बिंदास इंसान
**** बिंदास इंसान ***
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निज विचारों में था मग्न
अंतर्मन से थी लगी लग्न
खुद में था खोया खोया
उधेड़बुन में कहीं खोया
तभी था एक फोन आया
खोये हुए को था जगाया
जैसे ही मैंने था उठाया
सामने अप्सरा को पाया
सहज,सरस थी स्वभावी
मधुर आवाज दी सुनायी
कानों में वो मिसरी घोले
कुछ भी वो मुख से बोले
बिंदास,बेहिचक वो बोली
मैं हूँ तुम्हारी फ़ैन सुरीली
बातचीत का ढंग अनोखा
हंसी, ठहाकों का झरोखा
कुछ देर पहले थी अंजान
लगे जैसे वर्षों की पहचान
खूब हंसी,मुझे भी हंसाया
बातों से था दिल बहलाया
बोलती मेरी कर दी थी बंद
कथनी कहनी बहुत बुलंद
सूरत सीरत थी बड़ी प्यारी
बाते करती जग से न्यारी
नैन कटोरे से थे मृगनयनी
होठ गुलाबी ,रंग सुनहरी
उन्मुक्त नभ का जैसे पंछी
उड़ता भर उड़ाने अच्छी
दिलोदिमाग में थी वो छाई
जैसे मेनका धरा पर आई
वातों से कर दिया मंत्रमुग्ध
खो दी मेरी सारी सुध बुध
पायल सी खनकती हंसी
दिल दरिया के अंदर फंसी
खुशियों का भरा फव्वारा
मेरा बेहतरीन पल संवारा
सोचूं मैं उसे क्या कह बोलूं
उसके भावों को कैसे तोलूं
निश्छल सी बहे निर्झरणी
मनमोहक जैसे मन ठगनी
कपट कोई नजर न आया
दोस्तों सा दिखा हमसाया
उम्दा थी उसकी मस्त बातें
याद आएंगे दिन और रातें
बेशक हो छोटी मुलाकात
खुशियों भर्री दे दी सौगात
स्वर्णिम लम्हों की बारात
आँसुओं की आई बरसात
जीता जागता है परवान
नहीं कोई वह आम इंसान
मनसीरत मन है में विचारे
खुदा ने जैसे भाग्य संवारे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)