बाल कविता -नन्हीं चीटी
बाल कविता
नन्हीं चींटी
नन्हीं चींटी चलती जाती।
श्रम करना हमको सिखलाती।।
अपनी मंजिल के हित चलती।
गिरती पड़ती उठती चलती।
थककर भी है चलती जाती।
श्रम करना हमको सिखलाती।।
जब चींटी तिनका ले जाती।
खुद से ज्यादा बोझ उठाती।
नहीं जरा सा भी अलसाती।
श्रम करना हमको सिखलाती।।
नहीं लक्ष्य निज कभी भुलाती।
पँक्ति बद्ध हो चलती जाती।
अनुशासन में रहो सिखाती।
श्रम करना हमको सिखलाती।।
मीठी चीज इसे अति भाती।
उसके पास पहुंच ही जाती।
फिर जी भरकर मीठा खाती।
श्रम करना हमको सिखलाती।।
पूनम दीक्षित
कृष्णा विहार कालोनी
ज्वाला नगर रामपुर उत्तर प्रदेश