बाल गीत
होरी चाचा लाये गाय
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होरी चाचा लाये गाय
गाय पिलाती अपनी बाछी
नाम पड़ा है सोनागाछी
लाल-दुपट्टा लाये कीन
कुछ लड्डू थोड़ा नमकीन
मुसकी काटे घर की दाय
बाछी कभी न पीती पानी
बोल रही है नानी-नानी
कूद-फॉद में रहती मस्त
नहीं हौसला उसका पस्त
मान रही बस मन की राय
देखी है वह आता गदहा
तोड़ रही है बाँधा पगहा
बोली इसका क्या है काम
यह पाजी है नमकहराम
नहीं कमाऊ कमती आय
हरी घास की सानी-पानी
सरसों के खल की अगवानी
सातू का है कुछ छिड़काव
नमक मिला है आधा पाव
माँग रही है पहले चाय
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ