बिक रहा सब कुछ
जमीर बिक रहा है, इंसान बिक रहा है
दो पैसे में यहां हर ईमान बिक रहा है
ढूंढने की ज्यादा जरूरत नहीं है अब
मंदिर, मस्जिदों में, राम रहमान बिक रहा है
नफरत की आंधियों का तुफां सा है फैला
जहर दिलों में इंसा के , कितना घुल रहा है
शास्त्री का दोस्त रजा, अब्दुल का मोहन
नाम अब घरों पर अलग रंग से पुत रहा है
पानी गंगा जमुना का तो था सफेद नीला
पानी संगम प्रयाग में, पर लाल मिल रहा है
डा. राजीव “सागर”