बिखरते रिश्ते
रिश्तो की घटती माप
==============
भारतीय सभ्यता और परंपरा में रिश्तो की एक खास अहमियत होती है जब भी किसी लड़की या लड़के की शादी की बात होती है तो सभी को यही बताया जाता है कि उसका रिश्ता आया है, उसका रिश्ता पक्का हो गया है l रिश्तो की पहचान हमे जन्म से हो जाती है पैदा होते ही माँ पिता दादी बाबा, नानी नाना, मौसी मौसा, मामा मामी, चाचा चाची, ताया ताई इत्यादि l रिश्तो के रूप में सबसे पहला परिचय माँ से होता है और माँ ही हमे पहचान कराती है कि सामने वाले से मेरा क्या रिश्ता है l कुछ बड़ा हुआ तो दोस्ती का रिश्ता हो जाता है दोस्तो के साथ. बाल्यावस्था गुजरी किशोरावस्था आयी उसके बाद परिपक्व हुआ बलखाती हुई जवानी आयी शादी व्याह के लिए रिश्ते आने सुरू हुए l रिश्ते की बात सुनकर ही मन झंकृत होने लगता, ये रिश्तो की गरिमा नही तो और क्या… लडकी में शर्मो हया अनायास ही प्रविष्ट हो जाते.. लड़को मे परिपक्वता सामने झलकने लगती, लड़का लड़की रिश्तो में बंधे तो एकाएक नये रिश्तो का जन्म होता है जिसमे सबसे खूबसूरत, पवित्र, विश्वास की नीव पर रखा हुआ, प्रीति से सराबोर होता हुआ पति पत्नी का नाजुक सा रिश्ता l मैंने यह रिश्ता नाजुक इसलिए कहा क्योकि पति पत्नी का रिश्ता प्रेम विश्वास की जमी पर केंद्रित होता है जहा ये जमी जरा सी भी हिली ड़ुली तो रिश्ते का धराशायी होना स्वाभाविक हैl आज की तारीख में हो रही तलाक का प्रमुख कारण तो यही है कि आपसी रिश्तो में प्रेम विश्वास की कमी का होना, अगर तलाक न भी हो तो भी बिना प्रेम विश्वास के दाम्पत्य जीवन नारकीय हो जाता है आपसी कलह लड़ाई झगड़े का बुरा प्रभाव उनकी संतानो पर पढ़ता है जिससे वो चिड़चिड़े आलसी हो कर अंधकार की ओर अनायास ही चले जाते हैं l ये बात तो रही पति पत्नी के रिश्तों की अगर बात करूँ पारिवारिक रिश्तों की तो वहा भी आपसी खिंचाव टकराव देखने को मिल रहा है कही सास बहू की उठापटक ननद भौजाई की उठापटक यहां तक कि भाई भाई की उठापटक अब आम बात हो गई है l
आज के बदलते हालात, रिश्तो के बदलते मायने, रिश्तो में होते आपसी टकराव, आपसी कलह से विखरते घर सभ्य समाज के लक्षण तो नहीं हो सकते, इस पर सभी का ध्यान केंद्रित होना ही चाहिए अन्यथा पश्चिमीकरण में हम इस कदर जकड़ जायेगे कि हमारा भारतीय सभ्यता की ओर लौटना मुमकिन नहीं होगा l
रिश्तो की घटती माप को देखकर तो यही लगता है कि भारतीय सभ्यता पर पश्चिमी सभ्यता हावी हो रही है, ईश्वर की तरह पूजनीय माँ बाप, मॉम डेड हो गए बच्चे मिशनरियों में पढ़ाए गए नौकरी के लिए विदेश भेजे गए और मॉम डेड बने माँ बाप किसी वृद्धाश्रम की शोभा बन जाते हैं, भाई, ब्रो हो गया, बहन, सिस हो गई पति मिस्टर ओर पत्नी मैडम डार्लिंग हो गई, अब इन अंग्रेजी रिश्तो का मतलब निकाला जाए तो यह अर्थ का अनर्थ कर देते हैं इसमें भारतीय संस्कार और रिश्तो की मर्यादा बची ही कहा l ध्यान देने वाली बात यह है कि संयुक्त परिवारों का टूटना, एकल परिवार में बढ़ोत्तरी रिश्तो को कमजोर करने में सबसे ज्यादा सहायक हुआ है l संयुक्त परिवार टूट कर एकल परिवारों में विखर गए, आखिर क्यों? यह सवाल उठना भी लाजमी है अगर इसका हल निकाला जाये तो यही निष्कर्ष सामने आता है कि भारतीय सभ्यता में संस्कारों की कमी आयी है जैसे मानो हमारी सभ्यता को किसी की नजर सी लग गयी, अखबार, टेलीविजन में चल रही सुर्खियां जैसे रिश्ते हुए कलंकित, शर्मशार हुए रिश्ते, सच में घिन आती है यह सब देखकर l हम लोग आखिर समझ क्यों नहीं पाते कि गलती कहा हुई बच्चों को संस्कार देने में कमी हुई, शिक्षा का प्रारूप बदला यह कमी हुई या फिर पश्चिमीकरण का आवरण हम लोगो पर इस कदर चढ़ा जो उतरने का नाम नही ले रहा है l
आज का भारतीय परिवेश तरक्की तकनीकी विकास के ढांचे में जितना सुदृढ़ हुआ हे उससे अधिक सभ्यता और संस्कृति के रूप में कमजोर हुआ है जो कभी भारत की पहचान रही वही संस्कृति और सभ्यता आज हमे फूहड़ और अंधविश्वास लगने लगी और पश्चिमी सभ्यता हमे भाने लगी. इससे रिश्तो में गिरावट हुई परिवार विखर गए घर ढह गये l
हमे भारतीय परम्पराओं का सभ्यताओं का, ऋषि मुनियों की वाणी का गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है जिससे मजबूत रिश्ते बन सके संयुक्त परिवार फिर से अपनी पहचान बना सके सभी रिश्ते एक दूजे के साथ मजबूती के साथ खड़े हो सके ओर एक नये सभ्यतामय समाज का सपना सार्थक हो सकेl हमे याद रखना होगा कि हमारे रिश्ते जब मर्यादित होगे मजबूत होगे तभी एक सभ्य समाज का निर्माण होगा l