बाल श्रम
हे मेरे समाज !
मुझे खेलने दो ।
पेंसिल और स्लेट दो
मुझे पढ़ने दो ।
अभी प्रारंभ है मेरे जीवन की
इसे संवरने दो !
इन नन्हें हाथों को काम नहीं
अभी तो खिलौने दो ।
जीवन में संघर्ष बहुत है
अभी तैयार होने दो
लड़ूंगा मैं भी मुश्किलों से
अभी शिक्षा का हथियार तो लेने दो ।
अभी तो नन्हा बालक हूं ,
मुझे काम नहीं
बस थोड़ी सी प्यार दे दो ।
शायद अब्दूल कलाम बन जाऊं कभी
अभी तो स्कूल जाने दो
✍️ समीर कुमार “कन्हैया”