बाज़ार लगता है
मैं कुछ अच्छा कहूं तो भी तुझे बेकार लगता है।
ये एक दो बार नहीं रे तुझको तो हर बार लगता है।।
मैं दिल से तो नहीं कहता फ़क़त मेरा तजुर्बा है।
वही देता दिल को ज़ख्म जो सच्चा यार लगता है।।
ये तुम कहते हो मुझको याद भी करते नहीं क्योंकर।
तेरी यादों का मेरे दिल में तो बाजार लगता है।।
भिगोया , हो गया, धोया कि इंटरनेट के युग में।
मेरे बेटे को लेकिन ये ही सच्चा प्यार लगता है।।
ये मिसरे, शे’र, तन्हाई, ग़ज़ल औ गीत या कविता।
मुझे तो अब यही मेरा “विजय” घरबार लगता है।।
विजय बेशर्म 9424750038