बाहर का मंज़र है कितना हसीन
बाहर का मंज़र है कितना हसीन
मुस्कुराते चेहरे खिलखिलाती हॅसी
रंगों में नहाई हसीना खुशबू में डूबा समा
अदभुत ये दुनिया सजीली, रंगीन
बाहर का मंज़र है कितना हसीन
अंदर की दुनिया जैसी गहरी खाई
आवाज़ और रोशनी दोनों को निगल जाए
कुछ टूटा हुआ सामान, एक खाली मकान
शोक की महफ़िल जिसका अंत न हो पाए
अंदर की दुनिया जैसी गहरी खाई
बाहर और अंदर का ये सफ़र
तय कर पाते हैं कितने राहगुज़ार
खींचता हर पल अनदेखा भंवर
कश्मकश में रहते है ताउम्र
बाहर और अंदर का ये सफ़र
चित्रा बिष्ट