बाल कविता …..बस पापा घर पर ही रहना
== बस पापा घर में ही रहना
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कब से बच्चे तरस रहे थे।
सपने सारे बिखर रहे थे ।
पापा के संग कब खेलेंगे ?
पापा संग गप्पे पैलेंगें ।
पापा- मम्मी को संग लेकर ,
पार्क में संग झूला झूलेंगे।
सपना देख कब बड़े हो गए ,
पापा को कब वक़्त मिला था।
बिन पापा के बच्चों का,
कब हंसी का फूल खिला था ।
अब ‘कोरोना’ का डर आया।
21 दिन घर में बिठलाया ।
अब सारे मिलकर खेल रहे हैं।
इस आफत को झेल रहे हैं ।
माना अब चिज्जी नहीं आती।
पर पापा की गोद रिझाती।
पापा मत बाहर जाना तुम।
घर की बड़ी जरूरत हो तुम।
जी लेंगे रुखा- सुखा खाकर।
खुश बहुत हम तुमको पाकर।
21 दिन बस घर में रह लो ।
जो कहना है सारा कह लो ।
फिर खुशियों के दिन लौटेंगे ।
हम सब मस्ती घोटेगें।
आप काम पर रोज फिर जाना।
चिज्जी- खूब खिलौने लाना।
पापा तुम ना अब जिद करना।
21 दिन घर पर ही रहना ।
बच्चों वाली बात न समझो।
‘कोरोना’ को आम न समझो ।
बहुत ही घातक दुश्मन आया।
जिसने सबको घर बिठलाया।
हम भूखे -प्यासे रह लेंगे ।
जैसे भी हो सस सह लेंगे ।
कुछ दिन यूं ही काटे जाएं ।
किससे खूब सुनायें जाएं।
दादी वाली बात सुना दो ।
थोड़ा सा मन को बहला दो ।
नहीं उदासी लगती अच्छी।
बिन पानी जिंदा कब मछछी।
21 दिन संग- संग बितेगें।
फिर पापा हम ही जीतेंगे।।
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डॉ. नरेश “सागर”
ग्राम.. मुरादपुर… सागर कॉलोनी, जिला -हापुड (उत्तर प्रदेश)
9149087291