बाल मज़दूरी
बाल मज़दूरी
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देखता दूसरों को, रोज जाते स्कूल
क्या हो गई हैं, हमसे कोई भूल
माता पिता जो,गरीबी में जीवन यापे
हमारी किस्मत में क्यों,भूख के फांके।।1।।
किताबों की जगह,बोझ उठाता कंधे पे
किस्मत ही देखो, दो चार रुपए जो मिलते
मैदानों पे दूसरों को,खेलते हुए देखता
अपनी मजबूरियों पे,जब मैं हंसता।।2।।
रोना कभी हमे, मंजूर ही न था
रोटियों को आंसू साथ, खा जो गया था
दिन में घंटे कितने,गिनती भूल गया था
शिक्षा जो नहीं पाई, ये मलाल रह गया था।।3।।।
फैंके हुए खिलौने से, बचपन याद आता
हात लगाने जाता तो,मालिक की लात खाता
मंदिर के सामने बैठे, भिखारियों से मिलता
उनकी हालत देखता,भगवान से क्या मांगता।।4।।
मंदार गांगल “मानस”