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9 Jul 2021 · 19 min read

बिखरी यादें

[6/26, 4:59 PM] Naresh Sagar: विधा ====कविता
मंच….. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
दिनांक…..26/6/21
…….. कविता……..
आधुनिक जीवन में जो विज्ञान ना होता।
आनें – जानें का ना कोई सामान होता।।

आंखों पर ना होते लैंस ना आती रोशनी।
रोगों का ऐसे ना कभी निदान यूं होता।।

जल, थल, नभ सारे खंगाले इसके चलते।
ग्रहों का वास्तविक ना किसी को ज्ञान होता।।

टी.बी.और रेडियो से ना होता मंनोरंजन।
मोबाइल के अंदर ना इतना भंडार होता।।

कैसे करते कैद याद और सूरत अपनों की।
कैमरे का गर नहीं यूं अविष्कार है होता।।

खेती का होता कैसे निर्माण बताओ।
बढ़ते रोगों का ना शुलभ इलाज है होता।।

अंधकार था कितना बिना विज्ञान के देखो।
बिजली का गर ना ऐसे चमत्कार हैं होता।।

जीवन जीने का ढंग भी इससे आया है।
होता क्या यदि यार ये विज्ञान ना होता।।

आधुनिकता नहीं लौटती कभी जीवन में।
“सागर” जो विज्ञान का ये अविष्कार ना होता।।

विज्ञान बिना ज्ञान का भी आधार नहीं है।
ना होता विज्ञान तो ये संज्ञान ना होता।।
==========
मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[6/26, 5:36 PM] Naresh Sagar: लाजबाव लिख देंगे
=============
खुशी दो खुशी लिख देंगे।
हंसी दो हंसी लिख देंगे।।

तेरी जुल्फों को घटा लिख देंगे।
तेरी आंखों को झील लिख देंगे।।

तेरी बिंदिया को चांद लिख देंगे।
तेरे होठों को गुलाब लिख देंगे।।

तेरी नंथनी को लिखेंगे हम तारा।
तेरी गर्दन को सुराही लिख देंगे।।

तेरे योवन को लिखेंगे हम कंवल।
तेरी पायल को कमाल लिख देंगे।।

तेरी इन मरमरी से हाथों को।
कुदरत का कमाल लिख देंगे।।

कभी फुर्सत से बैठ तो आकर ।
हम तुझे लाजबाव लिख देंगे।।

आओगे जिस दिन सिमट के पहलू में।
तेरे अंग – अंग पै ग़ज़ल लिखी देंगे।।
=======
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
26/06/21
[6/26, 6:21 PM] Naresh Sagar: वो मर जाए यही है कहना।।
ऐसे गद्दारों को सागर।
दे दो फांसी यही है कहना।।
जिसे देश से प्यार नहीं है।
उसका भारत में क्या रहना
[6/26, 10:43 PM] Naresh Sagar: देश लूटे मुझको क्या लेना।
देश बिके मुझको क्या लेना।।
झुकता है झूक जाए तिरंगा।
देश मिटे मुझको क्या लेना।।
शरहद पै ख़तरा कितना हो।
सैनिक मिटे मुझको क्या लेना।
काला धन आए ना आए ।
जाए भूरा भी मुझको क्या लेना।।
मंदिर टूटे या टूटे मस्जिद।
मरे मानवता मुझको क्या लेना।।
हो बदनामी रोज देश की।
लाज लूटे मुझको क्या लेना।।
झूठ बिके और सजे झूंठ ही।
सच मर जाए मुझको क्या लेना।।
हक जिसका लूटता लूट जाए।
मिले ना न्याय मुझको क्या लेना।।
झूठ – मूठ इतिहास सुनाएं।
बदले शिक्षा मुझको क्या लेना।।
जो ऐसा कहते हैं हर दम।
वो मर जाए यही है कहना।।
ऐसे गद्दारों को सागर।
दे दो फांसी यही है कहना।।
जिसे देश से प्यार नहीं है।
उसका भारत में क्या रहना।।
======
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
26/6/21
[6/27, 5:38 AM] Naresh Sagar: जिन्हें अपना समझता हूं वही गद्दारी करते हैं।
गैरों से शिकायत की गुंजाइश नहीं रहती।।
[6/27, 5:49 AM] Naresh Sagar: इश्क कर आशीकी से काम लें।
आ इधर पहलू को मेरे थाम ले।।
[6/27, 5:53 AM] Naresh Sagar: भूलने की मुझे जिद्द नहीं करना।
अखबार नहीं हूं आशिक हूं मैं ।।
…… बेख़ौफ़ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
……27/6/21
[6/27, 8:25 AM] Naresh Sagar: शुरू होने से पहले ही, जब रिश्ता टूट जाता है।
ज़माने भर से भरोसा, फिर “सागर” टूट जाता है।।
[6/27, 8:28 AM] Mere Number: कत्ल कर लेंगे हम अपना, तुम्हें इल्ज़ाम ना देंगे।
जब तक तू नहीं बोले, जुबां अपनी ना खोलेंगे।।
27/6/21
[6/27, 8:30 AM] Mere Number: एक बस देखने की जिद्द ने,नसीबा फोड़ डाला है।
जुड़ा भी ना था जो रिश्ता,उसे फिर तोड़ डाला है।।
27/6/21
[6/27, 8:32 AM] Mere Number: तुझे मंजिल मिले तेरी, दुआं ये हमने भी की थी।
हमें मालूम न था मंजिल के, रोड़े हमी निकले।।
27/6/21
[6/27, 8:36 AM] Mere Number: कर सको तो माफ़ कर देना।
आईना घर का साफ कर देना।।
समझके पागल कोई मुझको।
दिल अपना साफ़ कर लेना ।।
27/6/21
[6/27, 8:37 AM] Mere Number: अपनी औकात से ज्यादा ,पांव फ़ैला बैठे।
खुशी की चाह में , अब जिंदगी भर रोएंगे।।
27/6/21
[6/27, 8:30 PM] Naresh Sagar: ………. गीत
हार को जीत में तू बदल।
जीतने के लिए चलता ही चल ।।

देर तक ठहरते देखे नहीं ।
आसमां पर कभी काले बादल।।

हो ना यूं मायूस तू मुस्कुरा ।
वक्त के पन्नों को फिर से बदल।।

रुक नहीं, थक नहीं, डर नहीं।
बढता चला, बढ़ता चला,बढ़ता चला।।

हार के बाद ही जीत है “सागर”।
सोच कर तू ये घर से निकल।।
==========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
केवल आपके लिए लिखी है
[6/28, 5:44 PM] Naresh Sagar: हमें कहना था हमने कह डाला।
तुम्हें जो कहना है कह डालो।
बात एक और भी ये कहानी है।
जुवां अपनी ज़रा संभालो।।
[6/28, 7:22 PM] Naresh Sagar: अपनी औकात में रहना नहीं आता उसको।
आईना शायद नहीं देखा उसने।।
[6/28, 9:55 PM] Naresh Sagar: आओ मिलकर साथ चले हम।
खुशीयों को साकार करें हम ।।
हाथ ना छूटे कभी हाथ से ।
रिश्तों को साकार करें हम।।
[6/28, 10:06 PM] Naresh Sagar: ।?। नमो बुद्धाय।?। जय भीम।?। जय भारत ।?।जय संविधान। ?।

#नमन मंच
#समतावादी_कलमकार_साहित्य_शोध_संस्थान, भारत l

तेरा साथ है तो मुझे क्या कभी है।
अंधेरों में भी मिल रही रोशनी है।।
……..ऐसा ही कुछ लेकर आएं हैं हम ……आप सभी के लिए

” दो दिवसीय आयोजन ”

दिनांक- 29/06/2021 से दिनांक- 30/06/2021 तक

दिवस – मंगलवार से बुधवार समय-रात्रि 10 बजे तक l

विषय- आओ मिलकर साथ चलें हम

विधा – स्वैच्छिक

यह विषय बहुत ही सरल, सहज, मार्मिक, मनमोहक एवं आकर्षक विषय के साथ एक संवेदनशील विषय है।आज एक साथ चलने की बहुत जरूरत है

“आओ मिलकर साथ चले हम।
खुशीयों को साकार करें हम ।।
हाथ ना छूटे कभी हाथ से ।
रिश्तों को साकार करें हम।।”

सभी प्रबुद्धजनों, कलमकारों, साहित्य अनुरागीयों एवं साहित्य प्रेमियों से मेरा करबद्ध निवेदन है कि इस विषय पर अपनी स्वैच्छिक रचना रचकर व सभी सुधि जन अपना अमूल्य समय देकर अपनी कलम की स्याह बूँद व मंगलकामनाओं से पटल को सजाइए|
उक्त विषय पर आयोजित दो दिवसीय स्वैच्छिक विधा आयोजन में सभी नवागंतुक कलमकारों,ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ, कनिष्ठ काव्य मनीषियों का हार्दिक स्वागत, वंदन तथा अभिनंदन है| सभी विद्वतजन अपने लेखनी की स्फूर्ति से पटल को सजाइये | अपने भाव रूपी पुष्प गुच्छ व आशीर्वाद प्रदान कर पटल के गरिमा को बढ़ाइये।
आइए हम सभी कलमकार बंधु इस विषय पर अनगिनत काव्य सृजन कर मंच की शोभा बढ़ाएं | एक- दूसरे के रचनाओं को पढ़कर सकारात्मक प्रतिक्रिया अवश्य दें|
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””
नमो बुद्धाय! जय भीम!!
जय भारत!!! जय संविधान???
•विषय प्रदाता और विषय प्रवर्तक•
✍️ जनकवि /बेखौफ शायर/लेखक – डॉ. नरेश कुमार “सागर”✍️
( लेखक, कवि, समीक्षक, स्क्रिप्ट राइटर, अभिनेता,मंच संचालक एवं सामाजिक चिंतक)‌
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9149087291
==========
समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान,भारत
आप सभी का स्वागत है……….।
[6/28, 10:53 PM] Naresh Sagar: वो छू ना पाएं छींका जो सागर।
सौ सौ इल्ज़ाम जालिम लगाकर चला गया।।
[6/30, 11:57 AM] Naresh Sagar: लिपट जाने दे आज सीनें से।
खुशबू आएगी पसीनें से ।
दूर रहकर ना कोई बात बनें।
इश्क़ सजाएंगे हम करिने से।।
…….30/6/21
[6/30, 12:00 PM] Naresh Sagar: जलने दे आज इश्क़ में हमको।
राख हो जाऊं तो घर ले जाना।।
मांजना बर्तन या बनाना मंजन।
शकुन रहेगा बिना मतलब नहीं था मर जाना
[6/30, 12:04 PM] Naresh Sagar: आज हमको शराब पीने दे।
चैन से कुछ देर हमें जीने दे।।
तेरी वफ़ा में खोट लगता है ।
आज दिल की हमें कहनें दे।।
=====
30/6/21
बात दिल की तो आज कहने दे।।
[6/30, 12:08 PM] Naresh Sagar: सच में बहुत ही खूबसूरत हो तुम।
अजंता की छुपी कोई मूर्ति हो तुम।।
जुल्फें तेरी घनेरी क्या कहना सनम।
लोग कहते हैं ये सिर्फ मेरी हो तुम।।
……….
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. सागर
[6/30, 12:37 PM] Naresh Sagar: हमने लूटा दी जिस पर जवानी।
वहीं मांगे हमसे वफ़ा की निशानी।।
[6/30, 3:00 PM] Naresh Sagar: मंच ….समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
विषय …..आओ मिलकर साथ चलेंगे हम
विधा……. गीत
दिनांक …..30/6 /2021
………. गीत………
आओ मिलकर साथ चले हम
सपने मिलकर साथ बुने हम
मंजिल के सब कंकर – कांटे
मिलकर सारे साफ करें हम
आओ मिलकर साथ ……..

चलो अकेले थक जाओगे
बीच राह में रुक जाओगे
इधर-उधर को मुड़ जाओगे
क्यूं ना फिर एक साथ चलें हम
आओ मिलकर साथ ………..

बाधा मिलकर ही हारेगीं
मंजिल भी बाहें थामेंगी
खुशियों के मेले संग होंगे
फिर क्यों ना एक साथ चलें हम
आओ मिलकर साथ……….

सफ़र अकेले कैसे काटें
दुःख- सुख अपने कैसे बांटे
हर गम हम से डर जाएंगा
हाथ में लेकर हाथ चले हम
आओ मिलकर साथ…………

ऊंच-नीच के भेद मिटा दो
प्यार के गुलशन को महका दो
रहे ना कोई भेद पुराना
ऐसा नया इतिहास रचे हम
आओ मिलकर साथ ………

एक साथ परिवार सजे हैं
ताकत सबको खूब जचे हैं
मिलकर जो चलते हैं हरदम
छू नहीं पाते हैं उनको गम
आओ मिलकर साथ ……….

बाधा सारी पार करेंगे
हम नया इतिहास लिखेंगे
“सागर” हाथ ना कोई छूटे
ऐसी खाए कसम आज हम
आओ मिलकर साथ चले हम।
सपने मिलकर साथ बुने हम।।
============
मूल रचनाकार …….
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
दैनिक प्रभारी
==========
[6/30, 10:10 PM] Naresh Sagar: दूर है मगर दिल के बहुत करीब है।
मेरा इश्क़ है वो, वो ही मेरा नसीब है।।
छू लूंगा जब उसे पारस में बन जाऊंगा।
मेरा मोहसिन है वो,वो ही मेरा हबीब है।।
[7/1, 2:48 PM] Naresh Sagar: चुराकर मेरी ,उसकी जो लिख लेते हैं।
स्वयं को वो भी, राष्ट्रीय कवि लिखते हैं।।
१/७/२१
[7/2, 6:27 PM] Naresh Sagar: विषय….. ग़लत
विधा….. गीतिका
मंच…. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
दिनांक…..02/07/2021
……….. गीतिका……….
पत्थर में भगवान ,सोचना ग़लत है।
मौलवी पे उपचार,कराना ग़लत है।।
आदमी को आदमी, ही रहनें दो।
जाति-भेद दंगा, कराना ग़लत है।।

इंसा से इंसा का, भेद है पागलपन।
ऊंच-नीच की बात,सुनाना ग़लत है।।
माना गुरु का पद , सबसे है ऊंचा।
द्रोणाचार्य की तरहा, होना गलत है।।

आदमी को आदमी, छू ले तो पापी।
मल- मूत्र से उसको, नहलाना ग़लत है।।
शिक्षा की दोगली, नीति बनाकर ।
शिक्षा का उपहास, करना ग़लत है।।

हो अगर अन्याय, सहे किस्मत समझकर।
अन्याय को सहना, बहुत ही ग़लत है।।
बेटा-बेटी का भेद, होता पीछडापन।
बेटी को घर में, बिठाना ग़लत है ।।

कौन कहता है, नारी कमजोर होती।
फूलन की तरहा, मजबूर करना ग़लत है।।
सच को सच बोलो, हमेशा तान सीना।
झूठ का प्रचार ,करना बहुत ग़लत है।।

अन्याय के आगे, जो झूके रहते हैं हरदम।
उनका तो हर हाल में, जीना ग़लत है।।
चाहे चलना ही पड़े उम्र भर अकेला।
गीदडो के झूंड में, रहना ग़लत है।।

तुम बढ़ोगे आगे तो, भौकेगें कुत्ते।
डरकर इनसे, बैठ जाना गलत है।।
हैं ग़लत हर बात वो, सुन लो ए-सागर।
अच्छो में जो ढूंढता, हर बात गलत है।।
=============
मूल रचनाकार…..
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
9149087291
[7/3, 4:54 AM] Naresh Sagar: इश्क़ गवांया आंसू रोए, कितने बिछुड गये अपने।
ए कोरोना नाश हो तेरा
[7/3, 1:35 PM] Naresh Sagar: हुशन वालों के दिल, हुए हैं पत्थर।
दिल लगाकर दिल को तोड़ देते हैं।।
[7/3, 1:35 PM] Naresh Sagar: इज्जत,आबरू और इश्क गर बाजार में मिलते।
ना लूटने का शिकवा होता ना जुदाई का दर्द।।
[7/3, 1:36 PM] Naresh Sagar: आग लगाकर आ गये अंजान बनने।
अंगुली उठाएं कैसे कभी अपना रहा था।।
[7/3, 5:16 PM] Naresh Sagar: मंच ….समतावादी कलमकार संघ साहित्य शोध संस्थान
विषय… राजश्री छत्रपति शाहूजी महाराज
विधा ………गीत
दिनांक……0307/2021
=======
दौड़ रही थी वर्ण भेद की, जब-जब तेज हवाएं
सुन रही थी कोई शक्ति, बहुजनों की सदाएं
पढ़ने का अधिकार नहीं था, ना मंदिर कोई जाई
पानी जो पोखर में पीते, पीटे खूब कसाई
मानव को मानव ने बांटा, बनकर के हरजाई।
जानवरों से ज्यादा नीच, बताते शर्म ना आई
सदियों तक बस ये ही पूछा, क्या है मेरी खताएं
सुन रही थी कोई शक्ति ………

नानक, कबीर,रैदास ना जाने, कितनों ने समझाया
मनुवाद को मानवता का ,पाठ समझ नहीं आया
बाबा अंबेडकर ने किया ,जिसका विरोध था भारी
छत्रपति शिवाजी राजा के, वो थे बने आभारी
पीड़ित बहुतजनों की जैसे, मिली थी खूब दुआएं
सुन रही थी कोई शक्ति …………

दासी प्रथा का अंत कराया, नारी देख मुस्कराई
ऊंच-नीच के भेद की तुमने ,खूब लड़ी लड़ाई
तुम थे मानवता के रक्षक, जो नई जोत जलाई
मनुवाद के अरमानों को, जी भर आग लगाई
तुमने तो बस समतावादी, वाले ही फल खाए
सुन रही थी कोई शक्ति ……….

आरक्षण के जनक तुम्ही हो, तुम ही बने करतारी
आज तुम्हारे ही कारण, करते खुशियों की सवारी
नमन तुम्हे कोटि-कोटि है, ए-मानवता के रक्षक
छीन रहे हैं धीरे-धीरे, आरक्षण मानव भक्षक
“सागर” कैसे ये बहुजन, तुमको दे भुलाए
सुन रही थी कोई शक्ति ………..।।
==========
……….मूल रचनाकार
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
……..दैनिक प्रभारी
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9149087291
[7/3, 5:39 PM] Naresh Sagar: विषय ….भ्रूण हत्या रोके हम सब
मंच…. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
विधा….. कविता
दिनांक …..03/07/20 21
=========
मत मारो मां कोख में मुझ को
=========
बेटी होकर खुद बेटी का, जीवन छीन रही हो मां
मर्दों पर इल्जाम लगे क्यूं, तुम ही हीन रही हो मां

ऐसा क्या गुनाह मेरा जो, गर्भ में ही मारो मुझको
क्या होता जो नाना-नानी, गर्भ में मार देते तुझको

तुम लाडो, गुड़िया रानी से, बहु रानी तक बन बैठी
फिर मेरे ही आने से ,तुम क्यों हो रुठी- रुठी

तुमने क्यूं सोचा नहीं, एक बार भाई की राखी का
क्यूं संहार करने पै अड़ी हो, अपने घर की पाखी का

अब तो तुम गुलाम नहीं हो ,किसी मर्द के बंधन में
क्या मेरा अधिकार नहीं कुछ, मां तेरे इस आंगन में

मैं आकर मां तेरे घर को, तुलसी आंगन सा महकाऊंगी
तेरे घर के आंगन में मां ,मैं भी गीत खुशी के गाऊंगी

मेरे हक में तुम नहीं तो, और लड़ाई लड़ेगा कौन ?
मेरे खातिर आखिर मां, तुम बैठी हो क्यूं इतना मौन ?

मैं भी तेरे घर में मां, डोली में बैठना चाहूं हूं
मैं भी पापा के सीने लग, थोड़ा सा रोना चाहूं हूं

मत मारो मां कोख में मुझको, मैं तेरा ही रूप हूं
तेरे घर की छाया हूं मैं, तेरे घर की धूप हूं।।
======
मूल रचनाकार …….
जनकवि बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
दैनिक प्रभारी
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9149 08 7291
[7/4, 7:04 AM] Naresh Sagar: …….. डाक्टर
जात- पात से, जो बहुत ही दूर है!
मानवता की रक्षा में, मशहूर है!!

कब देखी है नींद , इसने रात की!
दिन भर लड़ता रहा, जंग जज़्बात की!!

महामारी में कब, सैनिक से कम रहा !
मौत के सामने ,खड़ा लड़ता रहा!!

मानवता का, सबसे प्यारा रूप है!
तुम हो तो जीवन में, छांव- धूप है!!

आलस्य तुमसे भागता, कोसों दूर!
जब रोगी आ जाए पास, होकर मजबूर!!

तुम धरती के ईश्वर, कहलाते हो!
जब तुम मरते ,रोगी को बचाते हो!!

बैध, हकीम, डाक्टर, जहां नहीं मिलते!
खुशीयों वाले फूल, नहीं वहां खिलते!!

गांव- गांव और शहर, यदि विद्यालय हो!
इनके बराबर कम से कम, औषधालय हो!!

डॉक्टरों का मिलकर, सब सम्मान करो !
इनका नहीं कभी भी तुम, अपमान करो!!

यह देते जीवन तुमको, खुद से लड़कर!
इस धरा पर कोई नहीं, इनसे बढ़कर !!

“सागर” हमने, महामारी में देखा है!
मौत से लड़ कर, जीवन इसने सींचा है!!
=======
मूल रचनाकार
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291
[7/4, 4:23 PM] Naresh Sagar: …….. कहानी
लाकडाउन की शादी
==========
अचानक कोरोनावायरस की दस्तक ने यूं तो सारे विश्व को ही हिलाकर रख दिया था ,हर तरफ़ तबाही ही तबाही के मंजर दिखाई दे रहें थे। ऐसे कुछ ही लोग होंगे जो इस महामारी में भी अपनी बिंदास जिंदगी जी रहे थे ।इसी कोरोनावायरस ने कितने दिलों को तरह-तरह से तोड़ दिया था कुछ लोग जिंदगी से हारकर बिछुड गये थे तो असुविधाओं के चलते दम तोड़ ग्रे थे तो कुछ का इश्क शुरू होने से पहले ही समाप्त हो गया था।
विकास और रैना का प्यार कोरोना के आने से कुछ दिन पहले ही शुरू हुआ था दोनों और जज्बातों के तूफान हलचल मचा रहें थे ऐसे में घरों से बाहर निकलने पर घोर पाबंदी थी लोकडाउन जो लग गया था । घर में सभी एक साथ होने पर ख़ुश कम दुःखी ज्यादा दिखाई दे रहे थे क्योंकि घर उन्हें कैद खाना जो लग रहा था । विकास और रैना का भी यही हाल था फोन पर भी बहुत कम बातें हो पातीं थी क्योंकि परिवार जो साथ था एक दिन दोनों की चाहत अपने उफान पर आ गई और दोनों रात को घर से निकल अभी एक दूसरे को देख ही रहे थे कि पुलिस वालों ने धर दबोचा, लाख खुशामदों के बाद भी नहीं छोड़ा और दोनों के परिवार वालों को थाने बुलाकर जुर्माना ले छोड़ दिया।
रैना के परिवार वाले अपने गांव चले गए और उसकी शादी वहीं कर दी। विकास जैसे देवदास ही तो हो गया था। लाख समझाने के बाद भी विकास के पास रैना की थोड़ी सी यादों के सिवा कुछ भी तो नहीं था।
लाकडाऊन में जहां सब कुछ बंद था वहां जैसे शादीयों का सीज़न आ निकला था, इस माहौल में उन महापुरुषों की भी शादी हो गई थी जो बुढ़ापे में प्रवेश करने ही वाले थे, कुछ गरीब बेटियों की भी शादी हो गई थी क्योंकि सभी शादियां गिने चुने लोगों की उपस्थिति में ही हो रही थी रिश्तेदार लाकडाऊन के कारण नहीं आ रहें थे और मिलने वाले कोरोना के डर से दूर से ही बधाईयों की पतंगें उडा रहे थे।
बिचौलियों की जैसे चांदी कट रहीं थीं उनकी गिद्ध वाली नजरें इधर- उधर ग्राहक ढूंढ रही थी तभी एक गिद्ध की नजर विकास पर भी पड़ी और उसने कई खूबसूरत लड़कियों की तस्वीरें घर वालों को दिखानी शुरू कर दी , समझा बुझाकर विकास को शादी के लिए राज़ी कर लिया। शिखा भी बहुत खूबसूरत और पढ़ी लिखी लड़की थी दोनों की शादी हो गई और दोनों की जोड़ी भी एक दम शानदार लग रही थी। विकास के चेहरे पर खुशी तैरती साफ देखी जा सकती थी जिसे देखकर पुरा परिवार ही अंदर ही अंदर खुश हो रहा था।
आज विकास को उस रात की भी बहुत याद आ रही थी जब वो रैना से मिलने गया था आज भी वो शिखा से मिलने के ढ़ेर सारे सपने देख रहा था , जैसे ही उसे शिखा के पास जाने का मौका मिला और वो शिखा के घूघटें को उठाने के लिए आगे बढ़ा तो शिखा पीछे की ओर हटते हुए कहने लगी……” पहले सेनिटाइजर करके आगे।” ….. टूटे से अरमान लेकर विकास स्नान ही कर आया और शिखा के नज़दीक आ कर नज़ाकत से कहने लगा……”लीजिए सरकार हम पूरे बदन को ही सेनिटाइजर कर आए।”
“अब तो हमारी बांहों में आकर अपनी इस सुहागरात को हसीन पलों से महकादो।” और शिखा को बांहों में भर लिया। शिखा ने विकास को धक्का देते हुए कहा….”जरा से भी मैनर्स नहीं है, रोज टी.वी., अखबार और सोशल मीडिया पर आ रहा है अपने हाथों से भी अपने बदन को बचाओ और आप है कि छाती पर चढ़े जा रहें हैं।”
……. हिम्मत जुटा कर विकास कहने लगा ……”जानू ये हमारी पहली सुहागरात है क्या आप चाहती हो ये कोरोना की भेंट चढ़ जाएं?”
…..”तो क्या तुम्हारी सुहागरात के लिए मैं कोरोना की भेंट चढ़ जाऊं?”शिखा के तेवर देख विकास अपनी किस्मत पर जैसे अंदर ही अंदर रोने लगा । आज उसे रैना की बहुत याद आ रही थी। विकास की सुहागरात ही कोरोना की भेंट नहीं चढ़ी थी बल्कि उसका प्यार ,उसकी खुशी और उसके अरमान भी इस जालिम कोरोनावायरस की भेंट चढ़ गए थे।
========
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत कहानी ..”लाकडाऊन की शादी” लेखक की मूल व अप्रकाशित कहानी है।
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
===============
ग्राम.. मुरादपुर,सागर कॉलोनी, गढ़ रोड,नई मंडी, हापुड़, उत्तर प्रदेश
9149087291
दिनांक…02/07/2021
[7/5, 12:15 PM] Naresh Sagar: ……….गीत
बोल तिरंगा अब तो बोल
===============
बोल तिरंगा अब तो बोल
अपने होठों को तो खोल
तेरे खातिर छोड़कर सब कुछ
मैं तो गया बस तुझमें डोल
बोल तिरंगा अब तो बोल……

कैसा लगता है बोलो तो
तुझको मेरी मर्दानी
तुझ पर निछावर मैंने कर दी
अपनी सारी जवानी
एक बार तो अपने मन से
मेरे भी मन को तो तोल
बोल तिरंगा अब तो बोल ……

सजी दुल्हनिया छोड़ के आया
मां को रोता छोड़ के आया
बहन की राखी रोती रह गई
भाई से भी मुंह मोड़ के आया
बापू का आते वक्त तो
बंद हो गया जैसे बोल
बोल तिरंगा अब तो बोल…..

तुझ पर निछावर मेरी दुनिया
देखी नहीं नन्ही सी गुड़िया
तेरे खातिर लड़ जाऊंगा
हंसते-हंसते मर जाऊंगा
अंत समय भी मेरे मुंह से
निकलेंगे बस तेरे बोल
बोल तिरंगा अब तो बोल…..

मुझमें सिमट जा मुझसे लिपट जा
मेरे बदन की चादर बन जा
कितने शहीद हुए तेरे खातिर
मैं भी खड़ा उस भीड़ में आखिर
हंसते-हंसते जां दे दूंगा
चाहे मेरी चाहत तोल
बोल तिरंगा अब तो बोल……

मैंने सरहद की मिट्टी को
चुमा है मां के चरणों सा
मेरे बदन में देश का जज्बा
कौंधे सूरज की किरणों सा
मर जाऊं तो सुन-ए- तिरंगा
पड़ने मत देना तू झोल
बोल तिरंगा अब तो बोल…….

जाति- धर्म कुर्बान है तुझ पर
तेरे बड़े एहसान है मुझ पर
दुश्मन तेरे आगे कांपे
मुंह की खाए जब भी झांके
“सागर” तेरा हुआ दीवाना
तेरी नज़र में क्या है मोल
बोल तिरंगा अब तो बोल।
बोल तिरंगा अब तो बोल।।
========
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत गीत, गीतकार की मूल व अप्रकाशित रचना है।
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
ग्राम… मुरादपुर, सागर कॉलोनी, गढ़ रोड, नई मंडी, हापुड़, उत्तर प्रदेश
9149087291
[7/5, 10:49 PM] Mere Number: तेरी उम्मीद ने तोड़ दी है उम्मीदें।
अब तो अपने पर भी एतबार नहीं रहा।।
[7/5, 10:52 PM] Mere Number: उसके के पास प्यार का सहारा नहीं मिला।
कांधों पै उसकी याद को ढोना है उम्र भर।।
[7/5, 10:56 PM] Mere Number: तेरे इश्क में एक दीवान लिखना चाहता हूं।
उसके लिए तेरे प्यार का साथ जरूरी है।।
[7/5, 11:13 PM] Mere Number: फिर टूटा है दिल, जश्न हो जाएं।
उसकी खुशी के खातिर हम ही तो लेंगे।।,
[7/5, 11:20 PM] Naresh Sagar: टूट रहा है घर बराबर, वो मज़े लेते रहे
लड़ने वाले लड़ते रहे,वो दलाली करते रहे
जब भी सच बोल किसी ने चाहा जगाना।
हजार लांछन उसे ये लगाते रहे
[7/5, 11:22 PM] Mere Number: उफ़ तेरी जुल्फें ये होंठ और चेहरा तेरा।
देखकर तुझको भला कौन ना दीवाना हो।
[7/5, 11:33 PM] Naresh Sagar: बीवी के प्यार ने हमें, पारस बना दिया।
दुनिया से लडने का,सरीखा सीखा दिया।।
हमको नहीं ख़बर थी, दुनिया की फितरत।
रिश्तों से उसने खुब,बाकिफ करा दिया।।
जीने को जी रहे थे, सांसों के साथ में।
गिरकर संभलने का हुनर भी सीखा दिया।।
छोड़ा था जिस वक्त, अपनों ने हाथ को।
थामकर उसने दामन, चलना सीखा दिया।।
कोशिश तो बहुत की, तोड़ने की मुझको।
मुश्किलों में उसने मुझे,जुड़ना सीखा दिया।।
सागर यदि बीवी नहीं होती हमारे पास।
कैसे बताते तुम उसने क्या क्या सीखा दिया।।
5/7/21
[7/6, 12:06 AM] Naresh Sagar: घर के बड़ों ने कर दिये घर के टुकड़े।
इल्ज़ाम छोटों पर मंडरा दिये सारे।।
[7/6, 6:30 AM] Naresh Sagar: घर के बड़ों ने कर दिये घर के टुकड़े।
इल्ज़ाम छोटों पर मंड दिये सारे।।
[7/6, 6:32 AM] Naresh Sagar: इश्क़ है , गुरूर है, मजबूरी है।
एक तरफ कोरोना,एक तरफ दूरी है।।
[7/6, 6:44 AM] Naresh Sagar: जमीं पर आसमां पर,ये पैगाम लिख दूंगा।।
ज़र्रे ज़र्रे पर मैं, हिंदूस्थान लिख दूंगा।।
[7/6, 6:46 AM] Naresh Sagar: लिख दूंगा मैं शहीदों की जवानी को।
मैं अपने खून से सागर, इंकलाब लिख दूंगा।।
[7/6, 1:25 PM] Naresh Sagar: सर जिनके नहीं है, मां बाप के साये।
लगता है लगी हो किसी ,जालिम की आहें।।

दुतकार हर तरफ है, तिरस्कार है मिलता।
चेहरे पै खुशी का कभी, गुलशन नहीं खिलता।।

मिलने को हर चीज, मिलती है उन्हें भी।
मां बाप की दुआ का, समुद्र नहीं मिलता।।

ना साथ खिलाए कोई ,ना पास खिलोना।
उम्र भर ही लगा रहता है,रोना बस रोना।।

जीते हैं जानवर की तरह,खाकर के वो ताने।
लगता है मिल रहें हैं,सांसों के हर्जाने।।

खुशीयों का दूर तक, उन्हें घर नहीं मिलता।
धरती का ना अम्बर का ,सहारा नहीं मिलता।।

मेरे खुदा मां बाप ना , तू छीन किसी से।
जीने को सांस दे तो , फिर दे तू खुशी से।।

की बार खुदगर्जी ने भी, पैदा किया इन्हें।
जिसकी सज़ा बेवजहा , मिलती है बस इन्हें।।

“सागर” यही अरदास, मिले सबको मां- बाप।
मां बाप बिना जीवन, लगता है अभिशाप।।
===========
………मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
……….दैनिक प्रभारी
9149087291
[7/6, 5:30 PM] Naresh Sagar: मंच.. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
विषय….14 वें दलाई लामा तेनजिन …
विधा….. गीतिका
दिनांक….06/07/2021
========
आज है अप्रैल छः, इस दिन ही तो तुम आए थे ।
खुशबुओं से इस जमीन पर, फूल भी मुस्काए थे।।

14 वें दलाई लामा के, रूप में देख तुम्हें ।
चीन के बिन बात ही, होश कहां टिक पाए थे।।

माना मजबूरी में अपनी, सरजमी ना रह सके।
रात भर चलते रहे तुम, बुद्ध भूमि आए थे।।

आपके आने से चीन, और चीढकर ऐंठता।
पर तथागत की जमीन से, ना तुम कभी लौटाए थे।।

शांति और शील के तुम, हो बड़े संदेश जी।
तब ही तो नोबेल जैसा ,पुरस्कार तुम ले आए थे।।

86 वें जन्मदिन पर, बधाई, लाखों है तुम्हें ।
नमो: बुद्धाय, नमो बुद्धाय ,सभी अब गाए हैं।।

ज्ञान के “सागर” तुम ठहरे, शांति के दूत तुम ।
आए थे जिस दिन जमीं पर, बुद्ध भी मुस्काए थे
========
मूल रचनाकार
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
दैनिक प्रभारी
9149087291
[7/6, 6:24 PM] Naresh Sagar: बहुजनओ के राम- जगजीवन राम
==============
तुम बहुतजनों के राम थे
तुम ही सुबह और शाम थे
तुम थे तो हम भी चमक उठे
बेचारे थे बे – काम थे
संघर्ष के तुम थे पद चिन्ह
तुम ही तो अभिराम थे
सदियों की गुलामी पीछे छोड़
सत्ता में तुम निष्काम थे
तुम स्वाभिमान तुम अभिमान
तुम बहुतजनों के राम थे
जगजीवन तुमने जग जीता
सत्ता का स्वाभिमान थे
“सागर” करता है नमन तुम्हे
तुम बहुजनों के राम थे ।।
========
…….मूल रचनाकार
जनकवि / बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
( इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
प्रदेश अध्यक्ष- कलमकार संघ (मिशन सुरक्षा परिषद)
9149087291
[7/6, 6:29 PM] Naresh Sagar: बहुजनओ के राम- जगजीवन राम
==============
तुम बहुतजनों के राम थे
तुम ही सुबह और शाम थे

तुम थे तो हम भी चमक उठे
बेचारे थे बे – काम थे

संघर्ष के तुम थे पद चिन्ह
तुम ही तो अभिराम थे

सदियों की गुलामी पीछे छोड़
सत्ता में तुम निष्काम थे

तुम स्वाभिमान तुम अभिमान
तुम बहुतजनों के राम थे

जगजीवन तुमने जग जीता
सत्ता का स्वाभिमान थे

“सागर” करता है नमन तुम्हे
तुम बहुजनों के राम थे ।।
========
…….मूल रचनाकार
जनकवि / बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
( इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
प्रदेश अध्यक्ष- कलमकार संघ (मिशन सुरक्षा परिषद)
9149087291
[7/6, 7:50 PM] Naresh Sagar: उसकी जुल्फों में उलझ जाता हूं।
काम सारे मैं भूल जाता हूं।।
[7/7, 7:27 AM] Mere Number: जीवन एक रंगमंच है …. जिसमें आदमी को क़दम- क़दम पर अभिनय करना पड़ता है। कभी अपने लिए तो कभी परिवार के लिए।
[7/7, 11:42 PM] Naresh Sagar: इश्क़ के बदले इश्क नहीं मिलता।
किसी मस्जिद में खुदा नहीं मिलता।।
कोरोना ने समझा दिया सबको सागर।
पत्थरों में कोई ईश्वर नहीं मिलता।।
[7/8, 8:59 AM] Naresh Sagar: मुझे गिराने में गिर गया वो।
बनता था जो बादशाह कलम का।।
[7/9, 4:33 PM] Naresh Sagar: संक्षिप्त जीवन परिचय
================
नाम– डॉ.नरेश कुमार “सागर”
चर्चित नाम…. बेख़ौफ़ शायर
पिता -श्री शादी राम जी
माता -श्रीमति रामेश्वरी देवी जी
पत्नी– श्रीमति पूनम सागर “कविता”
शिक्षा– स्नातक ,फिजियोथैरेपिस्ट, प्राकृतिक चिकित्सक
व्यवसाय– ऑपटिशियन
जन्मतिथि– 5 जून 1975
जन्म स्थान -ग्राम ,भटौना,जिला- बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

गतिविधियां –संवाददाता- फारवर्ड प्रेस ,अतिथि संपादक- 21वीं सदी के रचनाकार, पूर्व संपादक -गौरव विचार पत्रिका, सह संपादक- आराध्या प्रकाशन, पूर्व प्रदेश सचिव -पत्रकार वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश, मुख्य सलाहकार -पंचशील भारत , प्रदेश कोषाध्यक्ष- निस्वार्थ सेवा समिति ,पूर्व मंडल प्रभारी -आगमन साहित्य संस्था मेरठ , मीडिया प्रभारी- हिंदी साहित्य भारती ,पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य, क्षेत्रीय व राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में मंचासीन व मंच संचालन अभिनय आदि।

उपलब्धियां …. इंटरनेशनल वेस्टीज साहित्य सम्मान, जयपुर, अंतरराष्ट्रीय मैत्री पुरस्कार, जयपुर, ग्लोबल अचीवर्स अवॉर्ड,ग्वालियर, मातृभाषा गौरव सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, मानव मित्र सम्मान, अमिताभ खंडेलवाल पुरस्कार, संत गंगा दास पुरस्कार, श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार ,बेस्ट राइटर पुरस्कार, बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार, मधुशाला गौरव पुरस्कार ,श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार, कलम का योद्धा पुरस्कार, कवि त्रिलोचन शास्त्री पुरस्कार, हिंदी रक्षक सम्मान, जगमगाते काव्य के सितारे सम्मान, काव्य सौंदर्य सम्मान , भगतसिंह पुरस्कार , संत कबीर साहित्य गौरव सम्मान, मानव प्रेमी साहित्यकार सम्मान, अहिंसक साहित्यकार सम्मान, छत्रपति शाहूजी सम्मान, दुर्गा भाभी सम्मान, सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, विज्ञान प्रेमी सम्मान व अंतरराष्ट्रीय सृजनकार सम्मान आदि।

प्रकाशन – चेतना (यू.एस.ए.), सरस सलिल ,कुसुम परख, फॉरवर्ड प्रेस , सार्प रिपोर्टर ,बुद्धिस्ट मिशन ,द एडवेंचर्स भारत ,अभिनव, अमर उजाला, दैनिक जागरण, गौरव विचार, आपका कदम, वीर रिपोर्टर, ग्लोबल न्यूज़ ,संपर्क क्रांति, सुदर्शन पत्रिका, सत्य चक्र, जनमानस, मास ,बी ए एन ए न्यूज़, आनंदी मेल , आधुनिक साहित्य (यू.के.) व बेजोड़ पत्रिका आदि।

काव्य संकलन -इस मौसम से उस मौसम तक ,गुफ्तगू ,शब्द प्रवाह, काव्यशाला, युवा रचनाकार संगम, 21वीं सदी के श्रेष्ठ रचनाकार , कलम चालीसा, निलंबरा ,संदल सुगंध ,समरस के रंग ,कलमकार ,पुष्पगंधा, काव्य माला ,तेवर , निकलेगा दिनमान, कस्तुरी कंचन, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कहानियां, गीत ,ग़ज़ल ,निबंध,लेख आदि।

ई बुक– मन की बात, स्त्री, पर्यावरण, प्रवासी , कोरोना का कहर , मजबूरी आदि!

अभिरुचि– साहित्य लेखन, स्वतंत्र पत्रकारिता, अभिनय ,मंच संचालन ,समाज सेवा व राजनीतिक गतिविधियां आदि।

इंटरनेट साहित्यक यात्रा– साहित्य पीडिया, अमर उजाला काव्य, निष्पक्ष, हिंदी भाषा शब्दकोश, प्रतिलिपि ,रचनाकार , यूट्यूब, मधुशाला साहित्य दर्शन, हौसलों की उड़ान, टू मीडिया, योर कोर्ट, नजोटा आदि।

विशेष संपादन….. अंतर्मन की आहट … पटना- बिहार

स्थाई पता– ग्राम. मुरादपुर, सागर कॉलोनी ,गढ़ रोड ,नई मंडी, हापुड़, उत्तर प्रदेश,
पिन- 24 5101
फोन-9897907490….9149087291
Email.. nsnareshsagar1@gmail.com

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