बाल कहानी- चतुर और स्वार्थी लोमड़ी
बाल कहानी-चतुर और स्वार्थी लोमड़ी
———-
एक घने जंगल में बहुत से पशु-पक्षी रहते थे। जंगल बहुत खूबसूरत था। हरे-भरे पेड़-पौधे जंगल की खूबसूरती की वजह थे। जंगल के बीचों-बीच में एक तालाब भी था। वह तालाब फूल-पत्तियों से भरा था।
आस-पास के पेड़ों की पत्तियाँ और फूल तालाब के जल में भरे पड़े थे। यही इनकी खूबसूरती का राज़ था। सुबह का दृश्य इतना खूबसूरत लगता था। जब पक्षी अपनी मधुर आवाज में गुनगुनाते थे, तो बहुत प्यार नज़ारा लगता था, जिसका बखान कर पाना बहुत ही मुश्किल है।
जब सूरज निकलता पशु-पक्षी अपने-अपने भोजन की तलाश में इधर-उधर भटकने की बजाय खूब मस्ती में जंगल से ही अपने भोजन की व्यवस्था करते थे। जंगल के मनोहर दृश्य को देख कर लगता था जैसे- श्रृंगार रस इसी जंगल के प्रेम-प्रवाह से निकला है। पशु-पक्षी बहुत ही प्रेमपूर्वक रहते थे।
उसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। उसका स्वभाव बहुत रुखा था। वह किसी से कोई मतलब नहीं रखती थी। कहने का मतलब यह है कि उसका कोई मित्र नहीं था। जब भी उसको कोई काम पड़ता तो वह चतुराई से अपना काम निकालने के लिए किसी न किसी से बोल लेती, पर काम निकलने के बाद तुरन्त बदल जाती। जंगल में एक बंदर भी रहता था। वह बहुत दयालु था इसलिए सब लोग प्यार से बंदर मामा कहते थे। पूरे जंगल में सिर्फ बंदर मामा ही लोमड़ी पर दया करते थे। बंदर मामा जामुन के पेड़ पर रहते थे। लोमड़ी को जामुन पसंद था। बंदर मामा अक्सर जामुन तोड़कर दे देते थे। एक दिन बंदर मामा बहुत बीमार हो गये। जंगल के सभी पशु-पक्षी बंदर का हाल-चाल लेने आते जाते रहे। लोमड़ी पेड़ के पास आती और जामुन देख कर ही चली जाती। एक बार भी उसने बंदर मामा से हाल-चाल नहीं पूछा। इस बात से बंदर मामा खफा हो गये और उन्होंने भी लोमड़ी का साथ छोड़ दिया।
सभी लोग उसके इस व्यवहार से वाकिफ थे इसलिए अब कोई भी लोमड़ी की चतुराई में नहीं आता था। वह अपना काम अकेले ही करती और चुपचाप ही रहती थी क्योंकि उसकी सुनने वाला अब कोई नहीं था।
वैसे तो हर लोमड़ी को अँगूर पसंद होते हैं, पर इस लोमड़ी को जामुन पसंद था। जामुन का पेड़ तालाब किनारे लगा था। एक दिन बंदर मामा कहीं गये थे।
लोमड़ी को भूख लगी थी। उसका मन जामुन खाने का हुआ। वह जामुन के पेड़ के पास गयी। जामुन देखकर लोमड़ी का मन ललचाया। बहुत प्रयास करने पर भी लोमड़ी जामुन तक नहीं पहुँच पा रही थी। लंबी-लंबी कूद लगाने पर भी लोमड़ी को जामुन नहीं मिल पा रहा था। इस बार लोमड़ी ने बहुत लंबी छलाँग लगायी कि शायद अब जामुन मिल जायें, पर वह भूल गयी कि पास में तालाब भी है। वह तालाब में जा गिरी। उसे बहुत चोट लगी। वह तालाब में पड़ी रही। उसे किसी ने बाहर नहीं निकाला। पशु-पक्षी उसे तालाब में गिरा देखकर हँस रहे थे। तभी बंदर मामा आ गये। उन्होंने जैसे ही देखा कि लोमड़ी तालाब में तड़प रही है, वह घायल है। वह तुरन्त लोमड़ी को बाहर निकाल कर लाये। उन्हें आभास हो गया था कि जामुन के लिए ही लोमड़ी की ये हालत हुई है। बंदर मामा तुरन्त पेड़ पर चढ़ गये और बहुत सारे जामुन तोड़कर लोमड़ी को दे दिये। लोमड़ी पश्चाताप के आँसू बहाने लगी और अपने किए की माफी माँगने लगी। बंदर ने माफ करते हुए कहा,”तुम्हें रोज जामुन खाने को मिलेंगे।” यह सुनकर लोमड़ी खुश होकर वहाँ से चली गयी।
शिक्षा
हमें इतना स्वार्थी और चतुर नहीं होना चाहिए कि हम अपना ही अच्छा और बुरा न सोच सकें।
शमा परवीन, बहराइच (उ०प्र०)