूछा तो हम अचंभित हो गये एक दिन रविवार के दिन हमने अपने गांव के पुस्तकालय में एक मीटिंग बुलाली तो चर्चा शुरू ……”बेटा कुछ होने वाला है ।” हमने उस व्यक्ति से पूछा कि—- “आपका मकसद क्या है।” उसने बताया कि …….”साठ साल बाद एक चुनाव होता है वोट देने जाना होगा।” मैंने पहले से ही अस्सी.. नब्बे साल के कई बुजुर्ग बुला रखें थे तभी मैंने उनसे पूछा……”दादा आपके सामने एक बार तो ऐसा चुनाव हुआ होगा हमने तो पढ़ा नहीं है।” सभी ने मना कर दिया तब मैंने उससे कहा…..”चलो हम आपके साथ यहां से वोट डालने भेज भी देंगे मगर इसकी क्या गारंटी है कि वहां से ये सभी जिंदा आ जाएंगे रोज एक्सीडेंट, बम ब्लास्ट, किडनैपिंग होती है।” वो चौंक गया उससे धार्मिक, राजनैतिक बहस भी छिड़ गई जिसके लिए मैंने पहले से ही….. हिन्दू समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास, रानाडे गांधी और जिन्ना, पूना पैक्ट जैसी किताबों के मुख्य पृष्ठ मोड़कर रखें हुए थे इस तरहां वो हतास हो चला गया उसके पास एक तनी का बैग था जिसपर विदेशी सिक्के छपे हुए थे। कुछ लोगों ने मेरी मम्मी जी को डरा दिया तो मम्मी जी कहने लगी…..”इतने दिनों से उ भाषण दे रहा था कोई नहीं बोला सबकी लड़ाई को अपने सर उठाता फिरता है कुछ करवा दिया उसने तो …?””
मैंने कहा ….” मम्मी बात मान लो यहां से पचास आदमी भी साथ ले जाता और वो मर जाते, तू कम से कम इतना सोच तेरे एक बेटे ने पचास तो बचा दिये।”
“तू क्या मानें किसी की”! मम्मी ने कहा और इसकी शिकायत शाम को पापा जी से कर दी तो पापा जी बोले …..”अपने ताऊ और नाना से कम थोड़े रहेगा ये …..भईया औरों को भी कुछ करने देकर तुझसे ज्यादा बड़े और पढ़ें लिखें और भी है।” …….”पर पापा …..?” “चल खेल अब” पापाजी ने हंसकर कहा।
मेरे ताऊजी जो अपनी ससुराल खुर्जा में ही रहने लगे थे वो नेतागीरी में रहते थे हमारे गांव में अपने समाज के वो पहले चुनाव लडने वाले व्यक्ति थे जिनका साथ समाज ने नहीं दिया ।उनकी ही पहली पत्नी ने गांव में सबसे पहले साड़ी पहनी थी जिसका विरोध वहां की चौधराईन ने किया था मगर हमारी ताई ने हार नहीं मानी । हमने देखा इन्हें हवेली वाले कहते थे यदि उनकी कार में खाली ड्राइवर भी हो तो लोग हाथ जोड़कर खड़े हो जाते थे। ताई जी हापुड़ से थी और हमारे नाना जी उस समय बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुपशहर के पहले व्यक्ति थे जो हाथी पर बैठकर ढोल -नगाड़ों के साथ घुमाएं गये थे और पांच गांव के पंच के सर पर जूता भी बजा दिया था महज़ झूठ बोलने पर ऐसे ही एक बार एक पंडित या बनिया के द्वारा बार- बार बहन मायावती जी को अभद्र भाषा बोलने पर आफिस में ही चमड़े की जूती बजादी थी पापा जी अकेले ही अपने समाज के कर्मचारी थे। पापाजी के कारण ही हमारे गांव में एक “शोषित सुधार समिति”का उदय हुआ जिसके बैनर तले बच्चों को फ्री शिक्षा, शादी के लिए टेंट का सामान, पुस्तकालय का निर्माण किया गया जिसका मैं रंगमंच अधिकारी भी रहा जिसके कारण पहली बार हमारे बड़े भाई को डॉ. अम्बेडकर बनाकर पुरे गांव में घुमाया गया ये बात अलग है बाद में उनकी विचारधारा बदल गई।

“खून के रिश्ते भी साफ नहीं लगते!
आप भी अब, आप नहीं लगते!!
बदल कर रख दिया है, माहौल इतना।।
बाप के गले अब, बेटा नहीं लगते ।।”

जातिवाद का दंश आदमी का पीछा कभी नहीं छोड़ता आदमी साथ रहता भी है,खाता भी है, सोता भी है मगर मानसिकता बहुत कम लोग ही बदल पाते हैं। ऐसे बहुत किस्से है सभी को इतने कम शब्दों में समेटना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है।जब हम बी.ए.में आएं तो एक कविता प्रतियोगिता होनी थी हमें इतनी अभी समझ नहीं थी क्योंकि अभी तक तो हम केवल बाबा साहेब के गीत और मंचों के लिए नाटक ही लिख रहे थे, तभी हमने एक कविता लिखी और कमेटी के मुख्य व्यक्ति जो हिंदी के प्रोफेसर थे उनके पास गया जिनका नाम डॉ.देवकीनंदन शर्मा था उन्होंने पूछा …..”आपका गुरु कौन हैं ?” हमने कहा ….”कोई नहीं सर!” और उन्होंने मुझे छ: विषय दे दिए मैं डर गया अभी-अभी तो लिखना सीखा और इन्होंने …..?खैर कविता लिख दीं,फिर उनका पहले वाला सवाल तो हमने उन्हीं के पैर छूकर गुरु मान लिया और कालेज की कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर मेरठ अमन सिंह आत्रेय जी की काव्य प्रतियोगिता में सहभागिता निभाने का मौका ही नहीं मिला बल्कि एक सपना भी पूरा हुआ मेरे सामने तीन माइक और दो कैमरे वाले घूम रहे थे और एक दो राष्ट्रीय कवि भी उस प्रोग्राम में शामिल थे यहां मेरा कोई नम्बर तो अव्वल नहीं आया मगर सराहना बहुत मिली और एक वृद्ध महिला ने कहा ……..”एक दिन तुम बहुत आगे जाओगे”! आज जब कभी थोड़ा आगे बढ़ता हूं तो वो दुआ याद आ जाती है, घर मैं सभी विरोधी रहे मेरे लिखने के मम्मी-पापा जी कहते थे….. “लिखने वाले हमेशा परेशान रहते हैं ।”तो मैं उन्हे फिल्म में लिखने वालों को खुशहाल बताकर टाल देता था, मगर अब कई बार ऐसा लगने लगता है क्योंकि आज जो वक्त मैं और मेरा परिवार काट रहा है वो हम ही जानते है किसी से सहायता भी नहीं मांग सकते सगे भाईयों को पापाजी की छोटी सी पेंशन का तो पता है मगर उनकी बड़ी सी बीमारी के विषय में जानकर भी अंजान बने रहे और पापाजी हमें छोड़कर चले गए। छोटी बहन धोखे से घर को ही छीनने पर आमादा हो गई वक्त जब इम्तिहान लेता है तो लेता ही चला जाता है। खैर एक बार और कालेज की प्रतियोगिता जीतकर बाहर जाना था मगर प्राचार्य महोदय ने जातिभेद के चलते मुझे अनुमति नहीं दी और ये कहने लगे…….”तुम्हारी कविता कोई कविता नहीं थी तुकबंदी थी।”…….तब मैंने कहा……”सर आई एम नोट पोईट वट सर जब मेरी कविता -कविता नहीं थी तो मुझे आपके आठ जजों ने प्रथम स्थान से क्यूं नवाजा….? जबकि आप भी वही थे।”उन्होंने जबाव नहीं दिया और मैं चला आया। 1996 में मेरा बड़ा भाई टेटनस रोग के कारण हमें छोड़कर चला गया जिसका मुझे बहुत बड़ा आघात पहुंचा और अगली साल होली के दिन गांव में अचानक जाटों ने हमला कर दिया होली ना खेलने के कारण मैं जंगलों में कुछ दोस्तों के साथ था जब मैं आया तो मुझे देख एक जगह खड़े बहुत सारे आदमी,औरत और बच्चे चौंक गए और उन्होंने मुझे भी रोकने की कोशिश की तभी एक आवाज आई …….”भैया आपके पापा को मारा !”वहां हमारा बीच वाला भाई भी खड़ा था मैं जैसे ही घर के पास आया तो देखा सड़क सुनसान पड़ी है दुकान खुली पड़ी है हमारा घर और दुकान आमने-सामने अलग-अलग दो मैन रास्तों पर थी। हमें धर्मेंद्र वाला गुस्सा आ गया ये देख हमें हमारे भाई राजू की कसम दी गई और मम्मी कहने लगी…..” तू अकेला कितनों को मार देगा वो सभी को मार जाएंगे गांव उन्हीं का है।”
“तो कोई हमारे बाप को पिटदे और हम देखते रहें …. क्या फायदा हमारे होने ना होने का…?” मैं गुस्से से भरपूर था
“किसने कहा तुझसे तेरे पापा पर हाथ छोड़ा ..? गोली मार रहा था, तेरे पापा ने उसका गलेबान पकड़ लिया था ….. फिर उसने गलती मानी वो तो ………उसे मारने आए थे !” मम्मी जी ने एक नाम बताते हुए कहा।
शाम को तिराहे पर हमने पूरी बस्ती को ललकारते हुए कहा कि…….”बुजदिलों ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी से तो एक दिन लड़के मरो नहीं तो कल तुम्हारे सामने तुम्हारी बहन बेटियों की इज्ज़त लूटेगी और तुम देखते रहोगे”….. ये बात जाट भी सुनते जा रहे थे और लोगों में दहशत का माहौल बन गया जब हमने पैरबी की तो पिटने वाले सभी पीछे हट गए और पापाजी ने ये कहकर गांव छोड दिया कि..…..”यदि हमने गांव नहीं छोड़ा तो ये लड़का भी हम खो बैठेंगे और फिर हम बंजारों की तरहा गांव छोड़ आए जाना कहां है कुछ पता नहीं था हमारे साथ 20-25 परिवारों ने गांव छोड़ दिया।

“सच बोलने की, कसम खाने से।
दुश्मनी हो गई, जमाने से।।
मैं अपनी मां का, सबक भूलू कैसे।
लगेगा पाप ,सच छुपाने से।।”

हापुड़ में आकर बीमार होने के कारण पढ़ाई छूट गई एम.ए. अर्थशास्त्र से ,हमारी शादी से पहले ही हमारे भाई अलग- अलग हो गए थे । हमने आई मित्रा ,प्राकृतिक चिकित्सा का कोर्स किया और अब फिजियो थेरेपी की पढ़ाई जारी है। शिक्षा का क्षेत्र बाधाओं से ही भरा रहा। हापुड़ आकर कई आंदोलनों का हिस्सा बना और एक जिद्दी मिशनरी में गिनती हो गई, दो अप्रैल के कांड में एक महीना से ज्यादा घर से बाहर रहा सच और सियासत के खिलाफ लिखने के कारण कितनी ही मारने की धमकियां मिलती रहती है, जिसके कारण कई बार घर में डर और तनाव का माहौल भी पैदा हो जाता है।

“मैं अपनी मौत को, मुट्ठी में बंद रखता हूं।
लोग कहते हैं मैं, अपना अंदाज अलग रखता हूं।।”

कलाओं का मेरे अंदर जैसे बड़ा भण्डार समाया हुआ है अभिनय करना , डांस करना,गायन करना, लिखना आदि मगर गरीबी और हालातों ने कभी पीछा नहीं छोड़ा आज तक जिस भी मुकाम पर हूं मुझे किसी ने सहयोग नहीं किया हां गिराने की ,पीछे धकेलने की कोशिश बहुत लोगों ने की है जिनमें वो ज्यादा शामिल रहे जिन्हें हमने विश्वास कर अपना बनाया या यूं भी कह सकते हैं कि इतने हमने बादाम नहीं खाएं जितने धोखे खाएं है। एक बार एक कामेडी फिल्म की कहानी और टाइटिल सांग के साथ उसमें अभिनय भी किया फिल्म पूरी तरह से तैयार भी हो गई जिसे हीरो (डायरेक्टर)और हीरोइन की अय्याशी की बलि चढ़ गई, बाद में भी कई फिल्मों में काम किया मगर आ नहीं सकीं, हां मंच के अभिनय के हम बड़े राइटर, एक्टर, डायरेक्टर और मंच संचालन रहे ।

“उसने गिराने की मुझे, कोशिश हजार की ।
मां की दुआओं ने, मुझे सूरज बना दिया।।”

जाति एक ऐसा दाग़ होता है जो ना अमीर बनने से छूटता है ना अधिकारी और सी.एम.बनने पर इसका उदाहरण बहन मायावती जी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जैसे नहीं बच पाए तो हमारी तो बिसात ही क्या । शहर की कई साहित्य संस्थाओं से जुड़ने के बाद भी कभी उन्होंने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया बल्कि एक दिन तो जिस कवि के घर काव्यगोष्ठी थी उसने ……ढोल गंवार शूद्र पशु नारी जैसे वाक्यों से काव्यपाठ प्रारंभ किया जिसपर बहस छिड़ गई यहां प्रजापति, गडरिया और जाटव समाज के भी कवि थे मगर किसी ने मेरा सहयोग नहीं किया और मैंने वो संस्था छोड़ दी और सोशल मीडिया पर मनुवादी सोच की पोल खोल दी। मम्मी जी और पापाजी की बीमारीयों के साथ स्वयं भी शारीरिक व्याधियों से घीरे रहने के कारण बहुत से अच्छे मौके हाथ से निकल गये आज भी पांच-छः किताबो का मैटिरियल तैयार अलमारीयों की शोभा बढाए हुए है। 2021 में पांच महीने बैड पर रहा और भी कई बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा।मगर हार मानकर बैठे जाना मेरी नीयती में नहीं है ।आज साहित्य के क्षेत्र में मैं गुमनाम कलमकार नहीं हूं ये मेरे लिए गौरव की बात है अमेरिका, चीन, नेपाल जैसे देशों की पत्र-पत्रिकाओं में लेखन जारी है अमेरिका की पत्रिका ने तो मुझे कवर पेज पर भी छापा ,कई पत्रिकाओं के संपादक मंडल में शामिल रहा हूं और हूं भी ,हम दलित, वंचित जनता, बयान, दलित दस्तक, हाशिए की आवाज़,सरस सलिल, कुसुम परख, सरिता, सुदर्शन,अमर उजाला, मूलनिवासी नायक ,अभिनव भारत, विश्व परिक्रमाऔर बौद्धिस्तव मिशन जैसी बड़ी पत्रिकाओं के साथ सैकड़ों पत्रिकाओं में निरन्तर लेखन कार्य चल रहा है। सोशल मीडिया की कई छोटी-बडी साइटों पर साहित्य लेखन जारी है और अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी देश और जनता की आवाज उठाने का प्रयास करता रहता हूं।

“हादसों की सफ़र में,कमी तो नहीं है।
देखना मेरी आंखों में,नमी तो नहीं है।।”

डॉ. अंबेडकर फैलोशिप सम्मान के साथ -साथ जयपुर की सर जमीं पर दो बार अंतरराष्ट्रीय मैत्री सम्मेलन में इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से नवाजा गया वहीं ग्वालियर की एक संस्था ने ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड से सम्मानित किया , इसके अलावा मानव मित्र सम्मान , काव्य सौंदर्य सम्मान, कवि त्रिलोचन शास्त्री सम्मान, भगत सिंह सम्मान, युवा शक्ति सम्मान ,श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, योग गौरव सम्मान, कोरोना योद्धा सम्मान ,नचिकेता बाल साहित्य सम्मान, काव्य श्री सम्मान ,भाषा भारती सम्मान, मातृभाषा सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मान ,श्रेष्ठ कला रत्न सम्मान, राजभाषा सम्मान ये यात्रा अभी निरंतर जारी है लाकडाउन के समय बेड रेस्ट पर ही जहां सैकड़ों गीत और ग़ज़लों का निर्माण हुआ वहीं 40-50 सम्मान अपने नाम कर लिए। सम्मानों की इस श्रृंखला में मिशन सुरक्षा परिषद के कलमकार संघ का मुझे प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लॉर्ड बुद्धा सेवा समिति का जिला कोऑर्डिनेटर, हिंदी साहित्य भारतीय का मीडिया प्रभारी ऐसी बहुत सारी संस्थाओं से भी जुड़ाव रहा है।समाज हित में बिजली की समस्या के साथ- साथ पानी और सड़क का भी निर्माण कार्य कराया जो लम्बे समय से अवरूद्ध पड़ा था और हमें ग्राम प्रधान का चैलेंज भी मिला हुआ था। राजनीति के क्षेत्र में गांव मुरादपुर की नई बसापत का मैं पहला व्यक्ति रहा जिसने चुनाव में खड़े रहने की महज़ हिम्मत ही नहीं की बल्कि दो चुनाव भी जीते ….. वार्ड मैमबर और क्षेत्र पंचायत सदस्य का मेरे ताऊजी और मेरी मम्मी जी भी कभी पहले चुनाव में खड़े हुए थे और दोनों ही हार गये थे। मेरा जीवन बचपन से ही बहुत संघर्ष मय रहा है जो अभी भी चल रहा है। मैं इस डिप्रेस्ड एक्सप्रेस पत्रिका के माध्यम से यहां ये जरूर कहना चाहूंगा कि……..”मिशन हमारे खून में बहता है ……बहुजन समाज केवल सोशल मीडिया पर और बातों में ही मिशनरी है जमीनी धरातल पर बहुजन समाज अपने ही भाई के साथ खिलवाड़ कर रहा है ,उससे ईष्या कर रहा है और उसे गिराने के तरहा-तरहा की योजनाओं का निर्माण कर रहा है जो घातक ही नहीं बल्कि बहुत घातक है । करोड़ों बहुजन समाज के लोगों को कोट पेंट पहनाने वाले और इन्हें बादशाह बनाने वाले बाबा साहेब आंबेडकर जी का संविधान आज समाप्त होने की कगार पर है और हम खामोश बैठे हैं जबकि सच ये है कि……”संविधान जिंदा है तो देश जिंदा है समस्त S.C.,S.T.,O.B.C.और मानियोरिटि ज़िंदा रहेगी। हमें एक दूसरे की टांग नहीं हाथ पकड़ कर खींचना है समाज की प्रतिभाओं की समस्याओं को मिलकर समाप्त करना है ताकि कोई किसी तरह के अभाव में हताश होकर गुमनामी में ना खो जाएं। आखिर में इतना ही कहना चाहूंगा कि………

“बचना और बचाना है तो,बचाओ संविधान।
वर्ना पीढ़ियां बन जायेगी,जलता हुआ शमशान।।
गर जीना है आजादी से,तो स्वाभिमान जगा लेना।
कुर्बानी देकर भी बचता है,तो संविधान बचा लेना।।”
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बेखौफ शायर/गीतकार/ लेखक/ चिंतक
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
गांव-मुरादपुर , सागर कालोनी, गढ़ रोड-नई मंडी, जिला-हापुड, उत्तर प्रदेश
पिन….245101
9897907490,….9149087291
[1/18, 10:20 PM] Naresh Sagar: ………गीत……
किसान आंदोलन और कवि का आगाज
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सर्दी सारी घर के बाहर ,काट रहा अन्नदाता है।
कैसा राजा है ये अपना, कैसा भाग्यविधाता है।।
पूंजीपतियों के प्यार में ,अंधा है दीवाना है।
जनता भूख प्यास से लड़ रही, देखें नहीं सयाना है।।
कोरोना और बर्ड फ्लू का, कब तक डर दिखलाओगे।
शर्त मानकर अन्न दाता की ,घर कब बापस लाओगे।।
कितने घर तो उजड़ गए ,कितने और उजाडोगे।
सीना पत्थर करके अपना, रौव ये कब तक झाडोगे।।
जिद्दी तुम हो तो हम भी, कम नहीं किसी जिद्दी से।
लगता है मन भर गया है, तेरा अपनी गद्दी से।।
हमने अपनी मेहनत से, कितने मोसम को बदला है।
मन की बात कहता है अपनी, तेरा मनवा गंदला है।।
हमने सर का ताज बनाकर, तुझको ताज पहनाया था।
और तूने खा अन्न हमारा ,हमको ही पिटवाया था।।
कितनी चालें और चलोगे, वोलो तो ए राजा जी।
कब तक झूठी बात करोगे ,बोलो अब तो राजा जी।।
26 जनवरी आने दो, झंडा हम फहराएंगे।
हक पाने को अपना हम भी,अपनी ज़िद दिखलाएंगे ।।
नहीं हटेंगे डटे रहेंगे ,चाहें हम मर जाएंगे।
आजादी के देश में हम भी, गीत वतन का गाएंगे।।
पूंजीपतियों के आगे, कभी नहीं हम झूक सकते।
अपने स्वार्थ सिद्धि के कारण, कभी नहीं हम बिक सकते।।
संविधान हैं साथ हमारे, हक तुमको देना होगा।
वर्ना बात गांठ बांध लो, तुमको बहुत रोना होगा।।
हल वालों को हल्का लेकर, हल्ला तुम जो करा रहे।
हमको तुम डरपोक ना समझो, जो ऐसे तुम डरा रहे।।
तभी उठेंगे हम धरने से ,जब ये बिल वापिस होगा।
वर्ना दिल्ली के दिल पर ,जख्म बडा घातक होगा।।
सागर के संग सारा भारत ,जय किसान अब बोलेगा।
सरकारी कानून की अब, पोल ये सारी खोलेगा।।
नहीं झुकेंगे डटे रहेंगे, चाहे जो भी हो जाए।
सरहद पर बच्चे रहते हैं, एक और सरहद बन जाए।।
अच्छे दिन के झांसे में, बहुत बुरे दिन काटे हैं।
तेरे आने से देश में, घाटे ही बस घाटे हैं।।
आज नहीं तो कल बोलेगा, देश हमारी बोली को।
कैसे रोकेगे तुम बोलो ,मजदूरों की टोली को।।
बहुत सताया बहुत रुलाया, तुमने हमको राजा जी।
अबकी बार बजा देंगे हम, मिलकर सबका बाजा जी।।
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बेखौफ शायर….
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
मुरादपुर, सागर कालोनी, गढ़ रोड-नई मंडी, जिला-हापुड, उत्तर प्रदेश
9897907490….9149087291
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जय भीम जय संविधान जय मूलनिवासी
[1/19, 9:26 AM] Naresh Sagar: ………गीत……
किसान आंदोलन और कवि का आगाज
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सर्दी सारी घर के बाहर ,काट रहा अन्नदाता है।
कैसा राजा है ये अपना, कैसा भाग्यविधाता है।।
पूंजीपतियों के प्यार में ,अंधा है दीवाना है।
जनता भूख प्यास से लड़ रही, देखें नहीं सयाना है।।
कोरोना और बर्ड फ्लू का, कब तक डर दिखलाओगे।
शर्त मानकर अन्न दाता की ,घर कब बापस लाओगे।।
कितने घर तो उजड़ गए ,कितने और उजाडोगे।
सीना पत्थर करके अपना, रौव ये कब तक झाडोगे।।
जिद्दी तुम हो तो हम भी, कम नहीं किसी जिद्दी से।
लगता है मन भर गया है, तेरा अपनी गद्दी से।।
हमने अपनी मेहनत से, कितने मोसम को बदला है।
मन की बात कहता है अपनी, तेरा मनवा गंदला है।।
हमने सर का ताज बनाकर, तुझको ताज पहनाया था।
और तूने खा अन्न हमारा ,हमको ही पिटवाया था।।
कितनी चालें और चलोगे, वोलो तो ए राजा जी।
कब तक झूठी बात करोगे ,बोलो अब तो राजा जी।।
26 जनवरी आने दो, झंडा हम फहराएंगे।
हक पाने को अपना हम भी,अपनी ज़िद दिखलाएंगे ।।
नहीं हटेंगे डटे रहेंगे ,चाहें हम मर जाएंगे।
आजादी के देश में हम भी, गीत वतन का गाएंगे।।
पूंजीपतियों के आगे, कभी नहीं हम झूक सकते।
अपने स्वार्थ सिद्धि के कारण, कभी नहीं हम बिक सकते।।
संविधान हैं साथ हमारे, हक तुमको देना होगा।
वर्ना बात गांठ बांध लो, तुमको बहुत रोना होगा।।
हल वालों को हल्का लेकर, हल्ला तुम जो करा रहे।
हमको तुम डरपोक ना समझो, जो ऐसे तुम डरा रहे।।
तभी उठेंगे हम धरने से ,जब ये बिल वापिस होगा।
वर्ना दिल्ली के दिल पर ,जख्म बडा घातक होगा।।
सागर के संग सारा भारत ,जय किसान अब बोलेगा।
सरकारी कानून की अब, पोल ये सारी खोलेगा।।
नहीं झुकेंगे डटे रहेंगे, चाहे जो भी हो जाए।
सरहद पर बच्चे रहते हैं, एक और सरहद बन जाए।।
अच्छे दिन के झांसे में, बहुत बुरे दिन काटे हैं।
तेरे आने से देश में, घाटे ही बस घाटे हैं।।
आज नहीं तो कल बोलेगा, देश हमारी बोली को।
कैसे रोकेगे तुम बोलो ,मजदूरों की टोली को।।
बहुत सताया बहुत रुलाया, तुमने हमको राजा जी।
अबकी बार बजा देंगे हम, मिलकर सबका बाजा जी।।
=======
बेखौफ शायर….
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
मुरादपुर, सागर कालोनी, गढ़ रोड-नई मंडी, जिला-हापुड, उत्तर प्रदेश
9897907490….9149087291
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[1/19, 11:24 AM] Naresh Sagar: कोरोना का टीका आया ,टीका लगवालो
डरने की अब बात नहीं है, टीका लगवालो
एक साल से काट रहे हैं,दहशत में जिंदगानी
किसे सुनाएं अपनी यारों,गुजरी राम कहानी
डर से अब तो बाहर आ जा,अब तो मुस्कालो…………..
बेगारी और लाचारी ने,जी भर हमें सताया
अपनों ने भी देख हमें , धक्का खूब लगाया
अपने हाथों अपनी, किस्मत को चमकालो………
घर से बाहर जाना मुश्किल,डर था इतना भारी
चारों और पहरेदारी थी, पुलिस का डंडा जारी
इस दहशत से बाहर आ और खुशी की नाव चलाले……..
[1/21, 7:55 PM] Naresh Sagar: सच को सच कहने का अब दौर नहीं है
दुश्मन अपने घर में है कोई गैर नहीं है
छीन रहीं हैं रोज आजादी सभी से
इंकलाब का कहीं भी शोर नहीं है
डरके बैठे हैं चीखते थे जो मंचों से
बुझ दिल है बेगेरत को कहीं डोर नहीं है
[1/23, 4:20 PM] Naresh Sagar: थर-थर तो फिर दुश्मन भी ,कांप उठेगा “सागर” जी।
[1/23, 4:22 PM] Naresh Sagar: हर नेता गर नेताजी, सुभाष चंद्र सा हो जाए।
मेरे भारतवर्ष का फिर, हर दिन सोना हो जाए।।
थर-थर तो फिर दुश्मन भी, कांप उठेगा “सागर” जी।
[1/23, 4:25 PM] Naresh Sagar: हर नेता गर नेताजी, सुभाष चंद्र सा हो जाए।
मेरे भारतवर्ष का फिर, हर दिन सोना हो जाए।।
थर-थर तो फिर दुश्मन भी, कांप उठेगा “सागर” जी।
हिंदू मुस्लिम झगड़ा भी,गर प्यार मोहब्बत हो जाए।।
====डॉ. नरेश “सागर”
[1/23, 6:48 PM] Naresh Sagar: सच लिख दूं
क्यूं लिख दूं कैसे लिख दूं
क्या आप सच का साथ देंगे
क्या आप मेरा साथ देंगे
मुझे डर है
मैं सच लिखकर रह ना जाऊं अकेला
आपकी आवाज उठाने के चक्कर में
कहीं दफना ना दी जायेगी मेरी आवाज़
मिटा ना दी जाएं मेरे सांसों की डोरी
जब देखता हूं आपको
फेसबुक , व्हाट्सएप,यूं टयूव , इंस्टाग्राम, ट्यूटर पर तो लगता है
मुझे भी लिखना चाहिए सच
मुझे भी उठानी चाहिए आवाज
मगर
डरता हूं आपकी सच्चाई देखकर
सच में तो आप साथ देते ही नहीं
[1/23, 8:22 PM] Naresh Sagar: सच लिख दूं
क्यूं लिख दूं कैसे लिख दूं
क्या आप सच का साथ देंगे
क्या आप मेरा साथ देंगे
मुझे डर है
मैं सच लिखकर रह ना जाऊं अकेला
आपकी आवाज उठाने के चक्कर में
कहीं दफना ना दी जायेगी मेरी आवाज़
मिटा ना दी जाएं मेरे सांसों की डोरी
जब देखता हूं आपको
फेसबुक , व्हाट्सएप,यूं टयूव , इंस्टाग्राम, ट्यूटर पर तो लगता है
मुझे भी लिखना चाहिए सच
मुझे भी उठानी चाहिए आवाज
मगर
डरता हूं आपकी सच्चाई देखकर
सच में तो आप साथ देते ही नहीं
छोड़ देते हो अकेला
बिल्कुल अकेला
क्यूं …..?
क्या सच में इसी को कहते हैं मिशन?
जब कोई आवाज उठा रहा हो तो
आप पीछे की ओर दौड़ने लगते हो
और उसके बर्बाद होने पर
उसके मरने के बाद
सड़कों पर दौड़ने लगते हो आंदोलन बताकर
न्याय दिलाने के लिए
संघर्ष और एकता का पाठ पढ़ाने के लिए
ये कौन सा चेहरा है तुम्हारा
ये कौन सा चरित्र है तुम्हारा
ये कौन सा मिशन है तुम्हारा
ये सवाल सिर्फ मैं ही नहीं पूछ रहा हूं……… बल्कि लाखों करोड़ों वो मिशनरी पूछ रहे हैं जो तुम्हारे इसी दोहरे चरित्र के कारण
या तो घर में बैठे घुट रहें हैं
या जेल में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं
या फिर इतने पिताडित कियें है कि
अब वो किसी भी बात पर बोल ही नहीं पाते
या फिर मार दिए जाते हैं
……. मैंने भी ऐसी यातनाएं झेलनी है कई बार और मेरी चीख सुनकर भी कर दी गई अनसुनी।
……..की लोग करते हैं सवाल और कहते हैं ….. यदि आप जैसे लोग आवाज उठानी कर देंगे बंद तो इस कौम का और मिशन का क्या होगा …..?
कैसे और क्या जबाव दूं
आप ही बोल दीजिए प्लीज़।।
[1/25, 12:01 PM] Naresh Sagar: …….. हां नहीं डरता मैं
अब नहीं डरता मैं तुम्हारी मन घड़ंत कहानियों से
तुम्हारे मन घड़ंत भगवानों से
तुम्हारे मन घड़ंत उपदेशों से
तुम्हारे मन घड़ंत बकवासो से
तुम्हारे मन घड़ंत मंत्रों से
तुम्हारे मन घड़ंत षड्यंत्रों से
तुम्हारे मन घड़ंत स्वर्ग नरक से
तुम्हारे मन घड़ंत कार्यकलापों से
तुम्हारे मन घड़ंत नक्षत्रों से
तुम्हारे मन घड़ंत ग्रहों से
और तुम्हारे मन घड़ंत
शगुन अपशगुन की बातों से
क्योंकि …….
अब मैंने पढ़ लिया है
बौद्ध को
रविदास को
कबीर को
फूले को
और पढ़ लिया है मैंने
भारत रत्न डॉ.भीम राव अंबेडकर को
नहीं लगता डर मुझे तुम्हारे मनुवाद और मनुस्मृति से
क्योंकि अब मेरे पास है संविधान
वो संविधान जो दिलाता है सबको न्याय
और सिखाता है सबको बंधुत्वा।
नहीं डरता मैं
नहीं डरता मैं
उस मौत से जो एक दिन आनी ही होती है।
इसलिए अपने हक के लिए करूंगा मैं….. इंकलाब
उठाऊंगा मैं आवाज
और लड़ूंगा मैं लड़ाई
अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए ,
क्या आप खामोश रहोगे …?
बोलो…..???
======== डॉ.नरेश सागर
[1/25, 12:48 PM] Naresh Sagar: ? राष्ट्रीय साहित्य कला मंच को समर्पित… देश भक्ति गीत??
==========
बोल तिरंगा अब तो बोल
अपने होठों को तो खोल
तेरे खातिर छोड़के सब कुछ
मैं तो गया बस तुझ में डोल
बोल तिरंगा …………
कैसा लगता है बोलो तो
तुझको मेरी मर्दानी
तुझपै निछावर मैंने कर दी
अपनी सारी जवानी
एक बार तो अपने मन से
मेरे भी मन को तो तोल
बोल तिरंगा ………..
सजी दुल्हनियां छोड़के आया
मां को रोता छोड़के आया
बहन की राखी रोती रह गई
भाई से भी मुंह मोड़ के आया
बापू का आते वक्त तो
बंद हो गया उसका बोल
बोल तिरंगा …………….
तुझ पर निछावर मेरी दुनिया
देखी नहीं नन्ही सी गुड़िया
तेरे खातिर लड़ जाऊंगा
हंसते-हंसते मर जाऊंगा
अंत समय भी मेरे मुंह से
निकलेंगे बस तेरे बोल
बोल तिरंगा ……………….
मुझसे लिपट जा मुझ में सिमट जा
मेरे बदन की चादर बन जा
कितने शहीद हुए तेरे खातिर
मैं भी खड़ा उस भीड़ में आखिर
हंसते-हंसते जां दे दूंगा
चाहे मेरी चाहत तौल
बोल तिरंगा ……………..
मैंने सरहद की मिट्टी को
चुम्मा है मां के चरणों सा
मेरे बदन में देश का जज्बा
कोंधे सूरज की किरणों सा
मर जाऊं तो सुन-ए- तिरंगा
पड़ने मत देना तू झोल
बोल तिरंगा ……………..
जाति धर्म कुर्बान है तुझ पर
तेरे बड़े एहसान है मुझ पर
दुश्मन तेरे आगे कांपे
मुंह की खाये जब भी झांके
“सागर” तेरा हुआ दीवाना
तेरी नजर में क्या है मौल
बोल तिरंगा अब तो बोल ।
बोल तिरंगा अब तो बोल ।।
जय भारत ???✍? जय संविधान
मूल गीतकार…. बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
[1/25, 1:11 PM] Naresh Sagar: सागर की क़लम से
==============
संविधान ने ही दिया, हमको ये सम्मान ।
26 जनवरी मना रहे, और गा रहे गान।।
और गा रहे गान, करिश्मा अंबेडकर का।
जिसने रचा विधान, यहां एक- एक जन का।
कह सागर कविराय ,नमन उस महापुरुष को।
कलम ने जिसके बदल दिया, भारत के कल को।।
======बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
[1/25, 2:09 PM] Naresh Sagar: बेखौफ शायर ने …कहा संविधान बचाओ
=========
मिशन सुरक्षा परिषद के कलमकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष बेखौफ शायर डॉ.नरेश कुमार “सागर” ने सभी देशवासियों को गणतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि…..
यदि आज भारतीय संविधान ना होता तो देशवासियों को गणतंत्र दिवस नहीं मिल, गणतंत्र दिवस भारतीय संविधान की देन है और भारतीय संविधान भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की देन है !आज इसी संविधान पर तरह-तरह की उंगलियां उठ रही हैं आज देश में देशभक्ति का नहीं जातिवाद का माहौल बनने लगा है। डॉ.सागर ने सभी देशवासियों को आवाज देते हुए कहा ….
जब तक है जिंदा देश में संविधान दोस्तों।
तब तक ही जिंदा है, ये अभिमान दोस्तों।।
गर चाहते हो जीतना, आखिरी बाजी तुम ।
अपना जगह लो तुम, स्वाभिमान दोस्तों।।
…… बेखौफ शायर ने अपनी कविता के माध्यम से ये भी कहा कि ….
संविधान ने हीं दिया, हमको ये सम्मान।
26 जनवरी मना रहे, और गा रहे गान।।
और गा रहे गान, करिश्मा अंबेडकर का ।
जिसने रचा विधान, यहां एक -एक जन का।।
कह “सागर” कविराय ,नमन उस महापुरुष को ।
कलम ने जिसके बदल दिया, भारत के कल को।।
उन्होंने ये भी कहा कि ….”यदि देशवासियों को अपना अस्तित्व अपनी आजादी अपना स्वाभिमान अपनी शिक्षा बचानी है तो संविधान को बचाने के लिए एकजुट होना होगा और मिलकर आवाज उठानी होगी। संविधान बच गया तो देश बच गया आप बच गए वर्ना तो आप सभी ने पिछले साढे 5000 साल की गुलामी का इतिहास तो पढ़ा ही होगा ,यदि आप चाहते हैं कि वह दोबारा ना दोहराया जाए तो आपको संविधान को बचाने के लिए आगे आना ही होगा।।
[1/25, 2:21 PM] Naresh Sagar: गणतंत्रता दिवस डॉ आंबेडकर की देन -डॉ.सागर
=======
हापुड़ जिले के एक छोटे से गांव मुरादपुर की सागर कॉलोनी में रहने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित बेखौफ शायर डॉ. नरेश कुमार सागर ने सभी देशवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि ….. यदि आज हम गणतंत्र दिवस मना रहे हैं तो यह भारतीय संविधान की देन है और भारतीय संविधान भारत रत्न बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की देन है, मगर दुर्भाग्य यह है कि आज के दिन भी हम संविधान निर्माता का नाम लेने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं जो बड़े शर्म की बात है। वह बड़े दुखी मन से एक बात और कहते हैं कि…… आज देश में देशभक्ति का माहौल कम नजर आता है और जातिवाद का माहौल गरम दिखाई देता है चरम पर दिखाई देता है जो देश और देशवासियों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा नजर आ रहा है। उन्होंने संपूर्ण देशवासियों से अपनी कविता के माध्यम से आग्रह करते हुए कहा कि….
संविधान गर नहीं बचा तो, तुम भी ना बच पाओगे।
जिंदा तो होंगे लेकिन तुम,
पल-पल मारे जाओगे।
धर्म ग्रंथों में उलझ कर ही
देखो तुम इतने पीछे हो।
जिस ने जैसा चाहा तुमको
जी भर खूब घसीटे हो ।
अब भी जागो – बाहर निकलो
संविधान बचाने को।
वर्ना कहानी रह जाएगी
केवल बात सुनाने को।
केवल बात सुनाने को।।
केवल बात सुनाने को।।।
========
[1/25, 4:54 PM] Naresh Sagar: राम लला के नाम पर,चंदा देकर यार।
ये ना कभी सोचना, बदलेगा व्यवहार।।
[1/25, 4:57 PM] Naresh Sagar: करले पहले याद तू,सारे अत्याचार।
तब बेशक तू दान कर,राम लला को यार।।
[1/25, 4:58 PM] Naresh Sagar: मंदिर चढ़ना है मना, फिर क्यूं मंदिर दान।
आखिर कब जगाएगा,अपना स्वाभिमान।।
[1/25, 5:00 PM] Naresh Sagar: ना मंदिर में दान कर,ना कर पूजा पाठ।
दोनों ना तेरे काम के,बात बांध लें गांठ।।
[1/25, 5:04 PM] Naresh Sagar: मंदिर तू बनवाएगा, मंदिर मैं है रोक।
कितना बेजत तू हुआ,और मनाया शोक।।
[1/25, 5:07 PM] Naresh Sagar: तुझको ही है पिटते, तुझसे मांगे दान।
क्या तेरा हो पायेगा,बोल कभी कल्याण।।
[1/25, 5:10 PM] Naresh Sagar: कितने मंदिर में लगी,लिखी हुई ये बात।
शूद्र कभी आये नहीं, नहीं ये हिन्दू जात।।
[1/25, 5:15 PM] Naresh Sagar: दो अप्रैल भूल मत,भूल ना ऊना काण्ड।
तुझसे बढ़िया घूमता, इज्जत लेकर सांड।।
[1/26, 3:44 PM] Naresh Sagar: चंदा ना दे राम को,ना कर देवी जाप।
तेरे सर पर शूद्र का ,लिखा हुआ अभिशाप।।
++++++
जानवरों से प्यार है,तुझसे घिनन अपार।
तू फिर पीछे क्यूं पड़ा, क्यूं मानें त्यौहार।।
++++++
चंदा देकर राम को ,ना कर धर्म भ्रष्ट।
वर्ना तू हो जायेगा,सुनहरे पापी नष्ट।।
++++++++
सदियों से तू शुद्र का ,ढो रहा था पाप।
रामायण लिखकर भी तू,बना रहा अभिशाप।।
——–
कितना चंदा दान कर,कितना करले काम।
तुझे बचाने के लिए , आयेंगे ना श्री राम।।
———–
खूब कलावा बांधले, खूब लगाले जात।
फिर भी ना हिन्दू बने,सुनले मेरी बात।।
——–
हमें ना नफ़रत जात से,ना ही धर्म से बैर।
फिर भी कहता वो हमें, खूब मनाले खैर।।
—————
जितना कहना कह दिया,जितना चाहे मान।
वो तो जिंदा लाश है,जिसका ना सम्मान।।
———-
तेरी मर्जी मान जा , मर्जी है ना मान।
चंदा देकर भी नहीं,होगा तेरा गुनगान।।
26/1/21
[1/26, 3:49 PM] Naresh Sagar: [25/01, 4:54 pm] Naresh Saga: राम लला के नाम पर,चंदा देकर यार।
ये ना कभी सोचना, बदलेगा व्यवहार।।
[25/01, 4:57 pm] Naresh Saga: करले पहले याद तू,सारे अत्याचार।
तब बेशक तू दान कर,राम लला को यार।।
[25/01, 4:58 pm] Naresh Saga: मंदिर चढ़ना है मना, फिर क्यूं मंदिर दान।
आखिर कब जगाएगा,अपना स्वाभिमान।।
[25/01, 5:00 pm] Naresh Saga: ना मंदिर में दान कर,ना कर पूजा पाठ।
दोनों ना तेरे काम के,बात बांध लें गांठ।।
[25/01, 5:04 pm] Naresh Saga: मंदिर तू बनवाएगा, मंदिर मैं है रोक।
कितना बेजत तू हुआ,और मनाया शोक।।
[25/01, 5:07 pm] Naresh Saga: तुझको ही है पिटते, तुझसे मांगे दान।
क्या तेरा हो पायेगा,बोल कभी कल्याण।।
[25/01, 5:10 pm] Naresh Saga: कितने मंदिर में लगी,लिखी हुई ये बात।
शूद्र कभी आये नहीं, नहीं ये हिन्दू जात।।
[25/01, 5:15 pm] Naresh Saga: दो अप्रैल भूल मत,भूल ना ऊना काण्ड।
तुझसे बढ़िया घूमता, इज्जत लेकर सांड।।
[26/01, 3:44 pm] Naresh Saga: चंदा ना दे राम को,ना कर देवी जाप।
तेरे सर पर शूद्र का ,लिखा हुआ अभिशाप।।
++++++
जानवरों से प्यार है,तुझसे घिनन अपार।
तू फिर पीछे क्यूं पड़ा, क्यूं मानें त्यौहार।।
++++++
चंदा देकर राम को ,ना कर धर्म भ्रष्ट।
वर्ना तू हो जायेगा,सुनहरे पापी नष्ट।।
++++++++
सदियों से तू शुद्र का ,ढो रहा था पाप।
रामायण लिखकर भी तू,बना रहा अभिशाप।।
——–
कितना चंदा दान कर,कितना करले काम।
तुझे बचाने के लिए , आयेंगे ना श्री राम।।
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खूब कलावा बांधले, खूब लगाले जात।
फिर भी ना हिन्दू बने,सुनले मेरी बात।।
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हमें ना नफ़रत जात से,ना ही धर्म से बैर।
फिर भी कहता वो हमें, खूब मनाले खैर।।
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जितना कहना कह दिया,जितना चाहे मान।
वो तो जिंदा लाश है,जिसका ना सम्मान।।
———-
तेरी मर्जी मान जा , मर्जी है ना मान।
चंदा देकर भी नहीं,होगा तेरा गुनगान।।
26/1/21
[1/26, 3:50 PM] Naresh Sagar: ? कविवाणी साहित्य कला मंच को समर्पित… देश भक्ति गीत??
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बोल तिरंगा अब तो बोल
अपने होठों को तो खोल
तेरे खातिर छोड़के सब कुछ
मैं तो गया बस तुझ में डोल
बोल तिरंगा …………
कैसा लगता है बोलो तो
तुझको मेरी मर्दानी
तुझपै निछावर मैंने कर दी
अपनी सारी जवानी
एक बार तो अपने मन से
मेरे भी मन को तो तोल
बोल तिरंगा ………..
सजी दुल्हनियां छोड़के आया
मां को रोता छोड़के आया
बहन की राखी रोती रह गई
भाई से भी मुंह मोड़ के आया
बापू का आते वक्त तो
बंद हो गया उसका बोल
बोल तिरंगा …………….
तुझ पर निछावर मेरी दुनिया
देखी नहीं नन्ही सी गुड़िया
तेरे खातिर लड़ जाऊंगा
हंसते-हंसते मर जाऊंगा
अंत समय भी मेरे मुंह से
निकलेंगे बस तेरे बोल
बोल तिरंगा ……………….
मुझसे लिपट जा मुझ में सिमट जा
मेरे बदन की चादर बन जा
कितने शहीद हुए तेरे खातिर
मैं भी खड़ा उस भीड़ में आखिर
हंसते-हंसते जां दे दूंगा
चाहे मेरी चाहत तौल
बोल तिरंगा ……………..
मैंने सरहद की मिट्टी को
चुम्मा है मां के चरणों सा
मेरे बदन में देश का जज्बा
कोंधे सूरज की किरणों सा
मर जाऊं तो सुन-ए- तिरंगा
पड़ने मत देना तू झोल
बोल तिरंगा ……………..
जाति धर्म कुर्बान है तुझ पर
तेरे बड़े एहसान है मुझ पर
दुश्मन तेरे आगे कांपे
मुंह की खाये जब भी झांके
“सागर” तेरा हुआ दीवाना
तेरी नजर में क्या है मौल
बोल तिरंगा अब तो बोल ।
बोल तिरंगा अब तो बोल ।।
जय भारत ???✍? जय संविधान
मूल गीतकार…. बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
[1/26, 10:29 PM] Naresh Sagar: अन्न दाता को आतंकी बता रहे हैं
कैसा किस्सा ये कहानी सुना रहे हैं
सच के पीछे झूंठ कौन सा है छुपा
फायर डंडा भी चलाया जा रहा है
लालकिले की बदल डाली कहानी
नया झंडा भी फहराया जा रहा है
क्या कोई साजिश तो नहीं है गहरी
दो अप्रैल को दोहराया जा रहा है
सच में ये किसान थे या कोई उपद्रवी
देश को ये क्या दिखाया जा रहा है
किसान भी मेरा है जवान भी है मेरा
जानें तस्वीरों में क्या दिखाया जा रहा है
क्यूं ये हलचल है क्यूं है ये अफरा तफरी
देश को किस रास्ते पै लाया जा रहा है
गणतंत्र को गम में यूं तब्दील करके
देश भक्ति का गीत गाया जा रहा है
एक दम कैसे ये माहौल है बदला
सोचकर ये सर भिननाया जा रहा है
जांज तो इस बात की सच होनी चाहिए
कौन है जिसके इशारे पर ये कराया जा रहा है
आंखें रोती रही रात भर ही ये सागर
सोचकर क्यूं बात को बढ़ाया जा रहा है
किसान को जवान से लडाकर बताओ
देश को ये क्या दिखाया जा रहा है
ये ही थे क्या अच्छे दिन सरकार तेरे
खून से खून को जो भिड़ाया जा रहा है
फूट क्यूं ना गई आंखें ये देखने से पहले
तिरंगे के दिन तिरंगे को हटाया जा रहा है
संविधान दिवस पर संविधान हटाने को
काला दिवस खुलकर मनाया जा रहा है
======26/1/21…..10.29
[1/27, 1:52 PM] Naresh Sagar: तिंरगे को ललकारा है ,या हमको ललकारा है।
किस जालिम का बोलो, उसको मिला सहारा है।।
जय जवान और जय किसान को, लड़वाकर आपस में।
किस जालिम ने “सागर”, अपना रूप निखारा है।।
… डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[1/27, 2:44 PM] Naresh Sagar: …………….गीत
ये क्या हो रहा है?
===========

आतंकी अन्नदाता, बताया जा रहा हैं।
कैसा किस्सा ,ये सुनाया जा रहा हैं।।
सच के पीछे झूंठ, कौन सा छुपा है।
गोली -डंडा भी ,चलवाया जा रहा है।।
लालकिले की यूं ,बदल डाली कहानी।
नया झंडा कैसे, फहराया जा रहा है।।
क्या कोई साजिश तो, नहीं है ये गहरी।
दो अप्रैल को ,दोहराया जा रहा है।।
सच में ये किसान थे, या कोई जालिम।
देश को ये क्या, दिखाया जा रहा है।।
किसान भी मेरा है ,जवान भी है मेरा।
कैसा ये षड्यंत्र,रचाया था रहा है ।।
क्यूं ये हलचल है ,कैसी है अफरा- तफरी।
देश को किस रास्ते पै, लाया जा रहा है।।
गणतंत्र को गम में ,यूं तब्दील करके।
देश भक्ति का गीत ,गाया जा रहा है।।
एक दम कैसे ,ये माहौल है बदला ।
सोचकर ये सर ,चकराया जा रहा है।।
जांज तो इस बात की, करवा ही डालो।
तीर ये किसका , चलाया जा रहा है।।
रात भर रोती रही, यूं मां भारती ।
आजादी का मान, घटाया जा रहा है।।
किसान को जवान से, यूं लड़वाकर ।
देश को ये क्या, सिखाया जा रहा है।।
ये ही थे क्या ,अच्छे दिन सरकार तेरे।
खून से खून को, लडवाया जा रहा है।।
फूट जातीं आंख ,ये देखने से पहले।
तिरंगे के दिन तिरंगे को, हटाया जा रहा है।।
संविधान दिवस पर, हटाओ संविधान को।
देशद्रोही बिगुल, बजाया जा रहा है।।
बेच ना दे माली ,अब सारे चमन को।
खोलो आंखें, हाथ से सब जा रहा है।।
जाग सको तो जाग जाओ,ए- देश वालों
“सागर” तुमको, अब चेताया था रहा है।।
==========
बेखौफ शायर/गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
[1/29, 4:54 PM] Naresh Sagar: वो बहुत खूबसूरत हैं
इस दिल की ज़रूरत हैं
नहीं मालूम ग़म हैं क्या
वो खुशियों का मुहूर्त हैं

प्रवीण राणा वर्मा।।। 29-01-2021
[1/29, 5:05 PM] Naresh Sagar: सच वो बहुत ही खूबसूरत है।
मेरे दिल की बड़ी जरूरत है।।
मुझे मालूम नहीं गम है क्या ?
मेरी खुशियों की वो मुहूर्त है।।
[1/29, 7:25 PM] Naresh Sagar: …………….गीत
ये क्या हो रहा है?
===========

आतंकी अन्नदाता, बताया जा रहा हैं।
कैसा किस्सा ,ये सुनाया जा रहा हैं।।
सच के पीछे झूंठ, कौन सा छुपा है।
गोली -डंडा भी ,चलवाया जा रहा है।।
लालकिले की यूं ,बदल डाली कहानी।
नया झंडा कैसे, फहराया जा रहा है।।
क्या कोई साजिश तो, नहीं है ये गहरी।
दो अप्रैल को ,दोहराया जा रहा है।।
सच में ये किसान थे, या कोई जालिम।
देश को ये क्या, दिखाया जा रहा है।।
किसान भी मेरा है ,जवान भी है मेरा।
कैसा ये षड्यंत्र,रचाया था रहा है ।।
क्यूं ये हलचल है ,कैसी है अफरा- तफरी।
देश को किस रास्ते पै, लाया जा रहा है।।
गणतंत्र को गम में ,यूं तब्दील करके।
देश भक्ति का गीत ,गाया जा रहा है।।
एक दम कैसे ,ये माहौल है बदला ।
सोचकर ये सर ,चकराया जा रहा है।।
जांज तो इस बात की, करवा ही डालो।
तीर ये किसका , चलाया जा रहा है।।
रात भर रोती रही, यूं मां भारती ।
आजादी का मान, घटाया जा रहा है।।
किसान को जवान से, यूं लड़वाकर ।
देश को ये क्या, सिखाया जा रहा है।।
ये ही थे क्या ,अच्छे दिन सरकार तेरे।
खून से खून को, लडवाया जा रहा है।।
फूट जातीं आंख ,ये देखने से पहले।
तिरंगे के दिन तिरंगे को, हटाया जा रहा है।।
संविधान दिवस पर, हटाओ संविधान को।
देशद्रोही बिगुल, बजाया जा रहा है।।
बेच ना दे माली ,अब सारे चमन को।
खोलो आंखें, हाथ से सब जा रहा है।।
जाग सको तो जाग जाओ,ए- देश वालों
“सागर” तुमको, अब चेताया था रहा है।।
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बेखौफ शायर/गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
[1/29, 11:01 PM] Mere Number: संविधान बचाओ
==========
बहुत दिनों से चर्चा ही नहीं चल रही
बल्कि …… स्वयं भी पढि है कई बार ऐसी खबरें कि ……बदल दिया जाएगा भारत का संविधान
वही संविधान जो आज़ाद भारत का पहला संविधान हैं जिसे लिखा था अस्वस्थ होने की अवस्था में भी स्वस्थ मानसिकता से डा.अमबेडकर जी ने।
संविधान के बदले लाने वाले हैं मनुविधान
ये वही मनुविधान है जिसकी वज़ह से भारत का मूलनिवासी साढ़े पांच हजार साल तक रहा था गुलाम और आज तक जेल रहा है जातिगत यातनाएं
क्योंकि नहीं हो पाया आज तक भारतीय संविधान लागू।
संविधान बदलने से केवल बहुजन समाज का ही अधिकार नहीं छिनेगा बल्कि समस्त …एस.सी.,एस.टी.,ओ.बी.सी.और मानियोरिटि की भी आजादी पर लग जाएगा प्रश्नचिन्ह।
और देश के नरेश संसद भवन में लागू होगा नया मनुविधान
बदल जायेगी गणतंत्र दिवस की तारीखें
छीन जाएगा मतदान का अधिकार
बदल जाएगा देश का तिरंगा
भारत से हो जाएगा हिंदूस्थान
और स्थापित होगा राम राज्य
जहां काटे जायेंगे
शमबूक रिषी के शीश
कांटी जाएंगी सूफन खां की नाक
और लगवाए जायेंगे
सुग्रीव और बाली
और फिर तुम शुरू आत करोगे आंदोलन की जिसके बीच में बैठ होंगे सिद्धू जैसे सरकार समर्थित लोग
और परिणाम होगा
दो अप्रैल
साईनबाग
किसान आंदोलन जैसा हर्ष
क्योंकि आज आप चुप बैठोगे
जब बोलने की आजादी हो जायेगी समाप्त तब बोलोगे
और तब कोई ना बोलने की देगा अनुमति
और ना ही कोई सुनेगा तुम्हारी आवाज़
मिशन के नाम पर उगाने वाला चंदा और मंच से बोलने वाला बंदा …….और सत्ता में बैठने वाला अंधा ही नहीं होंगे जिम्मेदार क्योंकि ये तो नौटंकीबाज थे है और रहेंगे
गुनहगार रहेंगे हम सब
अभी सब सोच रहे हैं कि संविधान बदलने से नुकसान होगा चमारों का तो सभी
ब्राह्मण
बनिया और
राजपूतों के अलावा जो भी लोग भारत में रहते हैं सभी को भोगना होगा इसका परिणाम
क्योंकि मनु स्मृति में है केवल तीन जातियां हिंदू
ब्राह्मण
क्षत्रिय और वैश्य
……….तो संविधान जिंदा तो आप जिंदा
नहीं तो पढ़कर देख लेना
मनुस्मृति को सच क्या है और परिणाम क्या होगा।
संविधान जिंदा
भारत जिंदा
तिरंगा जिंदा
गणतंत्र जिंदा
शिक्षा जिंदा
अभिव्यक्ति जिंदा
स्वाभिमान जिंदा
और ज़िंदा
प्यार, इंसानियत,और आजादी जिंदा।
संविधान बचाओ
देश बचाओ
स्वयं को बचाओ।।
=====29/01/21… रात्रि 11.00बजे
[1/30, 4:20 PM] Naresh Sagar: ………..कविता
प्रवासी का दर्द
=========
घर से निकले थे बहुत सारी उम्मीदों के साथ
ढेर सारे सपने लिए
और
घनी सारी जिम्मेदारीयों के साथ
प्रवासी बनकर
कुछ दिनों दिक्कतों की उठा पटक के साथ हो गये स्थापित
और एक दिन अचानक एक महामारी के चलते होने लगे वापसी
उधर …….
जिधर छोड़कर आये थे
जन्म भूमि
टूटा- फूटा घर
परिवार और
बचपन की यादें
और वापिस ले जा रहें थे
टूटे सपने
अधूरी जिम्मेदारी
भूख- प्यास
पांवों में छाले
पैदल लम्बी यात्रा
और खो दिये थे कितनों ने अपने खून के रिश्ते……..
हाथ आयी तो बस हतासा
निराशा और वही
जार -जार रोती बिलखती ज़िन्दगी और घुटन।
========
मूल रचनाकार…..
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
30/01/21…. रात्रि….12.51
[1/30, 4:36 PM] Naresh Sagar: संविधान बचाओ
==========
बहुत दिनों से चर्चा ही नहीं चल रही
बल्कि …… स्वयं भी पढ़ा है कई बार कि ……बदल दिया जाएगा भारत का संविधान
ये वही संविधान है जो आज़ाद भारत का पहला संविधान हैं जिसे लिखा था अस्वस्थ होने की अवस्था में भी स्वस्थ मानसिकता से डॉ.अंबेडकर जी ने।
संविधान के बदले लाने वाले हैं मनुविधान
ये वही मनुविधान है जिसकी वज़ह से भारत का मूलनिवासी साढ़े पांच हजार साल तक रहा था गुलाम और आज तक झेल रहा है जातिगत यातनाएं
क्योंकि नहीं हो पाया आज तक भारतीय संविधान पूर्णतः लागू।
संविधान बदलने से केवल बहुजन समाज का ही अधिकार नहीं छिनेगा बल्कि समस्त …एस.सी.,एस.टी.,ओ.बी.सी.और मानियोरिटि की भी आजादी पर लग जाएगा प्रश्नचिन्ह।
और देश के नये संसद भवन में लागू होगा नया मनुविधान
बदल जायेगी गणतंत्र दिवस की तारीखें
छीन जाएगा मतदान का अधिकार
बदल जाएगा देश का तिरंगा
भारत से हो जाएगा हिंदुस्तान
और स्थापित होगा राम राज्य
जहां काटे जायेंगे
शम्बूक ऋषि के शीश
कांटी जाएंगी सूफन खां की नाक
और लडवाए जायेंगे
सुग्रीव और बाली
और पैदा किए जायेंगे ….. विभिषण
और फिर करोगे तुम शुरू आत …. आंदोलन की
जिसके बीच में बैठ होंगे सिद्धू जैसे सरकार समर्थित दंगाई लोग
और परिणाम होगा
दो अप्रैल
साईनबाग
किसान आंदोलन जैसा हर्ष
क्योंकि आज आप चुप बैठोगे तो …..
जब बोलने की आजादी हो जायेगी समाप्त तब बोलोगे ???
और तब कोई ना बोलने की देगा अनुमति
और ना ही कोई सुनेगा तुम्हारी आवाज़
मिशन के नाम पर उघाने वाले चंदा और मंच से बोलने वाला बंदा …….और सत्ता में बैठने वाला अंधा ही नहीं होंगे जिम्मेदार क्योंकि ये तो नौटंकीबाज थे
है ….
और रहेंगे।
गुनहगार रहेंगे हम सब
अभी सब सोच रहे हैं कि संविधान बदलने से नुकसान होगा चमारों का तो सभी
ब्राह्मण
बनिया और
राजपूतों के अलावा जो भी लोग भारत में रहते हैं सभी को भोगना होगा इसका परिणाम
क्योंकि मनु स्मृति में है केवल तीन जातियां हिंदू
ब्राह्मण
क्षत्रिय और वैश्य
……….तो संविधान जिंदा
तो आप जिंदा
नहीं तो पढ़कर देख लेना
मनुस्मृति को सच क्या है और परिणाम क्या होगा।
संविधान जिंदा
भारत जिंदा
तिरंगा जिंदा
गणतंत्र जिंदा
शिक्षा जिंदा
अभिव्यक्ति जिंदा
स्वाभिमान जिंदा
और ज़िंदा
प्यार, इंसानियत,और आजादी जिंदा।
संविधान बचाओ
देश बचाओ
स्वयं को बचाओ।।
संविधान के अलावा आपको कोई ग्रंथ नहीं बचा सकता।
ये सच है
यही एक सच है
चाहो तो करलो एक समीक्षा।
=====
मूल रचनाकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
मुरादपुर- सागर कॉलोनी, गढ़ रोड-नई मंडी
हापुड़, उत्तर प्रदेश
29/01/21… रात्रि 11.00बजे
[1/31, 7:26 PM] Naresh Sagar: अपने जज्बातों को, हवा लगने दो।
ये जुल्फें खुलकर, आज बिखरने दो।।
जिंदगी अपनी है, जियो चाहे
जैसे ।
दुनिया जलती है तो, इसे जलने दो।।
….. डॉ.नरेश कुमार “सागर”
01/06/19
[1/31, 7:45 PM] Naresh Sagar: बोल तिरंगा अब तो बोल
==========
बोल तिरंगा अब तो बोल
अपने होठों को तो खोल
तेरे खातिर छोड़के सब कुछ
मैं तो गया बस तुझ में डोल
बोल तिरंगा …………
कैसा लगता है बोलो तो
तुझको मेरी मर्दानी
तुझपै निछावर मैंने कर दी
अपनी सारी जवानी
एक बार तो अपने मन से
मेरे भी मन को तो तोल
बोल तिरंगा ………..
सजी दुल्हनियां छोड़के आया
मां को रोता छोड़के आया
बहन की राखी रोती रह गई
भाई से भी मुंह मोड़ के आया
बापू का आते वक्त तो
बंद हो गया उसका बोल
बोल तिरंगा …………….
तुझ पर निछावर मेरी दुनिया
देखी नहीं नन्ही सी गुड़िया
तेरे खातिर लड़ जाऊंगा
हंसते-हंसते मर जाऊंगा
अंत समय भी मेरे मुंह से
निकलेंगे बस तेरे बोल
बोल तिरंगा ……………….
मुझसे लिपट जा मुझ में सिमट जा
मेरे बदन की चादर बन जा
कितने शहीद हुए तेरे खातिर
मैं भी खड़ा उस भीड़ में आखिर
हंसते-हंसते जां दे दूंगा
चाहे मेरी चाहत तौल
बोल तिरंगा ……………..
मैंने सरहद की मिट्टी को
चुम्मा है मां के चरणों सा
मेरे बदन में देश का जज्बा
कोंधे सूरज की किरणों सा
मर जाऊं तो सुन-ए- तिरंगा
पड़ने मत देना तू झोल
बोल तिरंगा ……………..
जाति धर्म कुर्बान है तुझ पर
तेरे बड़े एहसान है मुझ पर
दुश्मन तेरे आगे कांपे
मुंह की खाये जब भी झांके
“सागर” तेरा हुआ दीवाना
तेरी नजर में क्या है मौल
बोल तिरंगा अब तो बोल ।
बोल तिरंगा अब तो बोल ।।
==========
मूल गीतकार…. बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
[2/1, 10:32 AM] Naresh Sagar: प्रवासी का दर्द
============
छोड़ कर गांव को
पीपल वाली छांव को
घर रम्भाती गाय को
मां के टूटे पांव को
छोड़कर आ गया था वो
शहर में
लेकर नंगें पांव को
रोटी की तलाश में
बेटी की शादी में दहेज देने के लिए
बेटे की पढ़ाई के लिए
मां के इलाज के लिए
और ……..
बीवी की रेशम की साड़ी के लिए
भूखा-प्यासा लगा रहता अभागा
दिन -रात मशीन पर
मशीन बनकर
अपने ही देश में बन गया परदेशी
क्योंकि ये था प्रवासी
कौन पढ़ता इसकी उदासी
लाखों सपने लेकर आया था
और हज़ार रुपए लेकर गया था घर
जहां हजार रुपए आटे में नमक के बराबर ही तो थे।
ना हुआ मां का इलाज
ना जमा हुई बेटे की फीस
ना जमा हुआ बेटी की शादी के लिए दहेज
और इस बार भी ना था सका बीवी की साड़ी।
=======
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
01/02/2021
[2/1, 10:46 AM] Naresh Sagar: प्रवासी की पद यात्रा
==========
अपने गांव , जिला और प्रदेश छोड़कर चल पड़ा बीवी बच्चों के साथ दूसरे नगर
साथ लेकर चंद रूखी रोटीयों के साथ
नंगे पांव ,फटे पुराने कपड़े लेकर
बहुत सारे सपनों के साथ
काम मिलने की खुशी में बनाए नमक के चावल और की अपने भगवान की पूजा
अभी ठीक से जमें भी नहीं थे पांव और बंद हो गई मशीन
रूक गये बस, टेमपू और रेल गाड़ियों के पहिए
तेज गर्मी
तपती सड़क नंगे पांव
सूखते होंठ और पेट में भूख का दर्द लिए बढ़ने लगे अपने गंतव्य की ओर……..
सरकारी सहयोग बंद
मानवता डरी हुई
पुलिस के डंडे उफ़ ये जिंदगी भी क्या जिंदगी है
आंखों में टूटे सपनों के साथ बह रहे थे लाचारी के आंसू
कमाने की होड़ में खो दिये थे इस सफ़र में कितनों ने
अपने बच्चे
अपनी पत्नी
और ….. अपने पति
पाने की इच्छा में लौट रहे थे प्रवासी बहुत कुछ खोकर उसी घर को जहां से चले थे वो कुछ लाने के लिए।
========
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
01/02/2021
[2/1, 4:07 PM] Naresh Sagar: नहीं देखते प्रवासीयों को लोग
सही नज़र से
नहीं करते लोग उनसे प्यार से बातें
नहीं रहती उनकी बेटी और स्त्रीयों की इज्ज़त सुरक्षित
नहीं मिलते उनके बच्चों के लिए स्कूल
और नहीं मिलता उन्हें
सरकारी योजनाओं का लाभ
………. फिर भी आते हैं वो रोटी की तलाश में
काम की तलाश में
सपनों की तलाश में
…….करने अपनी जिम्मेदारीयां पूरी
जिनसे रखी जाती है दूरी
और किया जाता है जातिभेद
अपने ही देश में रहते हैं वो
पराये से
मगर फिर भी करते हैं वो सभी से हंसकर बातें
प्रवासी की भी डगर, मत समझो आसान।
अपने देश में रहता, जो खूब परेशान।।
======
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
01/02/2021
[2/1, 6:20 PM] Naresh Sagar: आसमां भी रो देता था, किसान के रोने पर।
और सरकार हंस रही है,107 खोने पर।।
… बेखौफ शायर…डॉ. नरेश “सागर”
[2/2, 9:18 AM] Naresh Sagar: महानायक के पिता सकपाल राव जी राव की पुण्यतिथि पर सादर समर्पित
???✍???????
जिसने दिया भीम सा बेटा
जिसने दिया नया इतिहास
जिसने दी हमको आजादी
जिसने जगाया है विश्वास
जिसने हमको लड़ना सिखाया
जिसने हमको पढ़ना सिखाया
जिसने हमको जीना सिखाया
जिसने हमको कहना सिखाया
जिसने दे डाला संविधान
उस महापुरुष के पिता को
मेरा कोटि-कोटि प्रणाम
मेरा कोटि-कोटि प्रणाम
मेरा कोटि-कोटि प्रणाम
========
बेखौफ शायर/गीतकार/लेखक
प्रदेश अध्यक्ष- कलमकार संघ (मिशन सुरक्षा परिषद)
9149087291….9897907490
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
जय भीम?? जय भारत? जय संविधान✍?
[2/2, 2:05 PM] Naresh Sagar: आज तक संभाले रक्खे हैं तेरे प्यार के ख़त
वो तेरे मेरे प्यार की बहार के ख़त
[2/2, 2:20 PM] Naresh Sagar: ना भूला मैं तुझे जाना, ना तेरी मुलाकातें
बहुत मुझको बताती है, तेरी मीठी मीठी बातें
कभी जब यादे तेरी मुझे बैचेन करतीं हैं
तो पढ़ लेता हूं ख़त तेरे,खोलकर बंद खाते
हाय कितना सताता है वो चुम्बन तेरा पहला
छांव क्या खूब देते थे,तेरी जुल्फों के वो छाते
जमाने भर में चर्चे थे हमारी मौहबबत के
जुवां पर नाम था सबके, जुवां पर रहतीं थीं बातें
महकते थे बहुत ही दिन तेरी महक लेकर
खोई रहती थी तेरी यादों में बस मेरी रातें
मगर अब खत नहीं आते, तेरे ना तू ही आती है
मगर दे गयी हजारों गम तुम तो जाते जाते
तेरे वो ख़त मौहबबत के,तेरी यादों से लिपटे है
[2/2, 6:01 PM] Naresh Sagar: ग़ज़ल
…. मुस्कुराती चिट्ठियां
***************
दिल जिगर से भी प्यारी, हैं तुम्हारी चिट्टियां।
जान जाती लौट आती,पा तुम्हारी चिट्टियां।।

घेर लेती है कभी जब, गम- ए- तन्हाई हमें।
गुदगुदाती- खिलखिलाती, मुस्कुराती चिट्ठियां।।

एक वो तस्वीर तेरी, देख जीतें हैं जिसे ।
पूछतीं है रोज हमसे, कैसी लगती चिट्टियां।।

यादों की ताबीर इनमें, जीने की तासीर है।
रुसवा जब करता जमाना, तब रिझाती चिट्ठियां ।।

बच्चों सी मासूम दिखती, मां के लगती प्यार सी।
और सनम की बिंदिया जैसी, ये चमकती चिट्टियां।।

चिट्ठियों का ये चलन, “सागर” खत्म ना हो कभी।
लिख सके चिट्ठी ना जो, उनको चिढाती चिट्ठियां।।
==============
मूल रचनाकार ….
बेखौफ शायर… डॉ.नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
9149087291
[2/3, 8:33 PM] Naresh Sagar: तेरी यादों के गीत गाए हैं।
दर्द लेकर भी मुस्कराए है।।
[2/4, 7:46 PM] Naresh Sagar: कितना लाल होता है, रंग इंकलाब का।
देख लेना साथ मेंरे, रंग तुम सैलाब का।।
बेखौफ शायर.. डॉ. नरेश “सागर”
[2/4, 8:06 PM] Naresh Sagar: कितना लाल होता है, रंग इंकलाब का।
देख अब साथ मेंरे, रंग तुम सैलाब का।।
बेखौफ शायर.. डॉ. नरेश “सागर”
[2/5, 6:02 AM] Naresh Sagar: देखलो घाव तुम किसान के।
रस्ते नहीं आसान इंकलाब के।।
5/2/21
[2/5, 10:57 AM] Naresh Sagar: हां वो किसान है
============
हां वो किसान हैं
देश का सम्मान है
खेती का अरमान है
भूखों का स्वाभिमान है
हां वो किसान है
हां वो किसान है………….
यही तो लड़ता है,
मौसम की मनमर्जी से
सरकार की मूठ मर्दी से
मीडिया की खुदगर्जी से
लड़ने की रखता जान है
हां वो किसान है
हां वो किसान है…………..
बंजर में हरियाली भर दे
वो चाहे क्या से क्या कर दे
मां भारत के लिए वो जीता
वो चुप रहकर जहर है पीता
सरहद पर देता प्राण है
हां वो किसान हैं
हां वो किसान हैं…………..
ना छलता है, ना ठगता है
बस जलता है- बस जलता है
देश का ये पालनहारी है
सरकार कहे ये बीमारी है
वो कृषक मेरा भगवान है
हां वो किसान हैं
हां वो किसान हैं………….
जय जवान- जय किसान का नारा
लगता नहीं क्यूं अब ये प्यारा
जो कहते थे अन्नदाता उसको
वो आतंकी बोले उसको
दे रहा जो हंस-हंस प्राण हैं
हां वो किसान हैं
हां वो किसान हैं ………
रोटी देता पर भूखा है
खेती में पड़ गयी सूखा है
रोता नहीं फिर भी वो हंसता
खाली रहता जिसका बस्ता
धीरज की रखता खान है
हां वो किसान है
हां वो किसान हैं…………
आज उंगली इस पर उठती है
मीडिया आतंकी कहती है
देख रहे हैं हम झूठों को
संविधान के खूंटो को (लोकतंत्र के चार स्तम्भ)
गई सैकड़ों जान हैं
हां वो किसान हैं
हां वो किसान हैं ………
पीट रहा और लड़ रहा वो
देखो कैसे मर रहा वो
जज्बात से खेला है कैसा
ये राजा बैठा है कैसा
पूछे क्या फरमान है
हां वो किसान हैं
हां वो किसान हैं …………
सड़कों पर भी कील बिछा दी
टायरों की हवा चुराली
मुद्दों पर कोई बात नहीं है
अच्छी कोई शुरुआत नहीं है
ठोक दिया ऐलान है
हां वो किसान है
हां वो किसान हैं ………
घर से अब बाहर आ जाओ
अन्नदाता के साथ हो जाओ
डर के ना चुप बैठ जाना है
“सागर” ये एक जुर्माना है
देश की ये पहचान है
हां वो किसान है
हां वो किसान हैं……….।।
=========
मूल गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़,उत्तर प्रदेश
9149087291
[2/5, 7:14 PM] Naresh Sagar: जिद्द के आगे जिद्दी
===============
चक्का जाम की सुनकर, चक्कर में सरकार।
चुप बैठे किसान भी , करेंगे हाहाकार।।
करेंगे हाहाकार , उठेंगे जमकर मुद्दे।
होते हैं हो जाए ,किसी के पेट में सुद्दे।।
कह “सागर” कविराय ,ना हक अपना छोड़ेंगे।
मानें ना सरकार ,ना तब तक रूख मोड़ेंगे।।
=====
बेखौफ शायर/गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, सागर कालोनी
[2/6, 4:08 PM] Naresh Sagar: बिन पैसों के प्यार नहीं है
===============
बिन पैसों के प्यार नहीं है
घर में भी व्यवहार नहीं है
सब्जी- आटा दूर की बातें
डिब्बे में अचार नहीं है
बिन पैसों के प्यार नहीं है………
शिक्षा बीच में छूट गई है
प्रेमिका भी रूठ गई है
रोजगार की टांग टूट गई
जीने का आधार नहीं है
बिन पैसों के प्यार नहीं है ……..
मां की बीमारी बढ़ गई है
पापा की चिंता बढ़ गई है
बीवी की साड़ी ना आयी
उम्मीदें बेजार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है ……..
मंदिर में प्रवेश नहीं है
मस्जिद में दरवेश नहीं है
खाली जेबें कोई ना पूछें
कोई किसी का यार नहीं है
बिन पैसों के प्यार नहीं है………
मानवता पैसों से तुलती
इसी बात पर तुलसी झुलसी
जो चाहे वो सब करवा लो
पैसों में वो धार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है………
रिश्ते- नाते सब झूठे हैं
बिन पैसों के सब रूठे हैं
बात कोई ना करता उससे
हालत जिसकी बेजार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है……….
मुझसे पूछो क्या है पैसा
सब बेकार यदि ना पैसा
सपने जलकर खाक हुए हैं
सांसे तार-तार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है …….
पैसा बड़ी बीमारी भारी
इससे घर रहती लाचारी
बिकती इज्जत रोज भूख में
इतना भी लाचार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है……….
बेटा ना कोई बेटी है
घर में कंगाली बैठी है
टूटे कितने खून के रिश्ते
कब रिश्तो में तार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है………
कला की कब कीमत बिन पैसा
लोग कहे उसे ऐसा- वैसा
आत्महत्या का ये है कारण
रोज गरीबी मार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है ………
हाय कहां से आया पैसा
खूब नचाये सबको पैसा
कोई बन गया खूनी- डाकू
सब पर इसकी मार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है ……..
जो पैसों का बना पुजारी
वह मानवता का हत्यारी
बुद्ध जैसे त्यागी नहीं मिलते
नीयत सब की जार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है …….
माना पैसा बहुत जरूरी
यह इंसा की है मजबूरी
पर मानवता बड़ी है सबसे
जीने का आधार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है……..
मत पैसों से रिश्ते तौलों
अपनों को बाहों में ले लो
दौलत आनी जानी छाया
ये हर वक्त खार रही है
बिन पैसों के प्यार नहीं है………
“सागर” पैसा बहुत जरूरी
बनने मत दो ये मजबूरी
लालच से बस पाप है होता
जैसा बोता – वैसा पाता
पैसा कोई हथियार नहीं है
बिन पैसों के प्यार नहीं है………
माना घर में व्यवहार नहीं है
पर पैसा सरकार नहीं है
जीनें का आधार नहीं है
मन इतना लाचार नहीं है
खार है ये घर-बार नहीं है
पैसा चौकीदार नहीं है
पैसा मेरा प्यार नहीं है
पैसे बिन उद्धार नहीं है
फिर भी मेरा प्यार नहीं है
हां ये मेरा प्यार नहीं है।
हां ये मेरा प्यार नहीं है।।
==========
मूल गीतकार/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
06/02/2021…..9149087291
[2/8, 10:49 AM] Naresh Sagar: ए वक्त ले जितने इम्तिहान तुझे लेने हैं।
मैं ना हारा हूं ना हारा था ना हारूंगा किसी भी हालत में।।
[2/8, 6:02 PM] Naresh Sagar: नारी नहीं है अबला
==============
कौन कहता है तू अबला है…?
तू सबला है…. तू सबला है
तेरी कोख से ही पैदा हुए हैं
पैगंबर
मसीहा और शैतान
तूने हीं बदला है ये सारा जहान
तू रौनक है इस धरती की
तू जरूरत है हर एक घर की
तू पतझड़ नहीं बाहर है
तू ही तो पहला प्यार है………।
कहते हैं तू देवी है लक्ष्मी है सरस्वती है
फिर तू अबला कैसे हैं …..?
मैंने नहीं देखा है इन्हें
मगर तू ……. झलकारी बाई है
सावित्रीबाई है
रमाबाई है
फूलन देवी है
कल्पना चावला है
इंदिरा गांधी है
लता मंगेशकर है
हिमा दास है
टीना डाबी है
शबाना आजमी है
सानिया मिर्जा है
और…… तू ही है
मायावती सरीखी आयरन लेडी
कौन कहता है ……
तू अबला है ….?
कमजोर, गुनहगार और पुरुष प्रधानों के अलावा तू किसी की भी नजरों में अबला नहीं थी
……तू मनुस्मृति में
तुलसी की लेखनी में ….अबला है
मगर भारतीय संविधान ने तुझे सबला बना दिया
कूड़ा बीनने वाली रेनू मंडल को
गायिका रेनू मंडल बना दिया
ये काम डॉ. अंबेडकर ही कर सकते थे
अब कौन कहता है तू ….अबला है….?
तेरी कोख से ही तो पैदा हुए हैं
भगत सिंह
उधम सिंह
राजगुरु- सुखदेव, चंद्रशेखर, अशफाक उल्ला खान और बिरसा मुंडा……तू अबला कैसे हो सकती है ।
तू पूजनीय है ,पूजनीय थी और पूजनीय ही रहेगी
क्योंकि ……तेरे गर्भ से ही विकसित होता है पृथ्वी का विकास
पृथ्वी की आस और सुंदरता
तेरी कोख से ही पैदा होते हैं…..
एडिशन
रविदास
गौतम बुद्ध
……और लुकमान हकीम
फिर कौन मूर्ख कहता हैं तुझे
तू अबला है….?
तू अबला हो ही नहीं सकती
मानसिक विकृति लोग ही
……….तुझे अबला कहते हैं
मैं नारी जाति को नमन करता हूं।।
=========
मूल रचनाकार…….
कवि/बेखौफ शायर/गीतकार/ लेखक/चिंतक
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
मुरादपुर- सागर कालोनी, हापुड़, उत्तर प्रदेश
08/02/2021…..9149087291

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