बाल कविता मोटे लाला
मोटे लाला पिलपिले,
बहु को लेकर गिर पड़े।
बहु गिर गई नाली में,
उठाया उसको माली ने।।
मोटे लाला जी का पेट,
जैसे हो इंडिया का गेट।
सारे दिन ये चरते रहते,
फिर भी भरे न इनका पेट।।
मोटे लाला जी का कुर्ता,
जैसे हो बैगन का भुर्ता।
कभी न उस पर प्रेस कराते,
पैसे प्रेस के सदा वे बचाते।।
मोटे लाला गाल फुलाते,
चलते है वे गाजर खाते।
सांड ने उन्हें मारी टक्कर,
आ गया उन्हे भारी चक्कर।।
मोटे लाला है कम तोलते,
अक्सर टैक्स की चोरी करते।
इनकम टैक्स ने छापा मारा
चोरी का माल निकला सारा।।
मोटे लाला नित माला जपते,
इसकी आड़ में सबको ठगते।
लगते है वे सबको भोले भाले,
मुख में राम बगल में छुरी रखते।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम