बाल्टी भर सपने
बाहर से दिखे ,साफ सब
और करीने से सजा….
भीतर सब छुपाया ,लूट लिया
वाहवाही का मजा ….
इस कोने में , कोई उस कोने में
बस ठूँस दिया ….
गिर गिर कर
बाहर अब आने लगे…
मुंह सब चिढ़ाने लगे….
बाल्टी में भर लगी
जब धूप लगवाने…..
कुछ रहे नही थे
अब काम के…
नज़र आ रहे थे
उनपर निशान वक्त के…
काट छाँट कर उनको
नए तरीके से ….
बिछा दूंगी किसी कोने मे
बहुत करीने से….
खिल जाएगा फिर
मेरा आशियाना
भीतर बाहर से !!