बाल-श्रम का दाग़
क्या मजबूरी है लोगों की
जो करवाते नन्हें बालकों से काम
दाग़ बाल-श्रम है पढ़े लिखे समाज पर !
शर्म करो जो करवाते बाल-श्रम
पढ़ने की अपेक्षा करवाते उनसे काम
धिक्कार उनको जो करवाते जूठे बरतन साफ!
ऐसा क्या गुनाह किया छोटे बच्चों ने
जो पहुँचाते उन्हे दुख बाल-श्रम का
आया नहीं दयाभाव क्या इन नन्हे हाथो पर !
उम्र है उनकी पढ़-लिख कुछ बनने की
और मैदान पर खेल-कूद करने की
हँसते बचपन से क्यूँ लगा दिया बाल-श्रम का दाग़ !
जीवन सड़क पर गुजर गयी मजदूरी करते
पेट भरने की खातिर मजदूरी बन गई मजबूरी
ऐसा क्या गुनाह किया छोटे बच्चों ने
जो करवाते नन्हें बालकों से काम !
जो करवाते नन्हें हाथों से काम !!
: कुशाग्र
235-मॉडल टाउन, यमुनानगर (हरियाणा)
7015434460