बिखराव
बिखराव
नफरतों ने
बढ़ा दी दूरियां
इंसान-इंसान के बीच
बांट दिया इंसान
कितने टुकड़ों में
स्त्री-पुरुष
अगड़ा-पिझड़ा
अमीर-गरीब
नौकर-मालिक
छूत-अछूत
श्वेत-अश्वेत
स्वर्ण-अवर्ण
धर्म-मजहब में
खंड-खंड हो गया इंसान
नित बढ़ता ही
जा रहा है बिखराव
-विनोद सिल्ला©