“बाला किला अलवर”
सामण आवै सै आर मीं नै बुलावै सै
न्हाण की सोचकीं जाड़ो सो चढ़ जावै सै,
गरजण लाग्या बादल अंधेरो भी घिर आयो सै
चाल रै मीनू घुमण चालां जी मेरो ललचायो सै,
जाण खातर गाड़ी मैं चढ़गी झोळे मैं चूरमो बांधो सै पहाड़ां मैं बैठकी खाण खातर हलवो भी बांधो सै, डोली कै मूहं लगाकीं रायतो भी पीणो सै
पहाड़ की गोदी मैं चादर बिछाकीं सोणो सै,
बरसण लाग्यो में इब इसमैं भी न्हाणो सै
अलवर जिसो घुमणो ओर किते नहीं पाणो सै,
बाला किला कै उपर चढ़की चिड़ियां ज्यूं चहकरी सूं बादल मेरै चारूं ओर मैं परी ज्यूं मह करी सूं
जीमण बैठगी हवा भी मेरै गुदगुदी करकीं जारी सै
जदै तो म्हारी प्रकृति मेरै मन नै भारी सै।
Dr.Meenu Poonia