बाढ़ और इंसान।
घन -घोर घटा जब छा गए,
रिमझिम-रिमझिम बारिश आ गई,
बरसात का टूटा शैलाब,
बादल फाटा ये हुआ आपदा,
बढ़ गयी नदियों में जल की तादाद,
बिस्तार हुआ और आ गई बाढ़,
जल प्लावन् में डूबे खेत-खलिहान,
बस्ती गाँव शहर और प्राण,
एक ही कश्ती में सवार है जीव -जंतु और इंसान,
बाढ़ में बह गये कितने ही जान,
घर से बेघर हो गये गरीब इंसान,
भूखे बच्चे नंगे बिलख रहे है आज,
धारण किये है भयावह रूप ,
प्रकृति ने चेताया जग है नाशवान्,
अपनी प्रवृत्ति न भूल इंसान,
सकल जगत में प्रकृति का अधिकार,
बनाती हूँ संतुलन बाढ़ रूप से भी,
शांति भंग हुई है तेरा ऐसा व्यवहार,
साध अपने मन को,
सहयोग से उठ खड़ा हो ,
फिर से बीज बो जीवन के।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।