बालक और विद्वान
“मृत्यु से अंजान उस नन्हे बालक को देखो अपने दादा के शव के पास कैसे खेल
रहा है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं,” सन्यासी ने कहा। पृष्ठभूमि पर परिजनों का
विलाप जारी था।
“बालक तो निपट अज्ञानी और मृत्यु के रहस्य से अंजान है महाराज, लेकिन
मृतक आपका छोटा भाई है फिर आप शोक क्यों नहीं कर रहे? आपकी आँखों में
आंसू क्यों नहीं?” समीप खड़े व्यक्ति ने पूछा।
“तुम्हारे प्रशन में ही उत्तर भी निहित है। बालक इसलिए शोक नहीं कर रहा
क्योंकि वह मृत्यु के रहस्य से अनजान है और मै परिचित हूँ। यही जीवन का
अंतिम सत्य है। अत: विद्वान् और बालक कभी शोक नहीं करते।” सन्यासी ने
शांतिपूर्वक कहा।
शव को अंतिम यात्रा के लिए उठाया गया तो पृष्ठभूमि पर ‘राम नाम सत्य है’
की आवाजें गूंजने लगीं।