बाल गोपाल
**बाल गोपाल***
नंद के घर लाल आयो
थी यमुना विकराल
आनंद हो अपार छायो
हुआ पराजित काल
दुष्ट कंस रहस्य जाना
मृत्यु भय उसे अपार
सब धर्म, नाते तोड़े
पापी करे दुराचार
क्षण फिर वो निकट आया
सुधि न कोई विचार
चिरनिद्रा सब लीन हुये
आया तब गोपाल
थे नयन तब आँसू भरे
वसुदेव करे विचार
चले इक टोकरी धरे
भवसागर करते पार
चले कान्हा को थामे
नंद बाबा के द्वार
थमाये श्याम सलोना
प्रगट करते आभार
सैनिक जब सारे जागे
वसुदेव पहुंचे पार
दुष्ट कंस तब थर्रा या
मच गया हाहाकार
पयोद संग चपला चमकी
तमस बना घनघोर
सुंदर मुख आभा दमकी
आया धरा माखनचोर
✍” कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक