बाल कविता: मोटर कार
बाल कविता: मोटर कार
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छोटा डिब्बा पहिये चार,
बैठे जिसमें पैर पसार।
सड़क पर दौड़े फर फर फर,
कहते इसको मोटर कार।।
एक ड्राइवर पांच सवारी
कुछ हल्की कुछ हैं भारी।
जिधर चाहो मुड़ जाती है,
हाथ मे हैंडिल और रफ्तार।।
अंधेरे में लाइट जलाए,
भीड़भाड़ में हॉर्न बजाए।
सबके काम मे आती है,
परिवार हो या सरकार।।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन