बिंदो दादी
एक से दूसरे
दूसरे से तीसरे
तीसरे से चौथे
आँगन होते हुए
गाँव के एक छोर से
दूसरे छोर तक घूम आती थी वो।
किसका चूल्हा जला, किसका नहीं
किसके घर आज क्या पका
किसके यहाँ कोई कुटुंब आया
किसने नई साड़ी ली
किसने नए बर्तन खरीदे
किसने किससे झगड़ा किया
किया तो क्यों किया
किसकी बहू-बेटी की विदाई है
किसकी शादी पक्की हुई
कितना दहेज दिया या लिया
किसकी बहू पेट से है
किसके घर किलकारी गूंजी
कब किसकी छठी/बरही होगी
किसके घर मुंडन है
कौन बीमार है
कौन भूखा है?
गाँव भर की तमाम खबरें
ही नहीं रखती थीं सिर्फ़
अपनी बिंदो दादी
अरे! अपनी क्या
पूरे गाँव की दादी थी वो
जिसको जिस बखत जो जरुरत हो
रुपया-पैसा, अनाज-पानी लेकर
खड़ी रहती थी
बखत-बेबखत अपना समय लगा कर
देह से भी खट देती थी।
कभी कोई खास
पूजा-पाठ करते नहीं देखी
हाँ ! सोमार- शुक्कर को पूजाघर में
बड़ी श्रद्धा से कुलदेवी को
तुलसी पत्ता जरुर चढ़ाती
सरहर का धूप लगाती
और इसी में मगन भी रहती
सीधी-सादी, सच्ची और सबकी दादी
बिंदो दादी।
©️ रानी सिंह