बाल हनुमान कविता कथा
बाल हनुमान
1
त्रेता युग की बात है जब पृथ्वी पर छाया भार
भार मुक्त करने धरा,शिव शंभू लिए अवतार।
चैत्र शुदि पूनम को,कपिराज केसरी द्वार
मां अंजनी के गर्भ से,कपि रूप आए धार।
खत्म हुआ इंतजार,जगत में छाई खुशी अपार।
2
एक बार बाल हनुमान,पलने पे रहे थे झूल,
मां अंजनी पुत्र सुला,गयी उपवन लेने फूल।
सोते सोते भूख लगी, हुई सूर्य को फल समझने की भूल।
रोने लगे बाल हनुमान,समझ सूर्य को कंद फल मूल।
अपनी शक्ति के अनुकूल,चले सूर्य पकड़ने,तेज रफ्तार।
3
उगता सूरज बजरंगी के मन को ऐसा भा गया।
समझ कर लाल फल, उनके मुंह में पानी आ गया।
तीव्र गति से उड़ चले, बजरंग अंबर पर छा गये।
सूर्य ओर जाता देख पुत्र को वायुदेव घबरा गये।
ऐसा वेग देख शिशु का,दिल में खुशी छाई अपार।
4
सूर्य ओर जब दौड़े हनुमत, अपनी पूरी शक्ति लगाके।
ताप से उनके जले न पुत्र,वायुदेव साथ हुए घबरा के।
पुत्र अमोल की चिंता करके, पहुंचे आकाश में जाके।
सूर्य देव को शांत किया वायु ने,बर्फीली पवन चलाने।
हनुमान फिर लगा छलांग,रथ दिनकर के हुए सवार।
5
हुई संयोग की बात उस दिन,फिरी ईश्वर की ऐसी माया।
दिन अमावस था उस दिन,सूर्य को राहू,ग्रास बनाने आया।
जब बढ़ा सूर्य को खाने राहू, हनुमान उस पर गुर्राया।
एक हाथ से पकड़ा ही था, राहू बहुत छटपटाया।
मुश्किल से बचपाया राहू,जा पहुंचा इंद्र के द्वार।
6
जान बचाके पहुंचा राहू,अति होकर दुखी हताश।
मेरी भूख का करो निवारण,इंद्र मेरी सुनो अरदास।
सूर्य चंद्रमा मुझको दिए थे आपने, करने हेतु ग्रास।
क्यों शिशु रूप में,खाने सूरज, बैठा दूसरा पास।
तोड़ा क्यों विश्वास मेरा,आज छीन लिया आहार।
7
आंखों में आंसू देख राहू के, चिंतित हो गए शचिपति।
ऐरावत पर चले बैठकर,मारी गई थी उनकी मति।
कौन सी शक्ति होगी ऐसी,राहू संग जिसने करी अति।
ऐरावत को भी खाने दौड़े, हनुमान करके तेज गति।
इंद्र देव भी घबरा गये,बालक की देखकर शक्ति अपार।
8
ऐसा रूप देख बालक का,इंद्र ने तुरंत विचार किया।
अपनी रक्षा हेतु इंद्र ने,बालक हनु(ठोडी) वज्र प्रहार किया।
पर्वत ऊपर गिरे छटपटाके बाल हनु,मुर्छित हो लाचार हुए।
देखी पुत्र दशा जब ऐसी,बदले को पवन देव तैयार हुए।
वायु की फिर गति रोक दी,मचा जगत में हा हा कार।
9
सब पृथ्वी वासी मिल करी सविनय अरदास।
इंद्रदेव भयभीत हुए,था किया इंद्र दुस्सास।
देवलोक में सब प्राणहीन हुए थी रुकी सबकी सांस।
धर्म-कर्म सब बंद हुए,तब सभी गये ब्रह्मा के पास।
गिरी गुफा जहां हनुमत मुर्छित थे, करबद्ध ब्रह्मा ने की गुहार।
10
ब्रह्मा जी उठा लिये हाथों में,पवन पुत्र बाल हनुमान।
अपनी योग शक्ति के बल से, लगा के अपना ध्यान।
करी मूर्छा दूर बालक की, हनुमान का किया कल्याण।
पवन देव भी फिर बहने लगे, मिला सबको जीवनदान।
रुद्र रूप में हुई पहचान, हनुमत करने आए जग उद्दार।
11
ब्रह्मा जी ने खुश होकर पवन पुत्र को दिया वरदान।
ब्रह्म श्राप या अस्त्र-शस्त्र,न ले सकेगा तुम्हारे प्राण।
इंद्र देव ने भी वरदान दिया,मेरा वज्र भी न करे नुकसान।
हनुक्षति होने के कारण,तुम्हारा रहेगा नाम हनुमान।
देके वरदान किया सब प्रस्थान, कहा कभी न होगी हार।
12
सभी देवताओं ने देकर वर, अपनी दिखादी प्रीत।
मनुष्य- राक्षस या देवता,कोई सके न तुमसे जीत।
सज्जनों का मित्र रहेगा,पापी लोग रहेंगे भयभीत
हनुमान तुम्हें रटने वालों के तुम होगे मनमीत।
जैसे चाहो रूप धरोगे, अपनी इच्छा के अनुसार।
स्वरचित
नीलम शर्मा ✍️