बाहर क्यू न आते हो
मै बिखरा हूँ याद में तेरी क्यू इतना तड़पाते हो
एकबार मुझे देखने खातिर बाहर क्यू न आते हो
पल पल याद में जीता हु पल पल आहें भरता हूँ
कभी दिलों से कभी जुवां से तेरी बाते करता हूँ
हम तो तुमपर मरते है हम अपना तुम्हे मानते है
मुझको अपना कहने में क्यू तुम इतना शर्माते हो
मुझे पता है कि तुम भी प्यार मुझी से करते हो
एकबार फिर जुवां से कहने में क्यू आखिर डरते हो
मुझे पता है की ये जमाना तुमपर आँखें रखता है
सच्चे प्यार के होते हुए तुम क्यू इनसे दर जाते हो
तुम आजाओ जो बगिया में गुल सारे खिल जायेंगे
बरसों से जो तड़प रहे है वो साथी मिल जायेंगे
”कृष्णा”कवि है हर मंचो से नाम तेरा ही गायेगा
नाम कभी न लेगा तेरा क्यूँ इतना घबराते हो