बिकाऊ हो गया हर सामान
बिकाऊ हो गया हर सामान
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बिकाऊ हो गया हर सामान
दिखाई दे चौतरफा नुकसान
महंगे हुए हैं संस्कृति संस्कार
बिकने लग गये हैं अब इंसान
नाकाम हो गई बनाई नीतियाँ
निष्काम हो गए सब प्रावधान
नहीं रहे पुराने घर के आंगन
खाली पड़े रिहायशी मकान
महंगाई की मार में मरे रिश्ते
किश्तों भरी नातों की दास्तान
व्यर्थ हो गई अर्चना उपासना
पूजा सामग्री से भरी दुकान
मनसीरत मन मार के है बैठा
चेहरों पर नहीं रही है मुस्कान
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)