बालगीत
हालू-मालू
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हालू-मालू
खेल रहे हैं
डोई-डोई
ओका-बोका
तीन-तड़ोका
खेल चुके हैं
लौवा-लाठी
चंदन-काठी
ठेल चुके हैं
खेल रहे हैं
छुप्पम-छुप्पा
लोई-लोई
इटिया-बिटिया
गोली-टिकिया
रेल बने हैं
कोट-कचहरी
चौकी-थाना
जेल बने हैं
खेल रहे हैं
आँख-बिरौवल
ओझा-गोई
तबला-ढोलक
गोलक-लोलक
नोंच रहे हैं
रस्सा-रस्सी
लंका-अस्सी
खोंच रहे हैं
खेल रहे हैं
चीलझपट्टा
गटई-गट्टा
टोवा-टोई
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ