बाल कविता:दूध के दाँत
कविता: दूध के दाँत
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नटखट छोटू लगा बिलखने
उसका दाँत लगा था हिलने
दाँत कहाँ से मैं लाऊँगा
बाबा जैसा हो जाऊँगा
मम्मी पापा ने समझाया
दाँत दूध के हैं बतलाया
बारी बारी गिर जाएंगे
फिर मजबूत दाँत आएंगे
मिली तसल्ली तो मुस्काया।
बच्चों के सँग रौल मचाया।।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
17.09.2019