बाल्यावस्था
जिस प्रकार अंकुर में एक वृक्ष बनने की पूर्ण संभावना रहती है, उसी प्रकार एक बालक में भी पूर्ण मनुष्य बनने के सभी गुण विद्यामान रहते हैं। वास्तव में बालक तो स्वप्नद्रष्टा होता है। वह अपने भावी जीवन की सुंदर कल्पना आरंभ में ही कर लेता है। उसके आगामी जीवन की संभावनाओं के लक्षण बाल्यकाल में ही दिखाई देने लगते हैं। यथा समय उचित शिक्षा बालक के स्वप्नों को साकार करने में सहायक सिद्ध होती है। शिक्षा बालक के उन सभी गुणों को विकसित होने का अवसर देती है, ऐसे संस्कार और विचार देती है, जिनके कारण वह सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी ‘मनुष्य’ कहलाने का अधिकारी होता है।
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